ई टेंडर घोटाला बना सलमान का हिरण, 3 हजार करोड़ के घोटाले में अंत में कोई दोषी नहीं

जब यह घोटाला उजागर हुआ था तब मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार थी, चुनाव होने जा रहे थे चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आई और इस महा घोटाले की जांच करने की बात कही। अब सभी दोषी बरी हो गए तो घोटाला किया किसने?;

Update: 2022-11-24 11:41 GMT
गजेन्द्र इंगले
 
ग्वालियर: मध्यप्रदेश का बहुचर्चित ई टेंडर घोटाला 2018 में हुआ था। प्रारंभिक जांच में इसे 3 हजार करोड़ का घोटाला माना गया था। लेकिन अब लोकायुक्त की विशेष अदालत यह साबित करने में नाकाम रही कि आखिर टेंडर से छेड़छाड़ किसने की। इसी वजह से विशेष न्यायाधीश संदीप कुमार ने इस मामले के सभी 6 आरोपियों को बरी कर दिया। अब यह बात समझ से परे है कि जब छेड़छाड़ हुई है और दोषी कोई नहीं तो आखिर ई टेंडर से छेड़छाड़ की किसने?
 
2018 में ईओडब्ल्यू के अनुसार प्रिक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ की गई थी। जिसमें जल निगम के 3, पीडब्ल्यूडी के 2, पीएचई के 2 पीआईयू का 1 और एमपीआरडीसी के 1 टेंडर में छेड़छाड़ की बात सामने आई थी। अहम बात यह है कि इस मामले में ईओडब्ल्यू ने हार्डडिस्क की एनालिसिस रिपोर्ट के बाद ही एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाबजूद न्यायालय में सरकारी पक्ष कोई पुख्ता सबूत क्यों नहीं पेश कर पाया यह एक बड़ा प्रश्न है। 
 
इस मामले में पहले जल निगम के 3 टेंडर में घोटाले का खुलासा हुआ था जिसमे प्रोक्यरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ कर करोड़ों रुपये के तीन टैंडर के रेट बदल दिए गए थे। हालाकिं मामला खुलने पर तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने तीनों टेंडर निरस्त कर दिए थे। इसके आगे की जांच में कई अन्य विभागों के ई टेंडर में भी छेड़छाड़ का खुलासा हुआ था। सभी ई टेंडरों में कुल मिलाकर 3 हजार करोड़ के घोटाले की बात सामने आई थी। 
 
इस घोटाले में मध्यप्रदेश इलेक्ट्रॉनिक विकास निगम के ओएसडी नन्द किशोर ब्रह्मे, ऑस्मो 
आईटी सॉल्यूशन के डायरेक्टर वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोवलकर, अंतोरेस कम्पनी के डायरेक्टर मनोहर और व्यवसायी मनीष खरे आरोपी थे। ईओडब्ल्यू ने कोर्ट में इन सभी के खिलाफ चालान पेश किया था । लेकिन 35 गवाहों को सुनने व सभी सबूतों को देखने के बाद कोर्ट ने सभी छह आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि सरकारी पक्ष कोई भी आरोप साबित नहीं कर सका है। 
 
जब यह घोटाला उजागर हुआ था तब मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार थी, चुनाव होने जा रहे थे चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आई और इस महा घोटाले की जांच करने की बात कही। लेकिन उस समय मध्यप्रदेश की राजनीति में हड़कंप मचाने वाला यह ई टेंडर घोटाला जांच में ही रफा दफा हो गया। इस मामले में जांच एजेंसी ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया। उस पर वास्तविक आरोपी बड़े ब्यूरोक्रेट्स व नेताओं को बचाने का दवाब था। जो आरोपी पकड़े गए उनके खिलाफ आरोप साबित ही नही हुए। ई टेंडर घोटाला तो हुआ लेकिन किसने किया यह साबित करने में सरकार नाकाम रही। 

 

 
 
 
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