आतंकी हमले पर सरकार का ढीला रवैया
बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में लाल किला के पास हुए आतंकी हमले पर प्रस्ताव पारित किया गया;
बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में लाल किला के पास हुए आतंकी हमले पर प्रस्ताव पारित किया गया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रस्ताव पढ़ते हुए कहा- मंत्रिमंडल ने इस आतंकी घटना को 'राष्ट्र-विरोधी ताकतों ने अंजाम दिया गया जघन्य कृत्य' बताया। जांच एजेंसियों को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सरकार की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस (शून्य सहनशक्ति) नीति है।
इस प्रस्ताव के बाद अब यह तय माना जाए कि लाल किले के पास जो आत्मघाती हमला हुआ वह वास्तव में देश की राजधानी पर एक और आतंकवादी हमला ही था। क्योंकि सोमवार को जब यह धमाका हुआ और इसे आतंकी हमला ही माना गया, तब भी सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था। पुलिस ने तो यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था, लेकिन खबरें चल रही थीं कि सीएनजी विस्फोट जैसी कोई घटना भी हो सकती है। आतंकी हमले को स्वीकार करने में देरी के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं, जैसे 11 तारीख को बिहार में दूसरे चरण का मतदान था, ऐसे में भाजपा की यह बड़ी नाकामी जाहिर नहीं की जा सकती थी। या अभी पहलगाम हमले के जख्म हरे ही हैं कि देश पर एक और आतंकी हमला हुआ तो जनता सवाल कर सकती है कि मोदी सरकार आखिर कौन सी सख्ती की बात करती है, जब उसकी नाक के नीचे हमले हो रहे हैं।
बुधवार को पारित प्रस्ताव में मंत्रिमंडल ने इस हमले के पीछे राष्ट्रविरोधी ताकतों को जिम्मेदार तो ठहराया गया है, लेकिन लगे हाथ मोदी सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि राष्ट्रविरोधी कहकर वह किस ओर संकेत कर रही है। क्योंकि अभी तक तो देश पर हुए तमाम आतंकी हमलों में पाकिस्तान पर आरोप लगाए जाते रहे हैं। लेकिन इस बार अब तक किसी भी संगठन ने खुलकर इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। सरकार ने भी अपने प्रस्ताव में कहीं भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है। अगर इसमें पाकिस्तान का हाथ नहीं है, तो वह सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। क्योंकि पहलगाम हमले में भी यही माना गया था कि पाकिस्तान ने आतंकवादी भेजे जिन्होंने हिंदुओं को उनका धर्म पूछकर मारा। इसके बाद ही ऑपरेशन सिंदूर हुआ और प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक ऑपरेशन सिंदूर अभी चल ही रहा है। याद रखें कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मोदी सरकार ने तय किया था कि किसी भी आतंकी हमले को एक्ट ऑफ वॉर यानी युद्ध माना जाएगा, तो फिर अब केवल निंदा प्रस्ताव और कड़ी कार्रवाई के निर्देश जैसी औपचारिकताओं पर ही सरकार क्यों अटकी हुई है। पाकिस्तान इस हमले के पीछे नहीं है, तो फिर देश को और किन विरोधी ताकतों से खतरे खड़े हो गए हैं, इस बारे में भी सरकार को आगाह करना चाहिए।
वैसे कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि हमले के तार जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद नाम के संगठनों जुड़े थे। इसमें तुर्किए से मदद का आरोप लगा, जो इस समय पाकिस्तान के करीब है। लेकिन तुर्किये के डायरेक्टरेट ऑफ कम्युनिकेशंस के सेंटर फॉर काउंटरिंग डिसइंफॉर्मेशन ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर कहा है कि - भारत के कुछ मीडिया आउटलेट्स में जानबूझ कर ऐसी खबरें चलाई जा रही हैं कि तुर्किये आतंकवादियों को लॉजिस्टिक, आर्थिक या कूटनीतिक मदद देता है। ये सब एक दुष्प्रचार अभियान का हिस्सा हैं, जिसका मकसद भारत-तुर्किये संबंधों को नुकसान पहुंचाना है। बयान में कहा गया कि तुर्किये हर तरह के आतंकवाद का विरोध करता है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई रोल निभा रहा है। तुर्किये ने साफ कहा कि भारत या किसी अन्य देश में कट्टरपंथी गतिविधियों में उसकी कोई भूमिका नहीं है।
इधर यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे पी चिदम्बरम ने घरेलू आतंकवादियों पर अपनी आशंका और चिंता जाहिर करते हुए सरकार की नीति पर सवाल उठाए हैं, उन्होंने कहा है कि मैंने पहले भी कहा था और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी दोहराया था कि आतंकवादियों के दो प्रकार हैं- एक विदेशी प्रशिक्षण प्राप्त कर भारत में घुसपैठ करने वाले और दूसरे घरेलू आतंकवादी। मैंने ये बात संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान भी कही थी, लेकिन तब मेरा मजाक उड़ाया गया और ट्रोल किया गया। उन्होंने कहा कि मुझे कहना होगा कि सरकार ने तब भी और अब भी इस पर चुप्पी साधी रखी, क्योंकि सरकार जानती है कि घरेलू आतंकवादी भी हैं।
गौरतलब है कि जुलाई में, ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई बहस के दौरान, चिदंबरम ने कहा था कि पहलगाम हमलावर स्थानीय आतंकवादी हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि उनके पाकिस्तान से आने का कोई प्रमाण नहीं है। उन्होंने एनआईए की जांच के बारे में जानकारी साझा न करने पर सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि अभी तक यह साफ नहीं है कि हमलावर कौन थे और कहां से आए। चिदम्बरम के इस बयान पर गृह मंत्री अमित शाह ने उन पर पाकिस्तान का बचाव करने का आरोप लगाया था। अब देखना होगा कि दिल्ली हमलों के बाद भी जब पूर्व गृहमंत्री घरेलू आतंकवादियों का संदेह उठा रहे हैं, तो मौजूदा गृहमंत्री कोई जवाब देते हैं या नहीं। अगर अमित शाह मानते हैं कि देश की जमीन पर भी आतंकवादी पनप रहे हैं, तो यह बात फिर से सरकार की बड़ी नाकामी के खाते में ही जाएगी।
बताया जा रहा है कि दिल्ली धमाकों की साजिश जनवरी से की जा रही थी। फरीदाबाद से गिरफ्तार डॉ. शाहीन शाहिद ने बताया कि वह पिछले दो साल से विस्फोटक जमा कर रही थी। इधर जांच एजेंसियों का कहना है कि आतंकवादी धार्मिक स्थलों पर हमला कर देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कश्मीर के पुलवामा, शोपियां और अनंतनाग के डॉक्टरों को चुना, ताकि वे बिना रोकटोक कहीं भी जा सकें। अब सवाल ये है कि जब इतनी साजिश देश के भीतर रची जा रही थी तो अजित डोभाल और अमित शाह कर क्या रहे थे। जितनी मुस्तैदी से ये लोग सब चंगा सी कहकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं, उतनी ही तेजी से लापरवाही की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते।
वैसे इस समय जम्मू-कश्मीर में तेजी से धरपकड़ शुरु हो गई है और इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दिल्ली हमले की निंदा की और कहा हमें एक बात याद रखनी चाहिए- जम्मू-कश्मीर का हर निवासी आतंकवादी नहीं है या आतंकवादियों से जुड़ा नहीं है। ये कुछ ही लोग हैं जिन्होंने यहां हमेशा शांति और भाईचारे को बिगाड़ा है। इस घटना के ज़िम्मेदार लोगों को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन हमें निर्दोष लोगों को इससे दूर रखना होगा।'
इस जरूरी बयान पर गौर फरमाना चाहिए।