बिहारी युवा नितिन नबीन को ही क्यों चुना बीजेपी ने

बिहार के 45 वर्षीय युवा नेता नितिन नबीन के हाथों पार्टी की कमान सौंप कर बीजेपी ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है. वे इस पद पर पहुंचने वाले सबसे युवा नेता हैं;

Update: 2025-12-17 13:21 GMT

बिहार के 45 वर्षीय युवा नेता नितिन नबीन  के हाथों पार्टी की कमान सौंप कर बीजेपी ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है. वे इस पद पर पहुंचने वाले सबसे युवा नेता हैं.

नितिन नबीन को तत्काल प्रभाव से पार्टी का वर्किंग प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया है. बीजेपी की कमान संभालने वाले वे पहले बिहारी नेता हैं. यह सामान्य बात नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर भरोसे, संगठनात्मक परिवर्तन और आने वाले चुनावों की रणनीति का संकेत है. नितिन की नियुक्ति यह भी संदेश दे रही कि पार्टी में जेनरेशन नेक्स्ट का समय शुरू हो चुका है. यह निर्णय हर स्तर पर युवाओं की भागीदारी बढ़ाने का संकेत भी है. परंपरा के अनुसार जे पी नड्डा की जगह उनका बीजेपी अध्यक्ष बनना तय है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नितिन नबीन को एक कर्मठ कार्यकर्ता बताया है. अपने एक्स हैंडल पर उन्होंने लिखा - वे एक युवा और परिश्रमी नेता हैं, जिनके पास संगठन का अच्छा-खासा अनुभव है. बिहार में विधायक और मंत्री के रूप में उनका कार्य बहुत प्रभावी रहा है. वह अपने विनम्र स्वभाव के साथ जमीन पर काम करने के लिए जाने जाते हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि उनकी ऊर्जा और प्रतिबद्धता आने वाले समय में हमारी पार्टी को और अधिक सशक्त बनाएगी.

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वहीं, नितिन ने यह अवसर देने के लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और केंद्रीय नेतृत्व में सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया है. कहा, ‘‘पार्टी का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनूंगा, यह सपने में भी नहीं सोचा था. इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलने की जानकारी मिली तो सहसा विश्वास नहीं हुआ. यह भाजपा में ही संभव है. इसी पार्टी में साधारण कार्यकर्ता को भी कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी जा सकती है.'' मेरा मानना है कि जब आप एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में काम करते हैं, तो पार्टी के वरिष्ठ नेता हमेशा इस बात पर ध्यान देते हैं.

पांच बार चुने गए विधायक और तीन बार मंत्री

नितिन ने एक छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक करियर आरंभ किया था. वे 12वीं पास हैं. पिता के निधन के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी तथा पिता की विरासत संभालने राजनीति में उतर गए. उनके पिता स्व. नवीन किशोर सिन्हा भी बीजेपी के बड़े नेताओं में से एक थे. पिता की विरासत के अनुरूप वे प्रारंभ से ही शालीन व लो-प्रोफाइल रहे हैं. सहज सुलभ हैं, उनसे मिलना पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए भी काफी आसान रहा है. उन्होंने 2008 में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य तथा युवा शाखा के सह प्रभारी के रूप में काम किया. 2010-2013 तक वह भाजयुमो के सह प्रभारी रहे और 2016 से 2019 तक वे युवा मोर्चा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष रहे.

2006 में पटना की बांकीपुर सीट से पहली बार उन्होंने विधायक का चुनाव जीता. इस सीट से लगातार चुनाव जीतते हुए 2025 में पांचवीं बार विधायक बने हैं. फरवरी, 2021 में उन्हें पहली बार मंत्री बनाया गया था. फिर वे 2024 से 2025 तक मंत्री रहे. बीजेपी का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नितिन नबीन ने बिहार सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दिया है. वे पथ निर्माण और नगर विकास दो विभागों के मंत्री थे.

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नितिन का जन्म पटना में 23 मई,1980 को हुआ है. उन्हें एक पुत्र नैतिक नवीन व एक पुत्री नित्या नविरा है. विधानसभा चुनाव में दायर हलफनामे के अनुसार उनके खिलाफ पांच मामले दर्ज हैं और उनके पास 31 करोड़ रुपये की संपत्ति है. पटना के संत माइकल स्कूल से उन्होंने 1996 में दसवीं की परीक्षा पास की और 1998 में दिल्ली के स्कूल से इंटरमीडिएट (12वीं) किया.

छत्तीसगढ़ की प्रचंड जीत ने दिलाया भरोसा

संगठन पर भी नितिन की अच्छी पकड़ है. वे पार्टी के लिए लंबे अरसे से काम करते रहे हैं. इसका पुरस्कार उन्हें तब मिला, जब 2019 में उन्हें पार्टी ने सिक्किम में चुनाव प्रभारी बनाया. इसी साल उन्हें सिक्किम बीजेपी के संगठन प्रभारी का जिम्मा सौंपा गया. पिछले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने नितिन को छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी. उनके बेहतर चुनावी प्रबंधन से यहां बीजेपी को निर्णायक बढ़त मिली.

2018 में महज 15 सीट लाने वाली बीजेपी 2023 में 54 सीट वाली पार्टी बन गई. यहां उन्होंने चुनाव से पहले सांगठनिक स्तर पर कई तरह के बदलाव किए तथा बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया. छोटे-छोटे कार्यक्रमों के साथ ही व्यक्तिगत संपर्क अभियान चलाया, जिससे पार्टी की छवि बदली. कांग्रेस की सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद संगठन में नितिन का सियासी कद काफी बढ़ गया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली.

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राजनीतिक समीक्षक एस के सिंह कहते हैं, ‘‘राजनीति में उनका कद इतना बड़ा नहीं है कि वे शीर्ष नेतृत्व के लिए कभी चुनौती बन सकेंगे. इसे देखते हुए उम्मीद है कि मोदी-शाह के लिए वे एक आज्ञाकारी नेता के रूप में ही रहेंगे. जो भी निर्णय लेंगे, वे उनके अनुरूप ही लेंगे.'' वैसे नितिन पूरी ईमानदारी और तत्परता से दी गई जिम्मेदारी को निभाने के लिए जाने जाते हैं. आलोचक चाहें जो भी कह लें, उनके इसी समर्पण को देख पार्टी ने उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप राष्ट्रीय फलक पर ला खड़ा किया है.

बंगाल सहित अगले चुनावों पर नजर

सामाजिक समीकरणों के लिहाज से भी बीजेपी का यह निर्णय चर्चा में है. सिंह कहते हैं, ‘‘नितिन कायस्थ जाति के हैं. बिहार में इस समाज की आबादी भले ही एक प्रतिशत से कम हो, लेकिन कायस्थ भाजपा के पारंपरिक और भरोसेमंद वोटर रहे हैं. पार्टी का जनाधार जब इतना व्यापक नहीं था, तब सवर्ण ही उसकी ताकत थे. नितिन की नियुक्ति से यह मैसेज तो गया ही है कि शीर्ष पर पहुचने के बाद भी बीजेपी को सवर्ण याद हैं.''

यशवंत सिन्हा के बाद इस समाज के किसी नेता को इतने ऊंचे संगठनात्मक पद पर जिम्मेदारी दिए जाने का यह एक राजनीतिक संकेत तो है ही. देशभर में कायस्थों की आबादी करीब डेढ़ से दो करोड़ के बीच मानी जाती है. बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल में इनकी बड़ी आबादी है. बंगाल में इनकी आबादी 27 लाख के आसपास बतायी जाती है. सिंह कहते हैं, ‘‘पश्चिम बंगाल में होने वाला चुनाव नितिन की नियुक्ति का तात्कालिक कारण माना जा सकता है. वहां कायस्थों की आबादी तीन प्रतिशत से अधिक है. नितिन ने 2021 के बंगाल चुनाव में वहां काम भी किया था. वे वहां गैर हिन्दी भाषी व गैर बंगाली वोटरों को बीजेपी के पक्ष में लाने में कारगर हो सकते हैं.''

हिंदी भाषी, दलित व आदिवासी तथा कुछ इलाकों के उर्दू भाषी मुस्लिम बीजेपी को वोट देते रहे हैं. बांग्लाभाषी सवर्ण मतदाताओं में भी वे सेंध लगा सकते हैं. खासकर उस वर्ग में, जो एंटी इनकम्बेंसी या अन्य किसी कारणों से ममता बनर्जी से नाराज चल रहे हैं. हालांकि, इसके साथ ही एक बात और भी है कि बंगाल में चुनाव भाषायी आधार पर होते हैं, न कि बिहार की तरह जातीय आधार पर. 294 सीट वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में 2021 के चुनाव में बीजेपी को 77 सीट मिली थी. वैसे, यह तो चुनाव बाद ही पता चल सकेगा कि 2026 में नितिन नबीन यहां छत्तीसगढ़ वाली विजय पताका फिर लहरा सकेंगे या नहीं. किंतु, इतना तो तय है कि बीजेपी ने सेंकेंड लाइन लीडरशिप के तहत पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत कर दी है.

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