हम अभिमन्यु नहीं अर्जुन हैं चक्रव्यूह बेधेंगे और बाहर भी आएंगे : राहुल

राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा था अभिमन्यु की तरह घेर कर मार नहीं पाओगे;

Update: 2025-11-16 22:00 GMT
  • शकील अख्तर

बिहार में वह सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बन गई 89 सीटों के साथ। क्या यहां भी वह महाराष्ट्र को दोहराएगी? सवाल सबके मन में है। मगर जवाब बहुत मुश्किल। मोदी बिल्कुल कोशिश करेंगे। अपना मुख्यमंत्री बनाने तक। मगर नीतीश को शिन्दे की तरह उप मुख्यमंत्री नहीं बना सकते। हां, नीतीश को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का वादा करके अपना मुख्यमंत्री जरूर बनवा सकते हैं।

राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा था अभिमन्यु की तरह घेर कर मार नहीं पाओगे। उन्होंने भाजपा द्वारा चक्रव्यूह रचने की बात करते हुए कहा था कि भारत के लोग अभिमन्यु नहीं अर्जुन हैं तोड़ कर बाहर निकल आएंगे। देश की आम जनता के साथ राहुल ने फिर यह बात अलग-अलग जगह युवा, पिछड़ों, दलितों के लिए भी कही। यह विश्वास ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। और अगर आप समझना चाहें तो यही उनकी राजनीति। लोगों पर विश्वास। और इसके साथ ही ठीक इसके उलट प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति है जहां जनता तो छोड़िए खुद अपनी पार्टी पर ही उन्हें विश्वास नहीं है। इसके दो उदाहरण। एक राहुल ने यह जो भाजपा द्वारा लोगों को चक्रव्यूह में फंसाए रखने की बात कही थी वह मोदी के लोकसभा में इसी गर्वोक्ति के बाद कही थी जिसमें उन्होंने खुद को अकेला ही सबसे लड़ने में समर्थ बताया था। एक अकेला सब पर भारी। और दूसरा उनकी ही पार्टी के लोकसभा सदस्य निशिकांत दुबे ने कहा था कि बिना मोदी के भाजपा कुछ नहीं है। चुनाव नहीं जीत सकती। अब बिहार के बाद यह कहा जा सकता है कि मोदी चुनाव ही नहीं जीतते बल्कि इतने ज्यादा बहुमत से जीतते हैं कि किसी को विश्वास ही नहीं होता। जनता तो पूरी तरह हैरान रह जाती है।

सब कह रहे हैं कुछ ज्यादा हो गया। भाजपा का 88 प्रतिशत स्ट्राइक रेट। उस राज्य में जहां वह कभी प्रमुख दल भी नहीं रही। बिहार में पहले कांग्रेस फिर लालू और फिर नीतीश की पार्टियां प्रमुख दलों में रहीं। मगर मोदी चुनाव आयोग से मिलकर यह कारनामा पिछले साल महाराष्ट्र में भी अंजाम दे चुके हैं। वहां 85 प्रतिशत का स्ट्राइक रेट। वहां भी भाजपा की गिनती कभी प्रमुख दलों में नहीं रही। कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना ही वहां प्रमुख दल रहे। मगर 2024 में भाजपा सिंगल लार्जेस्ट पार्टी 132 सीटों के साथ। अपना मुख्यमंत्री बना लिया। एकनाथ शिन्दे जो चुनाव नतीजों तक मुख्यमंत्री थे उन्हें उप मुख्यमंत्री बनने पर मजबूर कर दिया।

बिहार में वह सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बन गई 89 सीटों के साथ। क्या यहां भी वह महाराष्ट्र को दोहराएगी? सवाल सबके मन में है। मगर जवाब बहुत मुश्किल। मोदी बिल्कुल कोशिश करेंगे। अपना मुख्यमंत्री बनाने तक। मगर नीतीश को शिन्दे की तरह उप मुख्यमंत्री नहीं बना सकते। हां, नीतीश को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का वादा करके अपना मुख्यमंत्री जरूर बनवा सकते हैं।

मोदी इस समय क्या कर सकते हैं कोई नहीं बता सकता। उनके पास अकूत ताकत है। सारी संवैधानिक संस्थाएं हथियार डाल चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष गहन पुनरीक्षण ( एसआईआर) पर कुछ नहीं किया। 65 लाख वोट काट दिए गए। अभी केरल कांग्रेस ने 128 सीटों के आंकड़े देकर बताया कि किस तरह वोट काटने से वहां एनडीए जीता है। वोटर लिस्ट का काम कांग्रेस का करना पड़ रहा है।

कांग्रेस ने कहा कि वह दो हफ्ते में वह चुनाव धांधलियों के सारे सबूतों के साथ जनता के सामने आएगी। राहुल इससे पहले भी कर्नाटक में वोट चोरी और फिर हरियाणा की वोट चोरी के सबूत दे चुके हैं। मगर चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सब संवैधानिक संस्थाएं खामोश हैं।

एक अकेला राहुल सबसे लड़ रहा है। ऐसी अविश्वसनीय स्थिति देश में कभी नहीं हुई। चुनाव प्रणाली से लेकर लोकतंत्र सब पर इतने गहरे सवाल खड़े हो गए हैं मगर कोई बोलने को तैयार नहीं। यह तक बताने को तैयार नहीं कि बिहार की इतनी बड़ी जीत का कारण क्या है।

ऐसा कौन सा मुद्दा था जिस पर जनता ने एनडीए को 202 सीटें दे दीं। प्रधानमंत्री जीत के बाद तमाम बातें कर रहे हैं। यहां तक कि कांग्रेस में विभाजन भी करवा रहे हैं। मगर एक मुद्दा ऐसा नहीं बता रहे जिस पर लोगों ने उन्हें ऐसा अभूतपूर्व समर्थन दिया हो। 20 साल से वहां नीतीश की सरकार थी। जिसमें अधिकांश समय भाजपा पार्टनर रही। 11 साल से खुद मोदी की केन्द्र में सरकार है। तो क्या यह प्रो इन्कमबेन्सी वोट था। उनके काम से जनता इतनी खुश थी कि उसने महागठबंधन के रोजगार हर परिवार में सरकारी नौकरी की घोषणा पर कान ही नहीं दिए? रोजगार सरकारी नौकरी उसके लिए कोई विषय ही नहीं थे? केवल मोदी के चेहरे को देखकर वोट दिए? गोदी मीडिया का प्रचार तो यही है कि लोग मोदी के नाम पर वोट देते हैं। उन्हें किसी और चीज से कोई मतलब नहीं।

मान लो अगर ऐसा भी है तो फिर इतनी बड़ी जीत पर बिहार में जश्न क्यों नहीं? बिहार में भाजपा के कार्यकर्ताओं नीतीश के कार्यकर्ताओं के जश्न की कोई खबर नहीं आई। जीते हुए खेमे में भी खामोशी है। तो न कोई मुद्दा न कोई जश्न! मतलब यह जीत जनता की कार्यकर्ताओं की नहीं है। यही सबसे बड़ा सवाल है। जीत किसकी?

अगर केन्द्र सरकार इतनी मजबूत हो जाती है कि वह किसी भी चुनाव को कितने ही भारी बहुमत से जीत सकती है तो फिर कल जनता को तो छोड़िए सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी कौन पूछेगा?

लोकतंत्र की सबसे खराब अवस्था। जब सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव मशीनरी से मिल कर मनचाहे नतीजे लेने लगे। न्याय व्यवस्था खामोश रहे। और मीडिया इस जीत को उन कारनामों को सही ठहराए। कांग्रेस की गलतियां होंगी। तेजस्वी में कमी होगी। मगर क्या अगर एसआईआर के नाम पर 69 लाख वोट नहीं काटे गए होते, हरियाणा से ट्रेन भर-भर कर लोग नहीं ले जाए गए होते, बहुत बड़ी तादाद में नए नाम नहीं जोड़े होते, ऐसे लोग नहीं होते जिन्होंने हरियाणा में दिल्ली में फिर बिहार में वोट नहीं डाले होते तो भी क्या ऐसे ही नतीजे आते? कांग्रेस ने ऐसे 8 सवाल पूछे हैं। मीडिया में आपको कहीं नहीं दिखेंगे। गोदी मीडिया मोदी की हर चीज को जस्टिफाई करने के अलावा वह हर चीज छुपाता भी है जो उनके खिलाफ जाती है।

ऐसे में राहुल ही एकमात्र आशा की किरण नजर आते हैं। एक, उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वे डरते नहीं हैं। वैसे तो 2004 से जब से वे राजनीति में आए तब से उनके खिलाफ मगर सरकार में आने के बाद 2014 से बुरी तरह उनके खिलाफ अभियान चलाया गया। ऐसी कोई कोशिश नहीं छोड़ी जिससे राहुल को नुकसान नहीं पहुंचा सकें।

लोकसभा सदस्यता छिनने, मकान छिनने, ईडी की पूछताछ, दो दर्जन से ज्यादा मुकदमे, सड़क पर धक्का मारकर गिराने जैसी हरकतें -क्या नहीं किया? इसके अलावा हजारों करोड़ रुपया उनका चरित्र हनन करने पर खर्च किया गया। एक लड़ने वाले आदमी को पप्पू के रूप में चित्रित करने की कोशिश की गई। जो लोकसभा से लेकर विदेशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में वहां के सिनेटरों ( सांसदों, चुने हुए प्रतिनिधियों) के सामने बिना प्राम्प्टर के बोलता हो, हर सवाल को लेता हो उसे हल्का दिखाने की कोशिश की गई। प्रेस कान्फ्रेंस तो जाने कितनी करते हैं। हर सवाल लेते हैं। और अभी जब से वोट चोरी पर करना शुरू की है तो मंच पर अकेले होते हैं। बिना किसी सहायता के बोलते हैं।

भयानक विडम्बना है यह कि सैकड़ों पत्रकार यह सब अपनी आंखों से देखते हैं। प्रेस कान्फें्रसों में मौजूद रहते हैं। सवाल करते हैं। मगर यह कहने पर बताने पर मजबूर होते हैं कि राहुल नहीं वे मोदी ज्यादा साहसी हैं, बुद्धिमान हैं जिन्होंने 11 साल में आज तक एक प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की। जो बिना टेलिप्राम्प्टर के कहीं बोलते नहीं हैं।

मगर मीडिया के गलत चित्रण, मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत से लेकर अब कांग्रेस के विभाजन की उम्मीदों तक राहुल अविचलित रहे। उनके अंदर की हिम्मत और जनता के प्रति विश्वास ही वह ताकत है जिसकी दम पर वे भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ कर निकलने की बात करते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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