भीम गाथा- आधुनिकता संग शास्त्रीय नाट्य परंपरा के दर्शन

हरिहरन की दिलकश आवाज़ में गायी हुई 'फिराक़' गोरखपुरी की इस ग़ज़ल के साथ शास्त्रीय शैली में प्रस्तुत नाटक 'भीमगाथा' का पटाक्षेप होता है;

Update: 2023-05-20 04:49 GMT

- योगेश पांडेय

'रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये 

वाह री गफलत तुझे अपना समझ बैठे थे हम

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनियाँ समझ बैठे थे हम..' 

हरिहरन की दिलकश आवाज़ में गायी हुई 'फिराक़' गोरखपुरी की इस ग़ज़ल के साथ शास्त्रीय शैली में प्रस्तुत नाटक 'भीमगाथा' का पटाक्षेप होता है| भीम के हाथों में माया-दर्पण है जो बता रहा है कि द्रौपदी के मन में कर्ण के लिए आसक्ति थी| भीम को हमेशा लगता रहा कि द्रौपदी पांचो पांडवों में उसे तरजीह देती थी| नाटक समाप्त होने के अंतिम क्षणों में भीम की मनोदशा का बहुत बढ़िया परिचय देती थी ये ग़ज़ल| 

वैसे भी रंगमंच का स्वरूप निरंतर परिवर्तनशील रहा है| संवाद, संगीत, अभिनय के स्टाइल, मंच सामग्री हर तरह से बदलाव देखा जा सकता है| आसिफ़ अली द्वारा लिखित एवं विदुषी(पद्मश्री) रीता गांगुली द्वारा निर्देशित 'भीम गाथा' के मंचन के सन्दर्भ में भी यह बात कही जा सकती है| यह नाट्य प्रस्तुति एनएसडी द्वितीय वर्ष के छात्रों द्वारा की गई| 13 से 16 मई तक दिल्ली के अभिमंच सभागार में कुल 6 प्रस्तुतियां मंचित की गईं|  निर्देशिका विदुषी रीता गांगुली ने बताया कि छात्रों को शास्त्रीय रंगमंच यानि संस्कृत नाटकों के बारे में बुनियादी ज्ञान देने के लिए यह नाटक चुना|  भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के अनुसार यह प्रस्तुति तैयार करवयी है, ताकि छात्र और नए दर्शक भारतीय नाट्य परंपरा को भी जान सकें|  इसमें अभिनय हस्त मुद्राओं का प्रयोग करते हुए किया जाता है|  भीम वैसे तो एक ज्ञात पात्र है, पर यह नाट्य आलेख बिल्कुल नया है|  

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में संस्कृत नाटकों के मंचन के लिए एक स्थाई 'विकृष्ट मध्यम' भी निर्मित किया गया था| विकृष्ट मध्यम उस स्थान को कहते हैं जहाँ शास्त्रीय नाटक मंचित किये जाते थे| परंतु विकास के दौर में कुछ भी स्थायी नहीं है, यह करीब 25 बरस पहले की बात है| अब केवल कुछ पुराने दर्शकों के बीच उसकी स्मृतियाँ ही शेष हैं, क्योंकि उसके अवशेष भी नहीं बचे हैं| लेकिन भीमगाथा के मंचन के लिए अभिमंच सभागार को विकृष्ट मध्यम के रूप में परिणत किया गया था| 14 मई की शाम 7बजे के प्रदर्शन में नाटक की शुरूआत से पहले भरतनाट्यम की विख्यात गुरु पद्मश्री गीताचंद्रन ने जर्जरा की स्थापना की| नटी के आगमन के साथ नाटक आरम्भ हुआ| त्रिभंग मुद्रा में विदूषक का आगमन होता है, जिसे भीम से लात खाने की इच्छा है|

इस आलेख में भीम को महाभारत का हीरो जो सरल और विशाल हृदय है, परिवार-रक्षक और स्त्रियों के लिये आदर रखता है, इसी रूप में चित्रित किया गया है| प्रचलित कथाओं में भीम को बहुत खाने वाला, अनियंत्रित भूख वाला पेटू, झगड़ालू और क्रोधी स्वभाव का बताया जाता है| परन्तु महिलाओं के लिए उसके मन में बहुत सम्मान था| नाटक के अंत में भीम का मानवीय पक्ष देख सहानुभूति पैदा होती है| स्क्रिप्ट की भाषा सहज बोली जाने वाली है जिससे यह नाटक दर्शकों के लिए अधिक ग्राह्य बन गया है| संगीत, मंच व्यवस्था और प्रकाश संचालन इस नाटक का प्रबल पक्ष हैं| इस नाट्य प्रदर्शन में हेमंत(भीम), मंजुनाथ (हिडिम्ब एवं कीचक), अनीता(हिडिम्बा), मल्लिका(द्रौपदी) कुणाल (लकड़बघ़्घा), हिमांशु (शिव), गोकुल(हनुमान) जैसे अभिनेता प्रभावी रहे| नाटक समाप्त होने के बाद दर्शकों के बीच इन अभिनेताओं की चर्चा हो रही थी| 

 पटना से आये हरिशंकर को अच्छा लगा कि बिना एक भी संवाद के, कुणाल ने लकड़बघ्घे का किरदार बहुत संजीदगी से निभाया| पूछने पर एक अन्य दर्शक रामसेवक ने बताया कि उन्होंने करीब 3 सालों से नाटक देखना शुरू किया है| अब तो चस्का लग गया है, जब भी मौका मिलता है नाटक देखने पहुँच जाते हैं| यह पहला शास्त्रीय नाटक देखा है, पर हस्त मुद्राओं के साथ संवाद अदायगी देखते हुए पहले थोड़ा अजीब लगा| लेकिन नाटक मनोरंजक था| पात्र चयन को लेकर इन्हें लगा कि हिडिम्ब का रोल निभा रहे अभिनेता भीम के रूप में ज्यादा फिट लगता| लेकिन भीम महिलाओं का सम्मान करते थे यह पक्ष तो उनको अब समझ आया| लीलाधर जोशी के अनुसार नाटक की गुणवत्ता की नहीं बल्कि कन्टेंट पर जरूर कुछ कहा जा सकता है| वेद व्यास के महाभारत के अनुसार द्रौपदी ने कर्ण को स्वयंवर से बाहर कर दिया था l

इस भव्य नाटक के केवल 6 प्रदर्शन ही हो पाये यह जरूर विचारणीय है| ऐसे सुन्दर नाटकों को दर्शकों को दिखाया जाना चाहिए ताकि उनकी रूचियों का परिष्कार हो| लेकिन कैसे दिखाया जाय, ये सवाल बरसों से एनएसडी में जस का तस बना हुआ है|

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