वैचारिक गिरावट की ओर तेजी से दौड़ती भाजपा
दक्षिण दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा बसपा सांसद कुंवर दानिश अली के खिलाफ कहे गए अपमानजनक और सांप्रदायिक अपशब्द ऐसी भाषा है जो सड़कों पर भी कही जाने योग्य नहीं है;
- जगदीश रत्तनानी
संसद में बनाई गई स्थिति से बाहर निकलने का एक आसान तरीका है। भाजपा नेतृत्व माफी मांग सकता है, प्रधानमंत्री सहित उसके वरिष्ठ नेता दानिश अली से मिल सकते हैं और उन्हें तथा राष्ट्र को आश्वस्त कर सकते हैं कि ऐसा दोबारा नहीं होगा एवं अपमानित करने वाले को उचित सजा दी जाएगी। भाजपा में शामिल और पार्टी के समर्थक लोगों में से कितने लोग सोचते हैं कि ऐसा रास्ता संभव है, वांछनीय है और यहां तक कि भाजपा के लिए लाभदायक भी है?
दक्षिण दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा बसपा सांसद कुंवर दानिश अली के खिलाफ कहे गए अपमानजनक और सांप्रदायिक अपशब्द ऐसी भाषा है जो सड़कों पर भी कही जाने योग्य नहीं है और जिसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, यह भाषा सत्ता पक्ष की ओर से संसद में बोली जा रही है। इस तरह की भाषा बहस के स्तर की गिरावट का प्रतिनिधित्व करती है। इस स्तर पर भाजपा प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकता और ध्यान आकर्षित करने की बीमारी में फंस गई है। इसके कुछ महत्वाकांक्षी सदस्य खतरनाक तरीकों से मंच हथियाने की कोशिश कर रहे हैं। बिधूड़ी के खिलाफ कड़ी और त्वरित कार्रवाई की कमी इस तरह के दुरुपयोग को वैध बनाती है। यह वास्तव में दूसरों को संदेश देती है कि इस कीचड़ में खेलना और 2024 के चुनावों की तैयारी के दौरान सांप्रदायिक घृणा के बढ़ते प्रसार में योगदान देना ठीक है। इसका हालिया उदाहरण भाजपा के एक अन्य सांसद का यह दावा है कि बिधूड़ी को उकसाया गया था। वह बयान भी इस मामले को और सांप्रदायिक बनाने का एक प्रयास है।
बिधूड़ी के अकथनीय और उग्र शब्द उस वक्त आए जब वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बचाव करते हुए दिखाई दिए। इसे सामान्य परिस्थितियों में और आदर्श रूप से प्रधानमंत्री के अपमान के रूप में देखा जाना चाहिए। आरोप का जवाब देने के अन्य तरीके भी हैं। विवाद उस समय शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री ने चन्द्रमा मिशन का श्रेय इसरो को देने के बजाय इसका क्रेडिट खुद लिया।
अपशब्दों का प्रयोग कर आरोपों का खंडन करने से कोई फायदा नहीं होता है बल्कि इससे आरोप सही साबित होते हैं। आरोपों के गुण-दोषों की परवाह न करते हुए देखें तो ऐसी हरकतों से प्रधानमंत्री और पार्टी को नुकसान होता है और इससे नेतृत्व को शॉक लगना चाहिए। इसके अलावा बिधूड़ी ने अपनी असभ्यतापूर्ण हरकत से संसद के नए भवन में संसद के पहले सत्र को ही अपवित्र कर दिया जिसे भाजपा अपनी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में पेश कर रही थी। बिधूड़ी ने भाजपा की इस उपलब्धि का अपहरण कर लिया है। खुद प्रधानमंत्री ने संसद की नई इमारत को 'सिर्फ एक नई इमारत नहीं बल्कि एक नई शुरुआत का प्रतीक' कहा है। बिधूड़ी ने उस 'नई शुरुआत' को एक बहुत ही अशुभ अर्थ दे दिया। उन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम यानी महिला आरक्षण विधेयक से भी ध्यान हटा दिया जिसे प्रधानमंत्री ने एक ऐतिहासिक कानून तथा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाला कहा था। बिधूड़ी की टिप्पणी उन पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए। कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद रविवार रात तक बिधूड़ी पर कार्रवाई न होना कई सवाल खड़े करता है।
इसमें मुख्य बात भाजपा की नई प्रकृति और चरित्र ही होना चाहिए क्योंकि वह 2024 का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। भाजपा को पूरा भरोसा है कि वह सत्ता में वापसी करेगी परन्तु ऐसा नहीं है कि उसे राहुल गांधी की ओर से मिलने वाले 'सरप्राईज' को लेकर कोई चिंता नहीं होगी। विपक्ष की एकजुटता को भले ही कुछ लोग एकजुट उपस्थिति के बजाय एक पैचवर्क समाधान के रूप में खारिज कर रहे हों लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस एकजुटता ने भाजपा को चिंता में डाल दिया है। सत्ता-विरोधी एक मजबूत लहर भी चल रही है। इस लहर को सशक्त करने के लिए विपक्ष अपनी बात लोगों तक ले जा रहा है और जिसे सोशल मीडिया पर अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। विपक्ष अपनी ओर से इसमें भाजपा के पसंदीदा उद्योगपतियों (राहुल गांधी के शब्दों में 'एक एकाधिकारवादी मित्र') जिनका पार्टी नेतृत्व ने लगातार समर्थन किया है, के बारे में तथा सांप्रदायिकता पर गहन सामग्री उपलब्ध करा रहा है। इसमें भाजपा के अमीर समर्थक और जनविरोधी दृष्टिकोण, नोटबंदी से लेकर ईंधन और गैस सिलेंडर की ऊंची कीमतों से लेकर हाल ही में 100 रुपये प्रति किलो बिकने वाले टमाटर तक का स्पेक्ट्रम चलाया गया है।
इन परिस्थितियों में और विशेष रूप से जब ऐसी खबरें हैं कि विपक्ष का इंडिया गठबंधन जोर पकड़ रहा है तो भाजपा के लिए सबसे आसान तरीका सांप्रदायिकता के मूल विषय पर वापस आना होगा। भाजपा में कई लोग ऐसा सोचते हैं कि जीत के लिए यह एक सुनिश्चित तरीका है और अगर यदि ऐसा कुछ है तो देश को एक भयानक चुनाव अभियान के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर उम्मीदवार प्रचार की स्वीकृत सीमा से आगे निकल जाते हैं और वे जगह-जगह से संसद में बिधूड़ी के कब्जे वाले स्थान पर दिखाई देते हैं।
दानिश अली ने खुलेआम अपना दर्द व्यक्त किया कि जिस रात यह टिप्पणी की गई थी, उस रात वह सो नहीं सके। बिधूड़ी के इस घटिया भाषण की प्रकृति, भाजपा नेतृत्व की चुप्पी ठीक उसी तरह की है जैसे संसद के बाहर दुर्व्यवहार और हिंसा का चक्र चल रहा है। उत्पीड़ित लोग जो सवाल सड़कों पर पूछते हैं कि 'आम लोग न्याय के लिए कहां जाएंगे?' वह अब संसद तक पहुंच गया है। लोकसभा के एक सदस्य ने कहा है-'हम न्याय के लिए कहां जाएं?' इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह राष्ट्र के लिए एक भयानक गिरावट है।
इस गिरावट की जड़ में भाजपा का यह विश्वास है कि आक्रामक रूप से प्रहार करना बचाव का सबसे अच्छा तरीका है, यह कि हिंसा हमारे मिर्जी में है और हिंसा का सामना दोगुनी हिंसा से किया जाना चाहिए, यह कि 'दूसरों' को नीचे रखा जाना चाहिए, यह कि नेतृत्व शब्द रूप, आकार और कार्रवाई में मर्दाना है। यह शक्ति और नियंत्रण की पुरानी भाषा है जो आज की दुनिया में समाप्त हो चुकी ताकत है। यह भाषा देश को कड़वाहट के कठोर और उजाड़ परिदृश्य के रूप में पेश करने काप्रतिनिधित्व करती है। हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर रहे हैं जिसमें अनुग्रह, प्रेम और एकजुटता के विचार नहीं हैं। बुनियादी ढांचे, व्यवसाय या आधुनिकता के अन्य उपकरण चाहे कितने भी उन्नत क्यों न हों, इन विचारों के अभाव में भारत एक राष्ट्र के रूप में नहीं बढ़ सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा को चुनौती देने के लिए इनमें से कुछ विचार सामने आएंगे। कांग्रेस ने हाल के दिनों में अक्सर 'प्रेम' की भाषा की बात की है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस बार भाजपा का प्रचार अभियान अच्छी तरह से चिकना-चुपड़ा, और भी अधिक चालाकी भरा, शानदार तरीके से वित्त पोषित तथा उचित समय पर आएगा।
पिछले लगभग एक महीने से इस अभियान के नमूने सोशल मीडिया पर सामने आ रहे हैं। भाजपा के संदेशों के साथ देश पर एक तरह की 'कार्पेट बाम्बिंग' की उम्मीद करें। मीडिया के चुनिंदा वर्ग उसकी जेब में होंगे। भाजपा के धन-बल के समक्ष विपक्ष का कोई मुकाबला नहीं होगा। फिर भी भाजपा की जीत की कोई गारंटी नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक बार कहा था- 'भारत में आप पैसे के अभाव में चुनाव हार सकते हैं, लेकिन आप कभी भी सिर्फ इसलिए चुनाव नहीं जीत सकते क्योंकि आपके पास पैसा है!' हालांकि धन के अनवरत प्रवाह से भरी भाजपा के पास संसाधनों का एक बड़ा भंडार है और यह कमी अभी भी विपक्ष को नुकसान पहुंचाएगी। हम औपचारिक रूप से चुनाव प्रचार के बिगुल फूंके जाने का इंतजार कर रहे हैं।
संसद में बनाई गई स्थिति से बाहर निकलने का एक आसान तरीका है। भाजपा नेतृत्व माफी मांग सकता है, प्रधानमंत्री सहित उसके वरिष्ठ नेता दानिश अली से मिल सकते हैं और उन्हें तथा राष्ट्र को आश्वस्त कर सकते हैं कि ऐसा दोबारा नहीं होगा एवं अपमानित करने वाले को उचित सजा दी जाएगी। भाजपा में शामिल और पार्टी के समर्थक लोगों में से कितने लोग सोचते हैं कि ऐसा रास्ता संभव है, वांछनीय है और यहां तक कि भाजपा के लिए लाभदायक भी है? इस तरह यह एक ऐसे राष्ट्र के लक्षण हैं जो चंद्रमा तक पहुंचने के लिए सारी रुकावटों को तोड़ सकता है लेकिन यह लोगों के दिल और दिमाग में नई बाधाएं पैदा करता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)