बड़े फैसले का दिन
कई विवादों के बीच 18वीं लोकसभा के लिये हुए मतदान के परिणाम मंगलवार को घोषित होंगे जिससे तय हो जायेगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ही नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की तीसरी बार सरकार बनती है;
कई विवादों के बीच 18वीं लोकसभा के लिये हुए मतदान के परिणाम मंगलवार को घोषित होंगे जिससे तय हो जायेगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ही नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की तीसरी बार सरकार बनती है या जनता उन्हें हटाकर विकल्प के रूप में उभरे इंडिया गठबन्धन को सरकार का आसन प्रदान करती है जिसका नेतृत्व कांग्रेस करेगी। यह भी देखना होगा कि इंडिया गठबन्धन सरकार की ओर से कौन प्रधानमंत्री बनाया जाता है। इन नतीजों को लेकर एक उत्सुकता और भी है, वह यह कि भाजपा द्वारा 370 तथा उसके नेतृत्व में बने एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस) के भरोसे 400 सीटें लाने का दावा कितना खरा उतरता है। हालांकि अब यह लड़ाई पार्टी एवं चेहरों से बढ़कर 'निरंकुशता बनाम लोकतंत्र' की हो चुकी है। इसलिये मंगलवार का दिन बड़े फैसले का है।
सात चरणों में चली मतदान प्रक्रिया समाप्त होते और नतीजों के आते-आते पूरा देश भीषण गर्मी में तप रहा है। कई लोगों की इसके कारण होने वाली मौतों के चलते केन्द्रीय निर्वाचन आयोग का यह निर्णय (लम्बी प्रक्रिया का) सवालों के घेरे में तो है ही, उसकी भूमिका सतत संदिग्ध रही है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने सोमवार को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इसे एक गलती माना है। बड़ी बात यह है कि विपक्ष को लगातार शिकायत रही है कि आयोग सीधे-सीधे सरकार के पक्ष में काम करता दिखा है। फिर वह चाहे चुनावी कार्यक्रम बनाने का मसला हो या फिर भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी समेत बड़े नेताओं को मानो आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने की छूट मिली हो। मोदी के लगभग सारे भाषणों में घोर सांप्रदायिकता की श्रेणी में आने वाले बयान थे लेकिन उनकी ओर से अनसुनी कर आयोग केवल विपक्षी दलों के नेताओं पर चाबुक चलाने में तत्पर रहा। कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर तथा उसके अनेक पिछले कामों के बारे में खुल्लमखुल्ला झूठ बोलकर श्री मोदी ने चुनावी माहौल को बहुत ही विषाक्त बनाया। उन्होंने धर्म का भी भरपूर उपयोग किया ताकि वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके।
लगभग डेढ़ वर्ष पहले तक जिन मोदी एवं भाजपा के लिये 2024 का चुनाव बेहद आसान माना जाता था, उसकी तस्वीर राहुल गांधी की दो यात्राओं ने बदल दी। मोदी-भाजपा के बरक्स चेहरे, विमर्श तथा संगठन तीनों ही स्तरों पर विकल्प तैयार हुए। इतना ही नहीं, संयुक्त विपक्ष भी खड़ा हुआ जो थोड़ी बहुत कमजोरियों व प्रारम्भिक कठिनाइयों के बावजूद सत्तारुढ़ दल को मजबूत टक्कर देने में कामयाब दिख रहा है और इसी के बल पर माना जा रहा है कि 370-400 तो दूर की कौड़ी है, भाजपा को सरकार बनाने के भी लाले पड़े हैं। बहुमत के लिये आवश्यक 272 का जादुई आंकड़ा भाजपा की पकड़ से दूर दिखता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का विवाद भी रहा है जिसे लेकर माना जा रहा है कि भाजपा को अगर कोई जीत दिला सकती है तो वे यही मशीनें हैं जिनके बारे में भाजपा, उसकी सरकार व निर्वाचन आयोग को छोड़कर सभी मानते हैं कि उसकी कार्यपद्धति दोषपूर्ण है।
यानी वह जनता के फैसले को सही तौर पर वोटों में नहीं बदलती। इसकी बजाये पुरानी प्रणाली यानी बैलेट पेपर के जरिये ही मतदान कराने की गुहार लेकर सुप्रीम कोर्ट गये वरिष्ठ वकीलों तथा लोकतंत्र के पक्ष में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों ने भरसक कोशिश की थी कि यह व्यवस्था या तो खारिज हो अथवा पूर्णत: दोषमुक्त हो; लेकिन बात बनी नहीं। इस चुनाव में भी ईवीएम सरकार के पक्ष में ही काम कर सकती है- इसका अंदेशा बहुतेरों को है। यह मतदान भी इसी संदेहास्पद मशीनों के जरिये हो रहा है इसलिये इंडिया के घटक दलों ने अपने कार्यकर्ताओं व पोलिंग एजेंटों को चौकन्ना रहने को कहा है। हालांकि उनकी निगरानी की एक सीमा है और अगर मशीनों के भीतर दर्ज जनता के निर्णयों को किसी तकनीक के बल पर बदला जाता है तो वे सिवा स्ट्रांग रूम्स के बाहर पहरेदारी करने के कुछ और कर सकने की स्थिति में नहीं है। जो होना होगा, वह दूर किसी रिमोट कंट्रोल के जरिये हो चुका होगा।
बहरहाल, चुनाव होने के ऐन पहले आये एक्जिट पोल्स ने अलग तरह की सनसनी फैला दी है। सरकार के साथ गलबहियां करने वाले मीडिया घरानों ने 1 जून की शाम से जो रूझान दिखाये हैं, तकरीबन उन सभी ने एक स्वर में फिर से भाजपा की बड़ी जीत के अनुमान बतला दिये हैं। आरोप ये हैं कि सरकार के इशारे पर दरबारी मीडिया भाजपा व एनडीए के पक्ष में वही संख्याएं बतला रहा है जो पाने का दावा अपने प्रचार में मोदी सहित बड़े भाजपा नेता करते रहे हैं। यह संख्या 350 से लेकर 390 तक है। हालांकि इन आंकड़ों की पोल इस प्रकार भी खुल रही है कि मुख्यधारा का मीडिया कई राज्यों में उतनी सीटों पर परिणाम दर्शा रहा है जितनी सीटें हैं भी नहीं। असली बात यह है कि लोग इन फर्जी आंकड़ों को, जिनमें भाजपा-एनडीए की बड़ी जीत बतलाई जा रही है, एक बड़े षड्यंत्र से जोड़ रहे हैं। कांग्रेस व इंडिया के नेता मानते हैं कि यह कोई बड़ी गड़बड़ी करने की पूर्व तैयारी का हिस्सा है। ये आंकड़े जारी करने के बाद अगर ईवीएम के डेटा में फेरबदल कर भाजपा को जिताया जाता है तो कोई शंका नहीं करेगा और इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाने पर उसे तवज्जो भी नहीं मिलेगी। ऐसे ही कृत्यों से पिछले 10 वर्षों में मोदी के नेतृत्व में लोकतंत्र को जैसा कुचला गया है, मंगलवार के परिणाम मुहर लगाएंगे कि जनता उसके खिलाफ है या मोदी-भाजपा को इसी तरह से अगले पांच सालों तक राज करने के अधिकार देती है। इसलिये यह बड़े फैसले का दिन है।