फिर साबित हुआ कि कायर छिपकर वार करते हैं
अपने आसपास नाइंसाफी, शोषण, अत्याचार देखकर भी अगर सब कुछ चंगा सी के मोहजाल में देश फंसा रहा तो समय की किताब में उसका यह अपराध दर्ज होगा।;
— सर्वमित्रा सुरजन
अपने आसपास नाइंसाफी, शोषण, अत्याचार देखकर भी अगर सब कुछ चंगा सी के मोहजाल में देश फंसा रहा तो समय की किताब में उसका यह अपराध दर्ज होगा। और यहां मुद्दा केवल ईरान या फिलीस्तीन पर हुआ अत्याचार नहीं है। अपने देश में भी जिस तरह का माहौल बनाने की सायास कोशिशें हो रही हैं, उन्हें देखकर भी यही लग रहा है कि अत्याचार करने के नए बहाने, नए माहौल और नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं।
इस समय वार-पलटवार की बात करने पर इजरायल और ईरान के बीच छिड़ी जंग का ही संदर्भ सबसे पहले ध्यान में आता है। इजरायल ने ईरान में तख्तापलट के लिए परमाणु हथियारों के बहाने से हमला किया और उसके मसीहा अमेरिका ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर यानी आधी रात को हथौड़े की चोट बताते हुए ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों पर बम गिराए। शांति की बात करते-करते डोनाल्ड ट्रंप युद्ध में शामिल हो गए और अब उनके मुंह से भी सच्चाई निकल गई है कि ईरान को फिर से ग्रेट बनाना है तो यहां की सत्ता को बदलना होगा। यानी छिपकर, बहाने बनाकर कायरों की तरह इजरायल और अमेरिका लड़ रहे हैं, मगर दुनिया को नसीहत दे रहे हैं कि शांति शक्ति से ही आती है। हालांकि अब इन दोनों देशों का सच दुनिया के सामने आ गया है और इनका साथ देने वाले या चुप रहकर विश्वगुरु बनने के ख्वाब देखने वालों की सच्चाई भी सब देख रहे हैं। दिनकर ने कहा है-
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।।
अपने आसपास नाइंसाफी, शोषण, अत्याचार देखकर भी अगर सब कुछ चंगा सी के मोहजाल में देश फंसा रहा तो समय की किताब में उसका यह अपराध दर्ज होगा। और यहां मुद्दा केवल ईरान या फिलीस्तीन पर हुआ अत्याचार नहीं है। अपने देश में भी जिस तरह का माहौल बनाने की सायास कोशिशें हो रही हैं, उन्हें देखकर भी यही लग रहा है कि अत्याचार करने के नए बहाने, नए माहौल और नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं।
हाल-फिलहाल में कुछ ऐसे प्रकरण सामने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि संविधान बदलने की भाजपा की कोशिश अभी खत्म नहीं हुई है। बस तरीके बदल गए हैं। अभी भाजपा पूरे देश में संविधान हत्या विरोधी दिवस मनाने में लगी है, उसे किसी भी तरह आपातकाल के मुद्दे को जिंदा रखना है ताकि कांग्रेस को घेरने में मदद मिले। संविधान के साथ हत्या जैसा शब्द भी वही लोग लगा सकते हैं जो गांधी को मार कर उसे वध का नाम देते हैं। ऐसी सोच वाले लोगों की नजर में संविधान भी शुरु से खटकता रहा है और तिरंगा झंडा भी। हालांकि नरेन्द्र मोदी अपने ऊपर से इस दोष की मिट्टी को झाड़ना चाहते हैं, इसलिए घर-घर तिरंगा अभियान चलाया और अब संविधान को बचाने की बात कह रहे हैं। लेकिन उनकी पार्टी की केरल ईकाई के नेता और भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहे एन. शिवराजन ने कहा कि देश का झंडा भगवा होना चाहिए, ये मेरी निजी राय है, भारत का झंडा कांग्रेस और एनसीपी के झंडे जैसा नहीं हो सकता है। यहां निजी राय बोलकर शिवराजन ने अपनी पार्टी नेतृत्व को सवालों से बचाने की कोशिश की है, लेकिन भाजपा का मकसद फिर भी सामने आ गया है। देश का झंडा अगर कांग्रेस या एनसीपी से मिलता जुलता नहीं हो सकता तो फिर भाजपा के रंग से कैसे मिल सकता है, इस बात का जवाब भी शिवराजन को देना चाहिए। हालांकि जवाब देने की परिपाटी भाजपा में नहीं है।
तिरंगे के बाद अब अंग्रेजी भी भाजपा के निशाने पर है। इस बार तो सीधे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाला है। उन्होंने कहा है कि ऐसा समाज बनाएंगे, जिसमें अंग्रेजी बोलने वालों को शर्म आएगी। यह बयान पूरी तरह नफरत से प्रेरित है कि किसी भाषा के इस्तेमाल पर शर्म आए। इस देश में बड़ी आबादी हिंदी बोलती और समझती है। शुद्ध हिंदी तो अब विरले ही बोल, लिख या समझ पाते हैं। मगर फिर भी गलत-सलत ही सही हिंदी का इस्तेमाल ही ज्यादा होता है। फिर भी अमित शाह या भाजपा को किस बात की कुंठा है कि वे हिंदी और अन्य मातृभाषाओं को थोपने के लिए अंग्रेजी के खिलाफ शर्म का माहौल बनाने में लगे हैं। राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, एस.जयशंकर, हिमंता बिस्वासरमा, हरदीप सिंह पुरी, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल, गजेन्द्र सिंह शेखावत, निशिकांत दुबे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, स्मृति ईरानी इन सबके बच्चों ने विदेशों में डिग्री हासिल की है, और इनमें से खुद कई अंग्रेजी माध्यम में ही पढ़े हैं और अब भी अंग्रेजी में ही ढंग से बात कर पाते हैं। तो अब इन्हीं को जवाब देना चाहिए कि आगे से शर्म से बचने के लिए ये क्या उपाय करने वाले हैं।
भाषा का झगड़ा, झंडे का अपमान ये सब संविधान विरोधी कार्य ही हैं। लेकिन भाजपा तो संविधान हत्या विरोधी दिवस मनाती है, संविधान के अपमान को रोकने की कोशिश नहीं करती। इसलिए जब-तब दलितों, अल्पसंख्यकों पर तरह-तरह से प्रताड़ना के मामले सामने आते हैं। अभी एक भागवत कथा करने पहुंचे व्यक्ति के सिर से बाल मूंड दिए गए क्योंकि अहीर होने के बावजूद वह ब्राह्मण परिवार में कथा करने पहुंचा। एक निजी एयरलाइंस में एक पायलट को अपमानित किया गया कि तुम प्लेन उड़ाने लायक नहीं हो, जाकर चप्पलें सिलो। जाति के नाम पर इस तरह की प्रताड़ना के ये प्रकरण बता रहे हैं कि हिंदू राष्ट्र बनाने के बाद मनु स्मृति को लागू करना इनका अंतिम मकसद है।
लोकसभा चुनावों में खुलकर संविधान बदलने की वकालत कई भाजपा नेताओं ने की थी। उसमें कामयाबी नहीं मिली तो संसद में अंबेडकर-अंबेडकर कहना फैशन हो गया है, ऐसी टिप्पणी गृहमंत्री ने की और अपने कथन पर उन्हें अफसोस भी नहीं है। अब अंबेडकरजी के अपमान का नया खेल किया जा रहा है, वह भी कायरों की तरह छिपकर। उत्तरप्रदेश में शांभवी पीठ और काली सेना के संस्थापक, समाजसेवी कहे जाने वाले स्वामी आनंदस्वरूप ने नयी बहस की शुरुआत की है कि भारतीय संविधान बाबासाहेब ने नहीं, बल्कि सर बी. एन. राव ने तैयार किया था। इसका सोशल मीडिया पर खूब प्रचार भी हो रहा है। जबकि यह दावा अंबेडकर की महान विरासत को अपमानित करने के साथ-साथ संविधान सभा के उन सभी सदस्यों का भी अपमान है, जिन्होंने संविधान बनाने में डा. अंबेडकर की असाधारण भूमिका को सार्वजनिक तौर स्वीकार किया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, 'उन्हें प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाना हमारा सबसे सही निर्णय था। उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद दिन-रात काम कर इतिहास रच दिया।
Ó टी. टी. कृष्णमाचारी ने कहा था कि प्रारूप समिति के अधिकांश सदस्य या तो अनुपस्थित थे या असमर्थ, इसलिए 'पूरी जिम्मेदारी अंतत: डॉ. अंबेडकर के कंंधों पर आ गई।' एस. नागप्पा ने कहा था, 'अस्पृश्य वर्गों के हितों की सबसे सशक्त आवाज़ बाबासाहेब ही थे। उनके कारण ही हम आश्वस्त हो पाए।' फ्रैंक एंथनी ने कहा था- 'संविधान के निर्माण में डॉ. अंबेडकर ने अद्भुत स्पष्टता और विस्तृत दृष्टिकोण प्रदर्शित किया है। कई बार असहमति के बावजूद, उनके तार्किक कौशल की प्रशंसा करनी ही पड़ती है।' पंडित बालकृष्ण शर्मा ने कहा था- 'प्रारूप समिति और डॉ. अंबेडकर संकीर्णता से प्रेरित नहीं थे। उनका कार्य पूर्णत: न्यायोचित और राष्ट्र के हित में था।
'हर गोविंद पंत ने कहा था- 'डॉ. अंबेडकर ने संविधान के प्रावधानों को जिस विद्वता और स्पष्टता से प्रस्तुत किया, उसके लिए उन्हें 'पंडित' कहना भी उचित है।' हालांकि केशवराव जेधे ने पंडित या ऋ षि जैसे शब्दों पर आपत्ति जताई थी, उन्होंने कहा था कि 'तीन वर्षों तक चले कठिन श्रम के बाद जो महान कार्य उन्होंने पूर्ण किया, वह अद्वितीय है। उन्हें 'विधान ऋषि' कहना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि वे उन वर्णों से घृणा करते थे जिन्होंने जातियां बनाईं।' ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर ने कहा था कि- 'डॉ. अंबेडकर और समिति के सदस्यों ने विषम परिस्थितियों में अत्यंत परिश्रम से यह प्रारूप तैयार किया, इसके लिए वे हमारी बधाई के पात्र हैं।
'जे.जे.एम. निकोल्स-रॉय ने कहा था कि 'संविधान निर्माण में डॉ. अंबेडकर और उनके सहयोगियों का कार्य महान है। यह सबसे उत्कृष्ट संविधान है जो परिस्थितियों में बनाया जा सकता था।' एच. जे. खांडेकर ने कहा था- 'यह भारत का कानून है जिसे डॉ. अंबेडकर ने बनाया है। यह कानून भारत को वास्तव में स्वर्ग बना सकता है।'
संविधान सभा में शामिल कई प्रांतों और कई अलग-अलग धर्मों व जातियों से आने वाले इन सदस्यों की टिप्पणियों से जाहिर होता है कि संविधान को बनाने का श्रेय सबने डा. अंबेडकर को ही दिया है। आधुनिक भारत के सबसे बुद्धिमान, दूरदर्शी और असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों में से उन्हें एक माना गया है। आज स्वतंत्र भारत में एकता, अखंडता, बंधुत्व, न्याय और विकास का जो ढांचा तैयार हुआ, वह डा. अंबेडकर की ही देन है, जिसमें नेहरू-गांधी के सपनों का भारत साकार हुआ। अब उस भारत के विचार को तहस-नहस किया जा रहा है। लेकिन यह पाप करने के लिए भी खुलकर हिम्मत नहीं दिखाई जा रही है, कायरों की तरह किसी की आड़ में प्रहार हो रहे हैं।