केवल माया ही महाठगिनी नहीं है
पहले तीर्थयात्राओं पर पंडे-पुजारियों को अच्छी कमाई का मौका मिलता था और तीर्थाटन के लिए आए श्रद्धालु भी उन्हें अपनी क्षमतानुसार सेवा देते थे;
- सर्वमित्रा सुरजन
पहले तीर्थयात्राओं पर पंडे-पुजारियों को अच्छी कमाई का मौका मिलता था और तीर्थाटन के लिए आए श्रद्धालु भी उन्हें अपनी क्षमतानुसार सेवा देते थे, क्योंकि इनके जीवनयापन का यही साधन होता था। लेकिन इस महाकुंभ ने तो कमाई के नाम पर ठगी के नए दरवाजे खोले और लोग आस्था के नाम पर खुशी-खुशी खुद को ठगाने में भी लगे रहे।
कबीरदास जी ने लिखा-
माया महा ठगनी हम जानी,
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।
अर्थात माया सबसे बड़ी ठगिनी है जिसके बारे में मैं जानता हूं, वह तीन गुणों से युक्त होकर आपको अपने हाथ में फंसाकर घूमती है और मधुरतम वचन बोलती है। संत कबीर ने सांसारिक मोह-माया, लोभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे दुर्गुणों से लोगों को आगाह किया है। सभी धर्मों में इसी तरह का ज्ञान मिलता है, जो इंसानों को पहले से खुद को बेहतर बनाने और अपने साथ-साथ समूचे जीव-जगत के कल्याण के लिए प्रेरित करता है। हिंदू धर्म में महाकुंभ जैसे आयोजन भी इसी मकसद से होते रहे कि व्यक्ति अपने कर्मों के पाप और पुण्य पर विचार करे। डुबकी लगाना केवल पानी में सिर डुबोना नहीं होता, अपने अहंकार को त्याग कर समूचे अस्तित्व को प्राणवायु के बिना दांव पर लगाकर विचार करना होता है कि क्या गलत किया, क्या सही किया और आखिर में जब तक जीवन बचे, तब तक किस तरह खुद का परिष्कार करके जीना है। डुबकी लगाकर बाहर निकलना, नए सिरे से जीवन को पाना है। अगर तमाम दुर्गुणों के साथ डुबकी लगाई और पानी से सिर बाहर निकलने के बाद भी उन्हीं बुराइयों में घिरे रहे तो फिर उसकी सार्थकता ही क्या रहेगी।
14 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज में चले महाकुंभ पर विचार करें तो फिर कबीर ही याद आते हैं जिन्होंने माया को महाठगिनी बताया, लेकिन यहां तो आस्था की ठगी करने का ज्वार उमड़ा। सरकार पूरे आयोजन में हर दिन आंकड़े बताती रही कि आज इतने करोड़ लोगों ने स्नान किया, आज इतने करोड़ लोगों के आने का रिकार्ड टूटा। इन आंकड़ों को बताने का आधार क्या रहा, यह अबूझ पहेली है, क्योंकि जिस सरकार ने स्नान करने वालों की गिनती लगा ली, वो यह नहीं बता पाई कि कितनी बार भगदड़ मची और कितने लोग हताहत हुए। जो सरकारी आंकड़े आए हैं, वो भी ठगी की तरफ ही इशारा कर रहे हैं। बहरहाल, भाजपा को राज्य और केंद्र दोनों में इस महाकुंभ के आयोजन से भरपूर फायदा हुआ है, या आगे उसका चुनावी लाभ मिलेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। इस समय देश के माहौल में जिस तरह की धर्मांधता कायम हो चुकी है और उसमें उग्र राष्ट्रवाद का मिश्रण हुआ है, वह सामान्य लोगों को भयभीत कर चुका है। इस बात का एक भयावह उदाहरण महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले से सामने आया, जहां भारत-पाक मैच के दौरान एक व्यक्ति को एक घर से कथित तौर पर देशविरोधी नारे सुनाई दिए। उसने संदेह जताया तो घर में रहने वालों और उसके बीच कहा-सुनी हुई, बात इतनी बिगड़ी कि पुलिस में मामला पहुंचा। अब उस घर में रहने वाले 15 साल के बच्चे को सुधारगृह भेज दिया गया है, और उसके मां-बाप को रविवार को गिरफ्तार कर दो धर्मों में वैमनस्य बढ़ाने, देश की एकता को खतरे में डालने जैसे आरोपों के तहत धाराएं लगाई गई हैं। उनकी कबाड़ की दुकान को निगम ने तोड़ दिया है और इस पूरे मामले पर महायुति के विधायक नीतेश राणे ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बाकायदा बधाई भी दी है कि दुकान तोड़कर अच्छा किया।
निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही जब ऐसा आचरण करने लगें तो फिर उनके अनुयायी भला क्यों पीछे रहेंगे। अभी आरोप सिद्ध नहीं हुए, पता नहीं चला कि वाकई देश के खिलाफ नारा लगा था या नहीं, लेकिन एक बसा-बसाया परिवार उजाड़ दिया गया। इसके बाद भाजपा वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती है। श्री मोदी 140 करोड़ लोगों को अपना परिवार बताते हैं।
नफरत के ऐसे न जाने कितने प्रकरण हर दिन घटते हैं, लेकिन लोग खामोशी से देख कर मुंह फेर लेते हैं। लोगों की जुबान पर तब भी ताले लग जाते हैं जब गोली मारो जैसे नारे देने वाले अनुराग ठाकुर और अमित शाह के बेटे जय शाह शाहिद अफरीदी के साथ बैठकर मैच देखते हैं। देश में भाजपा और संघ लोगों को घुट्टी पिला रहे हैं, पाकिस्तान से दुश्मनी निभाओ, मुसलमानों से नफरत करो। लेकिन खुद मतलब की दोस्ती निभाते हैं औऱ पूरा फायदा लेते हैं।
बहरहाल, बात हो रही थी महाकुंभ में आस्था के नाम पर हो रही ठगी की। इस ठगी में सभी शामिल नजर आए। सरकार ने आस्था के स्थल पवित्र त्रिवेणी संगम को राजनैतिक मंच की तरह इस्तेमाल किया। और इस मंच का विस्तार अलग-अलग राज्यों में भी किया। उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जेलों में कैदियों को गंगा जल से स्नान कराया गया। तर्क दिया गया कि इससे उनकी आत्मिक शुद्धि होगी। वैसे न्यायपालिका में जेलों को सुधारगृह ही बताया गया है। जहां कुछ वक्त कैद रहकर इंसान जब बाहर निकले तो उसमें सुधार आए, उसकी अपराध करने की प्रवृत्ति छूटे। यह बिल्कुल गंगाजी में डुबकी लगाने जैसा ही है, जब सांसों को कैद करके इंसान पानी के भीतर घुसता है। लेकिन क्या वाकई हमारी जेलें सुधार गृहों की तरह रह गई हैं, ये एक उलझा हुआ सवाल है। अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ा हुआ है, लाखों कैदी जेलों में कीड़े-मकोड़ों की तरह भरे रहते हैं। वहां नर्क जैसे माहौल में यातनाएं सहते हुए वक्त बिताते हैं और इनमें से कई तो अपराध साबित होने के इंतजार में ही पड़े रहते हैं। क्या इन सवालों का जवाब कुछ कैदियों को गंगाजल से नहलाने से मिलेगा या इससे समाज में अपराध कम हो जाएगा। आंकड़ों के हिसाब से देश की लगभग आधी आबादी गंगा स्नान कर चुकी, तो क्या अब अपराध दर में गिरावट आएगी।
उप्र के नोएडा में कुछ आलीशान रिहायशी इलाकों में लोगों ने संगम से लाए जल को स्विमिंग पूल के जल में मिला दिया, ताकि जो लोग प्रयागराज नहीं जा पाए, वे भी गंगा स्नान का पुण्य कमा लें। जबकि यहां अधिकांश इलाकों में नलों में गंगा का पानी ही आता है। इसी तरह सोशल मीडिया पर एक नए किस्म के कारोबार का खुलासा हुआ। कुछ लोगों ने संगम पर डिजीटल स्नान की व्यवस्था करवाई। अपने घर में बैठकर स्नान के आकांक्षी श्रद्धालु की फोटो इन लोगों ने अपने डिजीटल कैमरे से खींची, उसका वहीं पर प्रिंट निकाला और उनकी फोटो को गंगाजी में डुबोकर उसके लाइव दर्शन करवाए। इस सेवा के बदले कुछ हजार की रकम वसूली जाती है। आधुनिक तकनीकी से यह धार्मिक जुगाड़ शायद भारत में ही ईजाद हुआ है। अगर एलन मस्क को इसका पता चले तो वे इसका फायदा अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी ले सकते हैं। वैसे मोदीजी अब कह सकते हैं कि पकौड़ा बेचना ही रोजगार नहीं है, आप डिजीटल स्नान से भी कमाई करवा सकते हैं। उनके डिजीटल इंडिया कार्यक्रम में भी इस अनूठे रोजगार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
पहले तीर्थयात्राओं पर पंडे-पुजारियों को अच्छी कमाई का मौका मिलता था और तीर्थाटन के लिए आए श्रद्धालु भी उन्हें अपनी क्षमतानुसार सेवा देते थे, क्योंकि इनके जीवनयापन का यही साधन होता था। लेकिन इस महाकुंभ ने तो कमाई के नाम पर ठगी के नए दरवाजे खोले और लोग आस्था के नाम पर खुशी-खुशी खुद को ठगाने में भी लगे रहे। अब दो साल बाद नासिक कुंभ की तैयारियों में महाराष्ट्र सरकार जुट गई है और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने कहा है कि आयोजन के लिए धन की कोई कमी नहीं होगी। क्या हमने कभी जनता को सुविधाएं देने के लिए धन की कमी न होने का आश्वासन सुना है। बजट में तो तमाम जरूरी खर्चों पर धन की कमी बता कर कटौती की जाती है। और आस्था को भुनाने के लिए हजारों करोड़ बहाए जाते हैं।
हालांकि जब देश का मुखिया ही ऐसी पहल करे, तो बाकियों की कौन कहे। हाल ही में प्रधानमंत्री धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा बनवाए जा रहे कैंसर अस्पताल के भूमिपूजन के लिए बागेश्वर धाम पहुंचे और वहां अपने भाषण में उन्हें अपना छोटा भाई कहा। प्रधानमंत्री के इन नए छोटे भाई अपने हथेली पर काल्पनिक नंबर डायल कर सीधे हनुमानजी से बात करने का चमत्कार दिखा चुके हैं। गौ मूत्र और हल्दी के सेवन से चौथे स्टेज के कैंसर के इलाज का दावा कर चुके हैं। अच्छी बात है कि अब वे कैंसर अस्पताल बना रहे हैं। लेकिन क्या वहां जाने से पहले प्रधानमंत्री को यह सोचना नहीं चाहिए था कि जो दायित्व सरकार का है, उसे कोई और क्यों निभा रहा है। धर्मार्थ चिकित्सालय सदियों से बनते आए हैं, जहां लोगों को मुफ्त इलाज मिलता है। लेकिन इसका राजनीतिकरण कभी नहीं हुआ। महाठगिनी अब तरह-तरह से सामने आ रही है। केवल माया ही महाठगिनी नहीं है।