एल एंड टी को भारी पड़ेगी सुब्रमण्यन की भद्दी टिप्पणी
लार्सन एंड टूब्रो यानी एल एंड टी के अध्यक्ष और 60 वर्षीय प्रबंध निदेशक एसएन सुब्रमण्यन, जिन्हें कंपनी में एसएनएस के नाम से जाना जाता है;
- लेखा रत्तनानी
भारत को नई पीढ़ी के लीडर्स की शक्ति और सोच का उपयोग करने के लिए पुराने लोगों को अधिक सवालों के साथ जीना सीखना होगा। वे इस मुगालते में न रहें कि वे ही सही हैं। उन्हें इस गहरे एहसास के साथ यह भी समझना होगा कि वे उतने असाधारण नहीं हैं जितना वे खुद के बारे में सोचते हैं। चूंकि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि ऐसा कुछ जल्द हो सकता है।
लार्सन एंड टूब्रो यानी एल एंड टी के अध्यक्ष और 60 वर्षीय प्रबंध निदेशक एसएन सुब्रमण्यन, जिन्हें कंपनी में एसएनएस के नाम से जाना जाता है, के एक बयान ने हंगामा खड़ा कर दिया है। वे तड़क-भड़क जिंदगी जीने और हेडलाइन आकर्षित करने वाले सीईओ के रूप में मशहूर नहीं हैं, जिस जीवनशैली के लिए कुछ अपस्टार्ट सीईओ मशहूर हैं।
एसएनएस एक ऐसे समूह की अध्यक्षता करते हैं जिसका 80 वर्षों का गौरवशाली इतिहास है। इसमें 50 देशों में 50 हजार से अधिक लोग काम कर रहे हैं और जिसका 2024 में 2.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक कारोबार है। यह लगभग अविश्वसनीय है कि इतना वरिष्ठ नेता इस तरह की टिप्पणी करेगा कि- 'अगर उसका बस चला तो वह कर्मचारियों को रविवार को काम पर ले जाएगा क्योंकि दूसरा विकल्प, उनके शब्दों में, घर पर बैठना और अपनी पत्नी को घूरना है।' यह बात उन्होंने जिस वीडियो में कही है वह लीक हो गया है; पर ऐसा कौन करना चाहेगा? एल एंड टी की सफलता की कहानी में कई महिलाओं का योगदान है जो गर्व की बात है और इससे एसएनएस बहुत बुरी तरह से एक्सपोज हो गए।
दीपिका पादुकोण ने सही कहा है- 'इस बयान पर लीपापोती करने हड़बड़ी ने इसे और भी बदतर बना दिया।' एसएनएस की टिप्पणी में महिलाओं के प्रति व्यक्त अनादर के लिए माफी तो नहीं मांगी गई लेकिन इस बयान में शामिल सप्ताह में 90 घंटे काम करने के नुस्खे को हाईलाईट करते हुए बाद में इसे राष्ट्र निर्माण के आह्वान के रूप में समझाने का प्रयास किया गया जो उनकी टिप्पणियों के कपटपूर्ण होने की ओर इशारा करता है। क्या एसएनएस की इस टिप्पणी में आईटी क्षेत्र के दिग्गज एनआर नारायण मूर्ति (भारतीय ट्रेड यूनियनों के शब्दों में 'शैतानी') जैसे आईटी लीडर के 70 घंटे के सप्ताह की मांग करने वाले अप्रिय आह्वान का समर्थन छिपा था; या वे उनसे कुछ बेहतर कर दिखाने की इच्छा रखते हैं? एल एंड टी द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण लोगों के लिए केवल यह निष्कर्ष निकालने की अधिक संभावना बनाता है कि यह टिप्पणी बिला वजह नहीं हो सकती थी।
अगर हम इस दृष्टिकोण को मान्यता देते हैं कि एसएनएस इस प्रकार के घुमावदार बयानों के लिए जाने जाते हैं और वास्तव में इसका वह मतलब नहीं है जो निकाला गया है, तो भी ऐसे बड़े मुद्दे हैं जो सामने आते हैं तो भारत में सीईओ उनसे हाथ झटक लेते हैं। जो मामले अब प्रकाश में आते हैं और बहुत से प्रकरणों की एक छोटी सी झलक पेश करते हैं, वे बताते हैं कि भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र में कुछ गलत चल रहा है। यह बयान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस सप्ताह के अंत में 'विकसित भारत युवा नेता संवाद 2025Ó में दिए भाषण का समर्थन देने के लिए नहीं है कि 'भारत की युवा शक्ति भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाएगीÓ। ये सीईओ ऐसा सोच सकते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व यह सोचे कि वे सरकार की धुन में गा रहे हैं, लेकिन यह राजनीतिक नेतृत्व के हित में है कि वे इस तरह के ढोंग से सावधान रहे। कर्मचारियों और सामान्य तौर पर जेनरेशन ज़ूमर (संक्षिप्त में जेनजेड- वह पीढ़ी जो 1995 से 2010 के बीच जन्मी है) के बीच मूर्ति और अब एसएनएस के लिए तिरस्कार को सुना, देखा तथा विश्वास किया जाना है। सवाल यह है कि इस महत्वपूर्ण परिवर्तन को कौन मापेगा?
अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की जानी चाहिए ताकि न केवल एसएनएस बल्कि सभी सीएक्सओ को उचित रूप से कायदे में रखा जाए और जहां जरूरी हो वहां मजबूत नियामक उपाय किए जाएं।
उल्लेखनीय है कि एसएनएस को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कुल पारिश्रमिक के रूप में 51.05 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था जो एल एंड टी में औसत पारिश्रमिक का 534.57 गुना है। यह पिछले साल उन्हें किए गए भुगतान की तुलना में 43.11 प्रतिशत अधिक है। यह पारिश्रमिक सभी कर्मचारियों में सबसे अधिक है। यह वेतन एल एंड टी में दूसरे सबसे अधिक वेतन वाले कर्मचारी तथा कंपनी के अध्यक्ष व सीएफओ आर. शंकर रमन की तुलना में 40 फीसदी ज्यादा है। उनकी टिप्पणी पर एसएनएस के वेतन का औसतन 500 सौवां हिस्सा पाने वाले कर्मचारियों की कैसी प्रतिक्रिया रहेगी?
इस संदर्भ में 'विकसित भारत' के एजेंडे में पहला मुद्दा सीएक्सओ द्वारा स्वयं भुगतान की जाने वाली वेतन राशि पर एक सीमा लगाना होना चाहिए। कभी भी सुरक्षा रेलिंग या इन औपचारिकताओं की परवाह नहीं करनी चाहिए कि अपना वेतन वे स्वयं तय नहीं करते बल्कि कम्पनी का बोर्ड करता है। भारतीय संदर्भ में इन औपचारिकताओं ने पर्याप्त रूप से काम नहीं किया है क्योंकि हमारी कंपनियों के बोर्ड अक्सर अपने ंआप में लचीले होते हैं और अपने हितों को ध्यान में रखते हुए 'चोर-चोर मौसेरे भाई' की तरह काम करते हैं। कुछ चुनिंदा लोग ही खुद को उस सीट पर रखते हैं।
ध्यान दें कि डेलॉयट रिपोर्ट के अनुसार एल एंड टी संस्थापकों, स्वर्गीय हेनिंग होल्क-लार्सन और सोरेन टूब्रो के गृह देश डेनमार्क की विकसित अर्थव्यवस्था में कार्यकारी निदेशकों का परिवर्तनीय पारिश्रमिक निर्धारित का औसतन 37 फीसदी शामिल है। एल एंड टी सीएमडी के मामले में यह 980 प्रतिशत है (2024 के लिए एल एंड टी की रिपोर्ट के अनुसार- 3.6 करोड़ रुपये का वेतन, 35.28 करोड़ रुपये का कमीशन)। इन पैकेजों के बारे में शिकायत किए बिना क्या यह दावा किया जा सकता है कि जिस आधार पर आमतौर पर नेतृत्व के कमीशन की गणना की जाती है क्या उसके कारण समूह का प्रदर्शन इतना बेहतर हुआ है? विशेषकर यह देखते हुए कि एसएनएस की टिप्पणी के कारण कई प्रतिभाशाली उम्मीदवार अब कंपनी में शामिल होने के बारे में दो बार सोचेंगे तथा इस नुकसान की गणना एल एंड टी कैसे करता है?
अगला महत्वपूर्ण सवाल जो सामने आता है वह है भारत के कॉरपोरेट्स में असहमति का पूर्ण अभाव। स्थिरता की भाषा, नवीनता की अपील तथा विविधता, समानता और समावेश (डीईआई-डायवर्सिटी, इक्विटी एंड इनक्लूज़न) की नीतियों का दावा ये सभी खोखले हो जाते हैं जब यह स्पष्ट होता है कि भारतीय कॉरपोरेट्स में कोई भी, जिसमें सबसे बड़े और तथाकथित सर्वश्रेष्ठ शामिल हैं, बॉस को चुनौती नहीं देते हैं। क्यों? इसका सरल जवाब यह है कि प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं क्योंकि प्रश्नों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। एक ऐसी संस्कृति का निर्माण किया जाता है जहां पदानुक्रम का राज होता है, जहां बॉस को हमेशा सही माना जाता है और रचनात्मकता अपनी परिभाषा के अनुरूप लगभग पनप नहीं सकती है। एल एंड टी के आंतरिक पतन को इस तथ्य से देखा जाता है कि दिनांकरहित इस वीडियो में किसी ने भी एसएनएस को चुनौती नहीं दी जो अब एल एंड टी के दुख का कारण बन गया है। समस्या यह नहीं है कि वीडियो लीक हो गया है। समस्या यह है कि एसएनएस से यह नहीं पूछा गया कि वह ऐसा बयान कैसे दे सकता है। जैसा कि हमारे सीईओ अक्सर करते हैं, इस क्षण के लिए उनकी मुश्किल टल गई है , केवल बाहर की दुनिया अभी उनकी खिंचाई कर रही है।
भारत को नई पीढ़ी के लीडर्स की शक्ति और सोच का उपयोग करने के लिए पुराने लोगों को अधिक सवालों के साथ जीना सीखना होगा। वे इस मुगालते में न रहें कि वे ही सही हैं। उन्हें इस गहरे एहसास के साथ यह भी समझना होगा कि वे उतने असाधारण नहीं हैं जितना वे खुद के बारे में सोचते हैं। चूंकि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि ऐसा कुछ जल्द हो सकता है इसलिए भारतीय उद्योग संस्थानों को घर को व्यवस्थित करने के लिए नियमों के एक नए सेट के साथ कार्य करना चाहिए।
(लेखिका द बिलियन प्रेस की प्रबंध संपादक हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)