नीतीश को महंगा पड़ेगा छात्रों पर ज़ुल्म
बिहार में बीपीएससी परीक्षा में धांधली पर छात्रों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ है;
बिहार में बीपीएससी परीक्षा में धांधली पर छात्रों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ है। छात्रों की मांग है कि सभी 912 केन्द्रों में बीपीएससी प्रारम्भिक परीक्षाएं दोबारा हों। इस मांग पर पखवाड़े भर से जारी आंदोलन को कुचलने के लिये बिहार सरकार अब बर्बरता पर उतर आई है। रविवार की रात को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान के पास एकत्रित हजारों परीक्षार्थियों पर पुलिस ने भीषण लाठी चार्ज किया और कड़कड़ाती ठंड में पानी की बौछारें फेंकी। उनका जमावड़ा सुबह से होने लगा था जिन्हें पुलिस बार-बार चेतावनी दे रही थी कि उन्हें प्रदर्शन की इजाज़त नहीं है। इसे अनसुना करते हुए बड़ी संख्या में एकत्र हुए परीक्षार्थी पुलिस के बल प्रयोग से घायल हुए हैं तथा अनेक लोगों के खिलाफ पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज हुई है।
नौजवानों के इस जुटान का फायदा लेने के लिये जनसुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर भी पहुंचे और मुख्य सचिव से मिल आये। लौटकर उन्होंने इस बात का श्रेय लेने की कोशिश की कि 'वे 5 प्रतिनिधियों के मिलने की अनुमति लाने में सफल हुए हैं। यदि इसके बाद भी परीक्षार्थी संतुष्ट न हुए तो उससे ऊपर बात की जायेगी।' हालांकि रविवार को जब लाठी चार्ज हो रहा था, तो वे मौके से गायब ही हो गये थे। बहरहाल, यह मुद्दा अब लगातार गर्मा रहा है और लोगों में रोष है। अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं जिसके लिये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य भर में प्रगति यात्रा निकाल रहे हैं। युवाओं के साथ यह जुल्म और उनकी अनसुनी नीतीश व उनकी गठबन्धन सरकार को महंगी पड़ सकती है।
70वीं संयुक्त (प्रारम्भिक) परीक्षा को लेकर 18 दिसम्बर से प्रदर्शन जारी है। रविवार को परीक्षार्थियों ने प्रदर्शन का ऐलान कर रखा था। पुलिस ने पहले ही मैदान के सारे गेट बन्द कर दिये। परीक्षार्थी फिर भी मुख्यमंत्री निवास की ओर बढ़ने लगे। उन्हें पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रोक दिया। जब वे इसके बावजूद नहीं रुके तो उन के खिलाफ बल प्रयोग किया गया। उल्लेखनीय है कि इस परीक्षा के लिये सितम्बर में विज्ञापन जारी हुआ था। इसमें शामिल होने के लिये लगभग 5 लाख लोगों ने आवेदन किया था। 3.25 लाख ने 13 दिसम्बर को परीक्षा दी परन्तु इसके पर्चे लीक होने, कई कोचिंग संस्थानों द्वारा दिये गये प्रश्नपत्रों से सवाल मिलने तथा अन्य अनियमितताओं के कारण इस परीक्षा को रद्द करने की मांग होने लगी, लेकिन बीपीएससी के परीक्षा नियंत्रक राजेश कुमार सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि 'परीक्षा रद्द होने का सवाल ही नहीं है। बेहतर है कि परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा की तैयारियों में जुट जायें।'
यह मुद्दा कहां तक जाता है और सरकार परीक्षार्थियों की मांगें पूरी करती है या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा; परन्तु रविवार के प्रदर्शन में हुई पुलिस कार्रवाई का खामियाजा नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) एवं सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के गठबन्धन को भुगतना पड़ सकता है जिन्हें फिर से जनता का सामना करना है। प्रदर्शनकारियों का तो साफ कहना था कि 'उनकी परीक्षा के बाद 2025 में नीतीश कुमार सरकार की परीक्षा होगी।' इशारा साफ है कि दोनों पार्टियों का मताधार खिसक सकता है। इस प्रदर्शन पर हुई पुलिस कार्रवाई से आंदोलनकारियों के प्रति विभिन्न राजनीतिक दलों में भी नाराज़गी हो गयी है। सीपीआई एमएल तो पहले से ही इस आंदोलन का समर्थन कर रहा है। प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता व पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि 'परीक्षार्थियों के साथ जो ज्यादती की गयी है, उसे देखकर कलेजा कांप जाता है।' अन्य विपक्षी दल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी आदि भी नीतीश सरकार पर हमलावर हो गये हैं। यहां तक कि एनडीए में सहयोगी चिराग पासवान ने भी नीतीश सरकार से मांग की है कि छात्रों पर लाठी बरसाने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हो।
यह मामला नीतीश कुमार पर इसलिये भारी पड़ सकता है क्योंकि रोजगार बिहार का एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। जिस तरह से राज्य की इस सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण परीक्षा को सरकार की कार्यपद्धति ने संदिग्ध और अपारदर्शी बना दिया है, उसके कारण युवाओं एवं आम जनता में भारी रोष है। लोगों को अब वे दिन भी याद आ रहे हैं जब जेडीयू एवं आरजेडी की सरकार थी और जिस दौरान बड़ी तादाद में लोगों को रोजगार मिले थे। पिछले लगभग एक दशक में बिहार में सबसे ज्यादा भर्तियां उसी दौरान हुई थीं। इसे गर्व के साथ दोनों ही दल (जेडीयू-आरजेडी) बतलाया करते थे। परिस्थितियां तब बदलीं जब दोनों दल अलग हो गये। नीतीश कुमार ने पाला बदलकर भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। उस अवसर पर जब विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हो रही थी तो नीतीश कुमार एवं भाजपा के लोगों ने यह कहा था कि 'नौकरियां बांटने का काम केवल तेजस्वी ने नहीं किया बल्कि उसके पीछे सीएम का हाथ था। उनकी मंजूरी से ही भर्तियां हुई थीं। नौकरियां आगे भी मिलती रहेंगीं।'
बहरहाल, यह दावा गलत साबित हुआ। अब यह स्वीकार कर लिया गया है कि जितनी भर्तियां उस दौरान निकली थीं, उसका श्रेय तेजस्वी को ही जाता है क्योंकि उन्होंने इसके लिये विशेष अभियान चलाये थे। जब से जेडीयू-भाजपा की सरकार बनी, प्रदेश में भर्तियां एक तरह से या तो रूक गयी हैं या प्रश्न पत्र लीक होने अथवा उनके संदेहास्पद हो जाने के कारण परीक्षाएं रद्द होने का सिलसिला बना रहता है। नीतीश सरकार को चाहिये कि इस मुद्दे पर अविलम्ब आंदोलनकारियों से बात करे और जैसी कि उनकी मांग है, फिर से प्रारम्भिक परीक्षा का आयोजन करे। इसके साथ ही परीक्षाएं पारदर्शी तथा पूर्णत: निष्पक्ष दिखाई देनी चाहिये ताकि उसे लेकर किसी के मन में कोई भी शंका न रहे। आखिरकार यह प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा जो है।