ठ्ठ ई-रिक्शा योजना का लाभ लेने आ रहे आगे

 शहर में तेजी से बढ़ रहे आटो एवं ई-रिक्शा के आने के बाद हाथ रिक्शा चालक एवं मालिकों की रोजी-रोटी पर जमकर असर पड़ा है;

Update: 2017-11-21 13:22 GMT

बिलासपुर। शहर में तेजी से बढ़ रहे आटो एवं ई-रिक्शा के आने के बाद हाथ रिक्शा चालक एवं मालिकों की रोजी-रोटी पर जमकर असर पड़ा है। रिक्शा चालकों की पूछपरख बंद होने के बाद से लोग परिवार चलाने के लिए रोजी मजदूरी करने को मजबूर हो गए। दशक भर पहले शहर के चारों तरफ रिक्शा ही रिक्शा दिखाई देते थे।

लेकिन जब से सवारी आटो और ई-रिक्शा की भरमार सड़कों पर आई है तब से शहर में चलने वाले 18 हजार के लगभग रिक्शा शहर से विलुप्त हो गए। वहीं छत्तीसगढ़ शासन ने मुख्यमंत्री ई-रिक्शा योजना के तहत हाथ रिक्शा चलाने वालों को 40 हजार अनुदान देकर उन्हें ई-रिक्शा चलाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस योजना का लाभ लोग ले रहे हैं।

चिंगराजपारा निवासी 55 वर्षीय सुखदेव ने बताया कि उसके पास खुद का अपना रिक्शा नहीं है वह रिक्शा गैरेज से किराए पर लाता है। प्रतिदिन की दर से वह 80 से 100 रूपये रिक्शा मालिक को देकर एक रिक्शा किराये पर लेकर आता है। उसने बताया कि सवारी बैठने के लिए पुराना बस स्टैण्ड, गोलबाजार, चांटीडीह आदि गली मोहल्लों पर भटकना पड़ता है। घंटों इंतजार व खून-पसीने बहाने के बाद दिनभर में केवल एक या दो सवारी ही मिल पा रही है। पहले जब आटो, सिटी बस, ई-रिक्शा नहीं थे तब दिनभर में 200 से 300 रूपये तक कमा लेता था। उसने यह भी बताया कि उसके कई साथी बेरोजगार घूम रहे हैं। 

चकरभाठा निवासी रिक्शा चालक अमरीत ने बताया कि वह 10 साल से मगरपारा चौक में रिक्शा लगाता है। इसी काम से वह अपने घर का आजीविका चला रहा है। दिनभर घूमने के बाद भी सवारी न मिलने से रात को भूखा सोना पड़ता है। पहले दिन भर की कमाई से घर का गुजर बसर चल जाता था लेकिन ई-रिक्शा के चलन में आने से हमारे तो खाने तक के लाले पड़ गये हैं।

ज्ञात हो कि एक दशक पहले न्यायधानी में हाथ रिक्शा चालकों की भरमार थी। पिछले कुछ सालों से पेट्रोल व डीजल सवारी वाहनों के बढ़ने से हाथ रिक्शा चालकों के रोजी-रोटी पर असर पड़ रही है वहीं 7-8 वर्षों से सिटी बस के शुरू हो जाने से इनकी स्थिति और खराब हो गई थी। लेकिन ई-रिक्शा के आने से तो इनका अकाल सा पड़ गया है। पहले शहर के हर गली-मुहल्लों पर 50 से 100 रिक्शा चालक चौक-चौराहों पर खड़े रहते थे।

पर अब आलम यह है कि हाथ रिक्शा शहर में देखने को नही मिलता है। यातायात के अन्य साधनों जैसे सिटी बस, आटो व ई-रिक्शा के आ जाने से रिक्शा चालकों की संख्या दिनों-दिन कम होती जा रही है। इनके परिवार के अन्य सदस्य भूखमरी व बेरोजगारी जैसी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। अब ऐसे में यह असहाय रिक्शा चालक अपना दुखड़ा किसके पास जा कर सुनाये।

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