ललित सुरजन की कलम से- कुछ यात्रा चित्र-1
'महाकवि रॉॅबर्ट फ्रॉस्ट का कथन है कि 'शिक्षक दो तरह के होते हैं, एक वे जो विद्यार्थी को खूंटे से बांध कर रख देते हैं और दूसरे वे जो कुछ ऐसा करते हैं कि विद्यार्थी आकाश में उड़ान भरने के योग्य हो जाएं;
'महाकवि रॉॅबर्ट फ्रॉस्ट का कथन है कि 'शिक्षक दो तरह के होते हैं, एक वे जो विद्यार्थी को खूंटे से बांध कर रख देते हैं और दूसरे वे जो कुछ ऐसा करते हैं कि विद्यार्थी आकाश में उड़ान भरने के योग्य हो जाएं।
दूसरे प्रकार के एक शिक्षक हैं- खूबचंद मंडलोई। मंडलोई गुरुजी जयप्रकाश प्राथमिक शाला पिपरिया (मप्र) में 1952 से 1954 तक मेरे कक्षा शिक्षक थे।
अपने चालीस साल के अध्यापक जीवन में उन्होंने मुझ जैसे हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया। मंडलोईजी ने मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया था। उन्हें सेवानिवृत्त हुए भी दो दशक बीत चुके हैं, लेकिन विद्यार्थियों में ही नहीं, पिपरिया के नागरिकों के बीच वे उसी तरह सम्मान के पात्र व लोकप्रिय हैं जैसे कि वे शुरू से रहे आए हैं।'
'मुझसे तो पिपरिया कब की छूट गई, लेकिन उनके जो विद्यार्थी आज भी वहीं हैं उन्होंने गुरुजी का नागरिक अभिनंदन करना तय किया। मुझे भी आदेश मिला कि मैं 10 मई को आयोजित नागरिक सम्मान में अवश्य शामिल होऊं। ऐसे अवसर पर मना तो खैर कर ही नहीं सकता था, लेकिन अपने शिक्षक के नागरिक अभिनंदन में उपस्थित रहना सचमुच एक आह्लादकारी अनुभव था।
कार्यक्रम तीन घंटे चला व इसमें पिपरिया की नगरपालिका अध्यक्ष सहित समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हुए। हम पूर्व विद्यार्थी अपने गुरु का ऐसा सम्मान देखकर गद्गद् हुए जा रहे थे। तिरासी वर्षीय मंडलोईजी स्वयं भी अभिभूत थे।
आज जब भारतीय समाज में शिक्षकों का तिरस्कार व अवमानना हो रही है उस समय एक गुणी शिक्षक का सम्मान होना विरल अपवाद ही था। एक और महान लेखक जॉन स्टाइनबैक ने कहा था कि 'दुनिया की तमाम कलाओं में अध्यापन शायद सबसे बड़ी कला है और शिक्षक एक महान कलाकार ही होता है।'
मैं सोचता हूं कि यह कथन भी मंडलोईजी पर खरा उतरता है।'
(देशबन्धु में 15 मई 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/05/1.html