ललित सुरजन की कलम से- वियतनाम : एक अधूरी यात्रा-2
'मुझे साथ-साथ यह भी ध्यान आया कि अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में भी एक वियतनाम युद्ध स्मारक है जहां इसी हड़प नीति के चलते हजारों अमेरिकी सैनिकों को सुदूर वियतनाम में जाकर अपने प्राण गंवाना पड़े;
'मुझे साथ-साथ यह भी ध्यान आया कि अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में भी एक वियतनाम युद्ध स्मारक है जहां इसी हड़प नीति के चलते हजारों अमेरिकी सैनिकों को सुदूर वियतनाम में जाकर अपने प्राण गंवाना पड़े।
आज भी वाशिंगटन डीसी के इस वार मेमोरियल पर मृत सैनिकों के जन्मदिन या मृत्युतिथि पर उनके परिजन आते हैं, अगरबत्ती जलाते हैं, फूल चढ़ाते हैं और शिला पर उत्कीर्ण नाम पर उंगलियां फिराते हुए नि:शब्द रोते हैं। याद करना चाहिए कि वियतनाम युद्ध के दिनों में जो भी युवक सेना में भर्ती होने से इंकार करता था उसे जेल भेज दिया जाता था। उसे देशद्रोही माना जाता था।
अमेरिका के युद्धपरस्त शासकों ने उन मानवीय मूल्यों की भी कभी परवाह नहीं की जिनका उद्घोष अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणापत्र में किया गया है। मैं क्वांग त्री के राष्ट्रीय स्मारक में मृत सैनिकों की समाधि पर आए शोकाकुल परिजनों को देख रहा था और सोच रहा था कि युद्ध की कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।'
(देशबन्धु में 14 जून 2018 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/06/2.html