यूपी चुनाव से पहले बीजेपी में हुए दो फाड़

यूपी विधानसभा चुनाव को 4 महीने का वक्त रह गया है. दूसरी पार्टियों के मुकाबले बीजेपी के लिए चुनावी राह थोड़ी ज्यादा कठिन है. क्योंकि उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकार है और महामारी के समय हुई अव्यवस्था से जनता ख़ासा नाराज़ है. जिससे पहले ही बीजेपी की सत्ता पर खतरा मंडरा रहा है ऐसे में अब मुज़फ्फरनगर में हुई किसानों की महपंचायत ने बीजेपी का डर और बढ़ा दिया है.;

Update: 2021-09-06 18:45 GMT

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं और प्रदेश में बीजेपी विरोधी माहौल बनता देख बीजेपी कार्यकर्ताओं की नीदें उड़ गई हैं. क्योंकि महामारी ने पहले ही योगी सरकार की छवि धूमिल कर दी थी अब इस महापंचायत में भी कहीं न कहीं बीजेपी पर ही निशाना साधा गया. लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है और वो अपने फैसले पर अडिग है. जबकि विपक्ष खुल कर किसानों का समर्थन कर रहा है. जहां सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता तो वहीं बीजेपी के ही कुछ लोगों को इस महापंचायत से चुनाव में नुकसान होने का डर सताने लगा है. जिस कारण से अब वो किसानों की वकालत करते नज़र आ रहे हैं . यानी किसानों के आंदोलन को लेकर बीजेपी चुनावी नफा-नुकसान पर बंटी हुई नजर आ रही है। जहां एक ओर पार्टी के कुछ नेताओं को लगता है कि तीन कृषि कानूनों को लेकर अड़े अन्नदाताओं के मुद्दे चुनावी संभावनाओं पर असर नहीं डाल पाएंगे। वहीँ  पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी का कुछ और ही मानना है। उन्होंने इस मसले पर किसानों से बातचीत की वकालत की है। पांच सितंबर, 2021 को मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद बीजेपी के कुछ सांसदों का मानना है कि इस आंदोलन को किसानों का समर्थन नहीं मिल रहा है बल्कि उनका कहना है कि टिकैत अपने समर्थकों को ही खो रहे हैं. इस आंदोलन का थोड़ा बहुत असर हो सकता है लेकिन उतना नहीं जितना विपक्ष सोच रहा है. लेकिन इसके उलट सांसद वरुण गांधी ने किसानों को ‘अपना ही भाई बंधु’ बताया और कहा कि सरकार को उनसे दोबारा बातचीत करनी चाहिए ताकि सर्वमान्य हल तक पहुंचा जा सके। गांधी ने कार्यक्रम स्थल पर जुटे किसानों की भीड़ से जुड़ा एक वीडियो ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा 

 

वरुण गांधी की मां मेनका ने भी उनकी बात से सहमति व्यक्त करते हुए वरुण के ट्वीट को रीट्वीट किया। गौरतलब है कि गाँधी परिवार से होने के बावजूद वरुण गाँधी और मेनका गाँधी हमेशा कांग्रेस विरोधी रहे हैं. लेकिन किसानों के मुद्दे पर पूरा गांधी परिवार एकजुट नज़र आ रहा है. उससे भी बड़ी बात है कि किसानों के मुद्दे पर बीजेपी के अंदर ही एकमत नहीं है. ऐसे में सरकार को किसानों को नज़रअंदाज़ करना भारी पड़  सकता है.

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