शोभीपुर ही नहीं पत्रकारिता जगत की शोभा थे बाबू शेष नारायण सिंह...
देशबंधु के पोलिटिकल एडिटर रहे शेष नारायण सिंह की चौधी पुण्यतिथि पर उनके गांव शोभीपुर में कार्यक्रम हुआ;
शोभीपुर, सुल्तानपुर। देशबंधु के पोलिटिकल एडिटर रहे शेष नारायण सिंह की चौधी पुण्यतिथि पर उनके गांव शोभीपुर में कार्यक्रम हुआ। सुबह से देर शाम तक श्रद्धांजलि देने वालों का आगमन होता रहा। रूंधे गले से लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
देशबंधु संवाददाता ओम प्रकाश सिंह के शब्दों में कार्यक्रम को जानिए। जाना सबको है। कुछ शून्य में मिल जाते हैं तो कुछ अपनी यादों, कर्मों पर 'शेष' रह जाते हैं। शेष रह जाने वालों में एक नाम है देश के वरिष्ठ पत्रकार रहे बाबू शेष नारायण सिंह का। कोरोना से लड़ते हुए चार साल पहले सात मई को उन्होंने इहलोक से विदा ले लिया था।
बाबू शेष नारायण सिंह उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद में शोभीपुर के रहने वाले थे। लंभुआ से जब आप कादीपुर की तरफ लगभग ढाई किमी चलेंगे तो उनकी याद में स्मृति द्वार बना है। क्षेत्रीय विधायक ने बनवाया है। इस स्मृति द्वार से सौ मीटर आगे सड़क किनारे बायीं तरफ शेष नारायण सिंह के आवासीय परिसर में जाने के लिए एक विशाल गेट है।
अंदर प्रवेश करने पर बाएं हाथ बैठकी के लिए एक छप्पर है। विभिन्न प्रकार के आम, अमरुद, कटहल, रामफल के पौधों से सुसज्जित विशाल प्राकृतिक हाता है. इसी हाते में उनकी चौथी पुण्यतिथि मनी।
हाते के बाद पुराने व नए आवास में जाने के लिए गेट है। प्रवेश करने पर सामने श्याम कुंवरि आवास है जिसे शेष नारायण सिंह ने बनवाया था। बाएं हाथ पर खपरैल वाला पुश्तैनी आवास है। जहां शेष नारायण सिंह जन्मे और शोभीपुर का नाम देश दुनिया में रोशन किया। सामने एक मोटे तने वाला नीम का पेड़ है, जिसे उन्होंने अपने हाथ से लगाया था। इसके चबूतरे पर देश दुनिया के कई बड़े पत्रकार बैठकर गांव जहान की बातें कर चुके हैं। बाबू शेष नारायण सिंह के छोटे भाई सूबेदार सिंह रूंधे गले से बताते हैं कि भइया को नीम के इस पेड़ से बड़ा प्रेम था। एक बार उन्होंने भइया से कहा इसे कटवा देते हैं तो भइया ने कहा कितना पैसा मिल जाएगा। जवाब था लगभग पांच हजार तो बाबू शेषनारायण सिंह ने कहा हमसे पंद्रह हजार लो लेकिन यह कटना नहीं चाहिए।
पुण्यतिथि के अवसर पर अयोध्या के पूर्व विधायक जयशंकर पांडेय, बाबू शेषनारायण सिंह के साथ 15 सितंबर 1973 को मुंशी गेस्ट हाउस गोरखपुर विश्वविद्यालय में नौकरी का प्रथम इंटरव्यू देने वाले बड़े लेखकों में शुमार, संस्कृत हिंदी के विद्वान सुशील कुमार पांडेय साहित्येन्दु, बाबू अनिल सिंह के साथ हमने भी नीम पेड़ के नीचे दाल चावल ग्रहण किया। बाबू शेषनारायण सिंह की छोटी बिटिया टिनीचा व परिवारीजनों ने स्वंय भोजन परोसा।
पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए. शोभीपुर पढे़ लिखे लोगों का गांव है. यह इसलिए भी है कि बाबू शेष नारायण सिंह 'शिक्षित बनो' के पर्यायवाची थे।