अब विश्व लेवल पर पहचान होगी छठ महापर्व की, बिहार कला सांस्कृतिक विभाग ने की है यह तैयारी
बिहार और उत्तर प्रदेश सहित पूर्वी भारत का महत्वपूर्ण त्योहार छठ महापर्व को अब विश्व लेवल पर पहचान करने के लिए बिहार सरकार के कला संस्कृतिक विभाग ने यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने के लिए संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार से अनुरोध किया गया है;
बिहार : बिहार और उत्तर प्रदेश सहित पूर्वी भारत का महत्वपूर्ण त्योहार छठ महापर्व को अब विश्व लेवल पर पहचान करने के लिए बिहार सरकार के कला संस्कृतिक विभाग ने यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने के लिए संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार से अनुरोध किया गया है . विभाग के सचिव प्रणव कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि छठ महापर्व बिहार एवं पूर्वी भारत की अनूठी सांस्कृतिक परंपरा है, जो सूर्य देव की पूजा पर केन्द्रित है. यह पारिस्थितिक संतुलन, साम्प्रदायिक सद्भाव, पवित्रता एवं सामुहिक भागीदारी का प्रतीक है. इस महापर्व में लोकगीत, अनुष्ठान, मौखिक परंपराएँ और सामुदायिक प्रथाएँ. जिन्हें पीढ़ियों से संरक्षित किया जा रहा है.कला एवं संस्कृति विभाग, बिहार,द्वारा छठ महापर्व को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए इसे यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू की गई है और उम्मीद है बहुत जल्द केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद पूरे विश्व में छठ महा पर्व की पहचान होगी।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के कला संस्कृतिक विभाग कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए हर कदम उठा रही है .राज्य सरकार ने कला के क्षेत्र में जीवन भर योगदान देने वाले वरिष्ठ, उपेक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर कलाकारों के लिए 'मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन योजना' की शुरुआत की है. इस योजना के तहत पात्र कलाकारों को ₹3,000 प्रति माह की पेंशन सहायता किये जाने का प्रावधान है, ताकि उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके.पटना, सारण, खगड़िया, कटिहार, पूर्णिया, बांका, भोजपुर, अररिया, जहानाबाद एवं किशनगंज जिलों के 85 कलाकारों का चयन 'मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन योजना' के लिए किया जा चुका है. अगस्त 2025 से ही कलाकारों द्वारा आवेदन दिए जा रहे हैं .हर जिले के डीएम इसकी समीक्षा करते हैं और कला सांस्कृतिक विभाग को भेजा जा रहा है यहां बैठक करके उ उन कलाकारों को पेंशन देने की प्रक्रिया की जाती है।
इसके साथ ही मुख्यमंत्री गुरु-शिष्य परंपरा योजना है जो विलुप्तप्राय कलाओं को संरक्षित करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने 'मुख्यमंत्री गुरु-शिष्य परंपरा योजना' शुरू की है .इस योजना के तहत अनुभवी कलाकारों को 'गुरु' और युवाओं को 'शिष्य' बनाकर पारंपरिक लोक कला, संगीत, नृत्य और वादन का प्रशिक्षण दिया जाएगा .अब तक कुल 233 आवेदन प्राप्त हुए हैं. प्राप्त आवेदनों की समीक्षा की जा रही है।
राज्य सरकार द्वारा सांस्कृतिक गतिविधियों को जिला स्तर पर संस्थागत रूप से बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक दूरदर्शी पहल 'अटल कला भवन का निर्माण' योजना की शुरुआत की गई ह .इस योजना के तहत राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में 620 दर्शक क्षमता वाले आधुनिक 'अटल कला भवन' का निर्माण करने की प्रस्ताव मिल चुकी है. सारण, गया, पूर्णिया, सहरसा, बेगूसराय, मुंगेर एवं दरभंगा जैसे जिलों में निर्माण कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया गया है. वहीं, लखीसराय और बांका में भवनों का निर्माण प्रगति पर है, तथा नवादा, शेखपुरा, अरवल, बक्सर, कैमूर (भभुआ), सिवान और अररिया में कार्य प्रक्रियाधीन है।