किसान क्लोरपीरिफॉस बी ईसी का घोल बनाकर करें छिड़काव: डॉ0 सिंह
देश एक तरफ कोरोना वायरस जैसी भयानक महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ टिड्डी दलों के हमले से किसान परेशान है।;
कानपुर। देश एक तरफ कोरोना वायरस जैसी भयानक महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ टिड्डी दलों के हमले से किसान परेशान है।
कानपुर के कृषि विश्वविद्यालय के कीट विभाग के प्रोफेसर धर्मराज सिंह ने फसलों को टिड्डियों से बचाने के लिये शीध्र ही रासायनिक कीटनाटक का छिड़काव करने की सलाह दी है।
डॉ सिंह ने शनिवार को यहां कहा कि टिड्डियों खेतों में बैठ गए तो पूरी फसल को नष्ट कर देते हैं। उन्होंने कहा कि कीटनाशक दवा क्लोरपीरिफॉस बी ईसी करीब दो लीटर लेकर इसमें 500 से 600 लीटर पानी मिलाये। इस घोल का चार बीघा की जमीन में छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा मेलाथियान 50 ईसी 1.85 लीटर में लगभग दो लीटर मेलाथियान 50 ईसी मिलाकर इसको भी 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है।
उन्होंने कहा कि छिड़काव के बाद पत्तियों जो खाने से टिड्डिया मर जाती हैं। इससे किसान अपनी फसल को बचा सकता है। इसके अलावा ऊची आवाज से ये भाग जाते है।
डॉ0 सिंह ने कहा कि यदि टिड्डी दल झुंड के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान पर अचानक आ जाते हैं। एक किलोमीटर क्षेत्र के झुंड में लगभग चार लाख टिड्डी होते हैं। एक ही समय में खड़ी फसल में रात्रि के समय तूफान की तरह झुंड में आकर बैठते हैं और सारी फसल खाकर नष्ट कर देते हैं एवं सुबह के समय पुनः दूसरे स्थान के लिए प्रस्थान कर जाते हैं। ऐसी स्थिति में थाली, ढोलक, शंख, डीजे आदि की ध्वनि उत्पन्न करके इन भयानक टिड्डियों के आतंक से बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि में टिड्डी कीट दल का प्रकोप एक महामारी बीमारी की तरह एक चुनौती होगी। उन्होंने कुछ समय पहले ही भयानक कीटों के बारे में एडवाइजरी जारी करी थी। जिस तरीके से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसको देखते हुए टिड्डियों का आतंक उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिलेगा। उनका कहना है कि रेतीली और मरुस्थली जगह पर टिड्डियां एक साथ लाखों अंडे जमीन के अंदर देती हैं जिससे लाखों की संख्या मे टिड्डियां उत्पन्न होती हैं और यह टिड्डियां किसानों की फसल हरे पेड़ पौधे वह जहां पर भी बैठते हैं। उन फसलों को पूरी तरीके से नष्ट कर देते हैं। लाखों की संख्या में टिड्डियों का झुंड एक साथ इधर से उधर घूमते है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह किसानो की फसल के लिए कितना ज्यादा हानिकारक हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि टिड्डी दल का प्रकोप प्रायःजुलाई से अक्टूबर माह में होता है लेकिन इस साल अप्रैल-मई में राजस्थान में टिड्डी दल का प्रकोप हो गया है जिससे भारी मात्रा में फसलों को नुकसान हो रहा है।
डॉ0 सिंह ने बताया कि इस बार टिड्डी कीट दल की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका से हुआ जहां पर मक्का,ज्वार एवं गेहूं की फसल को भारी मात्रा में हानि पहुंचाया है। इस वर्ष यह टिड्डी दल भारत-पाकिस्तान सीमा पर मध्य अप्रैल के महीने में देखा गया तथा पश्चिमी राजस्थान एवं गुजरात के उत्तरी भाग में दिसंबर एवं जनवरी के महीने में टिड्डी दल का प्रकोप देखा गया है।
उन्होंने बताया कि टिड्डी दल एक स्थान से दूसरे स्थान पर समूह में उड़ते हुए एक दिन में लगभग 150 किलोमीटर की दूरी तय कर नए स्थानों पर पहुंच जाते हैं तथा किसानों की फसल खा कर नष्ट कर देते हैं। इस टिड्डी दल को नियंत्रित करना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश के झांसी एवं ललितपुर जिलों के कुछ भागों में कीट दल का प्रवेश हो गया है।