राज-सत्ता को चुनौती का दुस्साहस

यह अच्छा लग रहा है कि अगर किसी शख्स या उसके अनुयाईओं ने राज-सत्ता को चुनौती देने का और उससे ऊपर निकालने का प्रयास किया तो पंजाब सरकार ने उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करके उसकी चुनौती को मटियामेट करने की पहल की है;

Update: 2023-03-22 03:44 GMT

- अरविन्द मोहन

आज निश्चित रूप से पंजाब और खास तौर से सिख समाज पुराने मूड में नहीं है। इसलिए अमृतपाल हों या कोई और उसके लिए कुछ लोगों के मन में हल्की सहानुभूति भर से कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करना संभव नहीं होगा। पंजाब और सिखों ने पिछले आंदोलन की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। यह बात याद रखनी होगी कि यह मामला सिर्फ कानून और व्यवस्था का नहीं है। यह राजनैतिक और सामाजिक है।

यह अच्छा लग रहा है कि अगर किसी शख्स या उसके अनुयाईओं ने राज-सत्ता को चुनौती देने का और उससे ऊपर निकालने का प्रयास किया तो पंजाब सरकार ने उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करके उसकी चुनौती को मटियामेट करने की पहल की है और इस काम में उसने राजनैतिक रूप से विरोधी रहे केंद्र सरकार की मदद लेने से गुरेज नहीं किया। इसी बात को दूसरे ढंग से भी कहा जा सकता है कि जब केंद्र ने देखा कि एक राज्य की सरकार से कोई चुनौती नहीं संभल रही है तो उसने सारे राजनैतिक मतभेद दरकिनार करके कार्रवाई की या राज्य सरकार के साथ मिलकर पहल की।

अब खालिस्तान की मुहिम को जिंदा करने में लगा अमृतपाल सिंह गिरफ्तार हुआ है या नहीं इसको लेकर दोनों तरह की बातें हैं। उसके समर्थकों के अनुसार उसे गिरफ्तार करके कहीं छुपाया गया है, जबकि सरकारी पक्ष के अनुसार उसके काफी सारे करीबी गिरफ्तार हुए हैं लेकिन वह तंग गलियों का सहारा लेकर भागने में सफल रहा है। साफ लगता है उसके पांव उखड़ गए हैं। उसके सहयोगियों को तो असम के जेलों में भेजा गया है और उसकी भी तलाश जोर-शोर से हो रही है। वह अब शायद ही बच पाए। असम में रखने का मतलब किसी को जेल से छुड़ाने के खतरे को कम करना है। पिछली बार दिन दहाड़े अमृतपाल और उसके सहयोगी अपने गिरफ्तार साथी को पुलिस की पकड़ से छुड़ा ले गए थे।

यह घटना बहुत बड़ी थी और पंजाब पुलिस तथा उससे भी बढ़कर आप की सरकार पर कई तरह के आरोप लगे। पुलिस ने तो ग्रंथ साहिब की पालकी की ओट के चलते गोलियां चलाने से परहेज किया लेकिन अतिवादी जमात ने यही माध्यम बनाया। आप पर देश-विदेश के खालिस्तान समर्थक अतिवादी जमातों से संपर्क रखने और चन्दा लेने का आरोप लगता रहा है-पिछले विधान सभा चुनाव में यह आरोप ज्यादा जोर-शोर से लगा और आप को हार का मुंह देखना पड़ा। अमृतपाल सिंह उसके बाद की पैदाइश है लेकिन आज उसके काफी अनुयायी हो गए हंै। असल में पंजाब में खालिस्तान का आंदोलन पिट गया, भिंडरावाले और उनके साथी समाप्त हो गए पर विचारों में इस अतिवादी धारा का अंत नहीं हुआ। बीस साल से जेल में बंद खालिस्तान समर्थकों की रिहाई को लेकर भी अमृतपाल के समर्थक चंडीगढ़ में पुलिस से भीड़ गए थे और 23 फरवरी को तो बड़ा कांड ही हो गया था

अब पंजाब से तो सिर्फ गिरफ्तारियों और छापों की खबरें ही आई हैं और पुलिस कार्रवाई के विरोध में किसी बड़े कार्यक्रम की खबर अब तक नहीं है। लेकिन इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कनाडा से ऐसी खबरें आई हैं। कई जगह तो हिंसक प्रदर्शन और लगभग हमले जैसी खबरें आई हैं। कुछ जगहों से आम सिखों द्वारा ऐसी घटनाओं की निंदा करने की रिपोर्ट भी है। इस बीच हमारी खुफिया पुलिस का दावा है कि अमृतपाल के आईएसआई और पाकिस्तान की अन्य एजेंसियों से संपर्क की पक्की सूचना मिल रही है। इस तरह के दावे कई बार हवाई भी होते हैं लेकिन किसान आंदोलन में घुसपैठ करके लाल किले पर हंगामा मचवाने से लेकर 23 फरवरी को अजनाला में थाने पर हमला करके अपने साथियों को छुड़वाने की जुर्रत करना कम बड़ा दुस्साहस नहीं है। हमने देखा है कि किस तरह निरंकारी बाबा की हत्या ने एक मामूली बढ़ाई को 'संत' बनवा कर अकाल तख्त का जत्थेदार बना दिया गया था। खुद भिंडरावाले का शिखर तक पहुंचना किसी चमत्कार की तरह ही था।

आज निश्चित रूप से पंजाब और खास तौर से सिख समाज पुराने मूड में नहीं है। इसलिए अमृतपाल हों या कोई और उसके लिए कुछ लोगों के मन में हल्की सहानुभूति भर से कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करना संभव नहीं होगा। पंजाब और सिखों ने पिछले आंदोलन की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। यह बात याद रखनी होगी कि यह मामला सिर्फ कानून और व्यवस्था का नहीं है। यह राजनैतिक और सामाजिक है। और जिस तरह की राजनीति अमृतपाल सिंह कर रहा है वही काफी कुछ दूसरे लोग कर रहे हैं।

भिवानी में जब गौरक्षकों ने दो लोगों को कार में जिंदा जला दिया तो मुख्य अभियुक्त को बचाने की 'लड़ाई' खुलेआम सड़क पर लड़ी गई और प्रेस कांफ्रेंस की गई। और अंत में यह हुआ कि मुख्य अभियुक्त का नाम ही केस में नहीं आया। सिख समाज को ग्रंथ साहिब से बेअदबी करने वाले बाबा राम रहीम को मिलने वाले सरकारी भाव से भी शिकायत रही है क्योंकि 2015 से आज तक उनका केस खुला ही नहीं है और हर बड़े मौके पर, खासकर चुनाव के समय, उनको पेरोल मिल जाता है।

उन पर हत्या जैसे गंभीर आरोप हैं। इससे भी ज्यादा साफ शरारत आजकल महाराष्ट्र में दिख रही है महीने भर से सकल हिन्दू समाज के नाम पर सारी हिंदुत्ववादी शक्तियां मिल-जुलकर महाराष्ट्र के सारे शहरों में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए क्या कुछ नहीं कर रही हैं और वहां की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। इस तरह के मामलों की बहुत लंबी सूची बनाई जा सकती है जिसमें सरकार के कर्ता-धर्ता लोगों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इशारा हो न हो लेकिन उनकी तरफ से प्रशासनिक कार्रवाई नहीं होती। वही प्रशासनिक कार्रवाई जिसके न होने पर कोई अमृतपाल सीधे शासन की ताकत को चुनौती देने का दुस्साहस कर बैठता है।

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