शीतकालीन सत्र में बढ़ेगा सियासी तापमान

संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरु हो रहा है, जो 19 दिसंबर तक चलेगा। सत्र शुरु होने से पहले रविवार को परंपरानुसार सर्वदलीय बैठक हुई;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-30 22:57 GMT

संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरु हो रहा है, जो 19 दिसंबर तक चलेगा। सत्र शुरु होने से पहले रविवार को परंपरानुसार सर्वदलीय बैठक हुई, जिसके बाद सरकार की तरफ से दावा किया गया कि सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए विपक्ष के साथ तालमेल बिठाया जाएगा। वहीं विपक्ष से उम्मीद जताई गई कि वह अपने सवालों को अध्यक्ष के जरिए सदन में उठाए और लोकतांत्रिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए संसद की मर्यादा बनाए रखे। सत्र को अकारण बाधित न करे। जिन लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादा की उम्मीद सरकार विपक्ष से कर रही है, असल में वही अब भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनने वाले हैं। क्योंकि विपक्ष ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि लोकतंत्र में मतदान के अधिकार को बचाने के लिए एसआईआर के खिलाफ बड़ी लड़ाई छेड़ी जाएगी और संसद में इस मुद्दे को पूरे दमखम के साथ उठाया जाएगा।

वहीं लालकिले के पास आतंकी हमला, दिल्ली का प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में तैयारी की कमी, आर्थिक सुरक्षा और कमजोर पड़ती विदेश नीति जैसे अहम मुद्दों पर भी विपक्ष सरकार से जवाब मांगेगा। लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई ने इस तरफ भी ध्यान दिलाया कि यह शायद अब तक का सबसे छोटा शीतकालीन सत्र होगा, जिसमें केवल 15 कामकाजी दिन ही होंगे। श्री गोगोई ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार खुद संसद को डिरेल करना चाहती है। वहीं राजद सांसद मनोज झा ने एक गंभीर बात कही है कि सरकार की तरफ ज़्यादातर राजनीतिक चर्चाएं आभासी होती हैं, जबकि जनता के बुनियादी मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि सरकार चुनावों से आगे भी सोचेगी। भारत की जीडीपी वृद्धि से लेकर एसआईआर विषय तक, इन पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए; वरना संसद सिर्फ एक संग्रहालय जैसी संरचना बनकर रह जाएगी।

दरअसल पिछले सत्रों को देखें तो मनोज झा की बात ही सच भी दिखती है कि सरकार की दिलचस्पी संसद चलाने से अधिक समय बिताने की है। अगर सत्र चलेंगे तो विपक्षी सांसद सवाल पूछेंगे, जिनके जवाब ऑन रिकॉर्ड देना सरकार की मजबूरी हो जाएगी। इसलिए सत्र सरकार की तरफ से ही कई बार बाधित किया जाता है। पिछले मानसून सत्र में यही हुआ। एसआईआर पर सरकार ने चर्चा नहीं होने दी और विपक्ष इसकी मांग करता रह गया। नतीजा यह हुआ कि 120 घंटों की जगह केवल 35 घंटे काम हुआ। इस बार भी ऐसा ही होने की आशंका बलवती है। क्योंकि बिहार चुनाव में धांधली के आरोप अब भी बरकरार हैं और इसके बाद प.बंगाल, उत्तरप्रदेश समेत 12 राज्यों में जो एसआईआर चल रही है, उसमें बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) की मौतें गंभीर मुद्दा बन चुका है। तृणमूल कांग्रेस की शुक्रवार को ही चुनाव आयोग के साथ दो घंटे बैठक हुई, जिसमें टीएमसी सांसदों ने मुख्य चुनाव आयुक्त के मुंह पर ही कह दिया कि चुनाव आयोग के हाथों में खून लगा है। हालांकि आश्चर्य की बात ये है कि ज्ञानेश गुप्ता ने इस बात से अनभिज्ञता जाहिर की कि कई बीएलओ एसआईआर के दबाव में अकाल मौत का शिकार हो चुके हैं।

बिहार के बाद चुनाव आयोग एसआईआर को अन्य राज्यों में शुरु कर चुका है। भाजपा भी यह मान रही है कि वह बिहार के बाद प.बंगाल को फतह कर लेगी और बाकी राज्यों में भी उसी की जीत होगी। संसद सत्र की तारीखों का काफी पहले ऐलान इसी अति आत्मविश्वास को दिखाता है। आम तौर पर संसद सत्र की तारीखों की जानकारी हफ्ते-दस दिन पहले दी जाती है, लेकिन इस बार 8 नवंबर को ही संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजीजू ने बता दिया था कि संसद का शीतकालीन सत्र कब से कब तक चलेगा। वह समय बिहार चुनावों का था। जिसमें जमीनी रिपोर्ट्स बता रहीं थी कि एनडीए के लिए हालात अच्छे नहीं हैं। एसआईआर में लाखों वोटों का कटना, कानून व्यवस्था का मामला, बेरोजगारी, महंगाई इन सबके साथ 20 बरसों की नीतीश सरकार के लिए एंटी इन्कमबेंसी जैसे कारक एनडीए का नुकसान दिखा रहे थे। वहीं महागठबंधन में लोग नयी उम्मीद देख रहे थे। तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के लिए जनता की पहली पसंद लगातार बने रहे और राहुल गांधी की लोकप्रियता बिहार में नरेन्द्र मोदी से ज्यादा थी, यह कई सर्वे में जाहिर हुआ। लेकिन भाजपा के नेता पूरी तरह आश्वस्त थे कि कुछ भी हो, सरकार उन्हीं की बनेगी। बल्कि अमित शाह ने तो सौ से ऊपर सीटें लाने का दावा किया था। और ऐसा ही हुआ भी, एनडीए को प्रचंड जीत मिली, जबकि विपक्ष ने बुरी हार झेली। इस पूरे घटनाक्रम में यही समझ आता है कि भाजपा भविष्यवक्ता तो नहीं है, लेकिन भविष्य में क्या होने वाला है, इसकी पूरी जानकारी उसे है। क्योंकि सारी संस्थाएं इस समय उससे तालमेल करके ही चल रही हैं। इसलिए बिहार चुनावों के बीच में शीतकालीन सत्र का ऐलान कर दिया गया। भाजपा शायद जानती थी कि वह बड़ी जीत दर्ज करेगी और संसद सत्र में इस जीत के उत्साह से लबरेज अपनी मनमानी चलाएगी।

हालांकि यहां भाजपा फिर भूल कर रही है कि विपक्ष हार के बाद कमजोर हो जाएगा। लोकसभा में विपक्ष अब भी उतनी ही ताकत रखता है, जितनी मानसून सत्र में रखता था। इसलिए एसआईआर के मुद्दे पर विपक्ष जब घेराव करेगा तो भाजपा के लिए उससे बचना आसान नहीं होगा। वैसे इस सत्र में सरकार असैन्य परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने के प्रावधान वाले अहम विधेयक 'परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025Ó के अलावा भारतीय उच्च शिक्षा आयोग विधेयक, राष्ट्रीय राजमार्ग (संशोधन) विधेयक, कॉरपोरेट कानून (संशोधन) विधेयक, 2025 जैसे कुल आठ विधेयकों को पारित करना चाहेगी। विपक्षी दलों के विरोध के कारण सरकार को केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने का प्रस्ताव से पीछे हटना पड़ा, वर्ना चंडीगढ़ पर केंद्र के कब्जे की तैयारी मोदी सरकार ने कर ली थी। बहरहाल, देखना होगा कि कल से लेकर 19 दिसंबर तक कितने दिन संसद काम कर पाती है।

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