छंटनी के साए में कैसे होगा व्यवसायों का विकास
भारत के आईटी सेवा क्षेत्र में एक स्टार परफॉर्मर रहा है। इसने अनुभवहीन इंजीनियरों को अनुभवी पेशेवरों में बदल दिया है;
- जगदीश रत्तनानी
आईटी सेवा क्षेत्र में जहां कार्यबल की छंटनी की जा रही है तब नियामक जबरन इस्तीफे, धमकियों और उचित प्रक्रिया के दुरुपयोग के आरोपों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। सारे आरोप सही नहीं भी होंगे लेकिन शिकायतें निराधार भी नहीं हैं। उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से इसका विरोध और उससे होने वाली सामाजिक उथल-पुथल सामने आई है।
भारत के आईटी सेवा क्षेत्र में एक स्टार परफॉर्मर रहा है। इसने अनुभवहीन इंजीनियरों को अनुभवी पेशेवरों में बदल दिया है और दुनिया भर में अनुबंधों और अवसरों को अपनी मुठ्ठी में कर लिया है। दूसरी ओर, भारत का लघु और मध्यम उद्यम (एसएमई) क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की अनकही रीढ़ है। यदि आईटी लाखों कर्मचारियों के साथ फर्मों की कम संख्या है तो एसएमई क्षेत्र में लाखों फर्म हैं जिनमें से प्रत्येक में श्रमिकों की कम संख्या है। इसके साथ ही वे भारत की विकास गाथा देखने के लिए दो लेंस प्रदान करते हैं। दोनों क्षेत्र भारत को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में योगदान देते हैं। तथ्य यह है कि इसे गर्व की बात माना गया है।
फिर भी इस खुशनुमा कहानी में एक ट्विस्ट है। खबरें हैं कि इन दोनों क्षेत्रों में छंटनियां हो रही हैं और छंटनी के लेंस से देखें तो यह एक ऐसी तस्वीर पेश करते हैं जो कम सुंदर है और आंशिक रूप से शायद सर्वथा बदसूरत भी।
आईटी सेवा क्षेत्र में जहां कार्यबल की छंटनी की जा रही है तब नियामक जबरन इस्तीफे, धमकियों और उचित प्रक्रिया के दुरुपयोग के आरोपों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। सारे आरोप सही नहीं भी होंगे लेकिन शिकायतें निराधार भी नहीं हैं। उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से इसका विरोध और उससे होने वाली सामाजिक उथल-पुथल सामने आई है।
यह भारत की कहानी का एक पक्ष है जो छंटनी के खिलाफ एक स्टैंड लेता है तो दूसरी तरफ उन श्रमिकों की एक कम ज्ञात कहानी है जो काम के भयानक बोझ से छंटनी और मुक्त होना चाहते हैं। तो भी उन्हें घर जाने की अनुमति नहीं है।
पिछले हफ्ते झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के तेरह प्रवासी श्रमिकों को राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद ही घर जाने की अनुमति दी गई थी। इन श्रमिकों को उनके नियोक्ता परेशान कर रहे थे। गुजरात के मोरबी जिले में एक कंपनी ने उन्हें भोजन और अन्य सुविधाओं से वंचित कर दिया और जब वे जाना चाहते थे तो वेतन देने से इनकार कर दिया। झारखंड सरकार के श्रम विभाग के हस्तक्षेप के बाद 13 लोग न केवल अपने घर लौटे बल्कि उन्हें उनके वेतन का बकाया 68,000 रुपये भी मिला। बताया जा रहा है कि कंपनी अब गुजरात में जांच के दायरे में है।
यह पहली बार नहीं है कि प्रवासी श्रमिकों, विशेष रूप से घर से दूर रोजगार की तलाश करने वाले आदिवासियों को बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया है। समाचार रिपोर्टें इस बात से भरी हैं कि कैसे छोटी इकाइयों में कंपनियों ने श्रमिकों को लाया है तथा कम मजदूरी देकर उनका शोषण किया है। उनके स्वास्थ्य, काम करने की स्थिति या यहां तक कि काम करने की इच्छा या अनिच्छा पर भी बहुत कम ध्यान दिया है।
आईटी क्षेत्र में नौकरी से जबरन बाहर निकलना और छोटी दुकानों एवं कारखानों में जबरन काम करना दो अलग-अलग बातें हैं जो भारत के विकास पथ की एक कहानी बनाते हैं। दोनों क्षेत्र विकास में योगदान करते हैं लेकिन काम के मानकों पर भी सवाल उठाते हैं और निजी क्षेत्र की सेवा शर्तों के बारे में भारतीयों के पारंपरिक संदेह को मजबूती देने का काम करते हैं। भारत के 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में कम प्रति व्यक्ति जीडीपी वाले अन्य देशों की तुलना में भी भारत को स्पष्ट रूप से 'बाजार विरोधी मान्यताओं' के रूप में उद्धृत किया गया है।
यह बाजार-विरोधी भावना निजी क्षेत्र के बारे में भरोसे को सीमित करती है तथा निजीकरण व उदारीकरण के एजेंडे के बारे में राजनीतिक सीमाएं निर्धारित करती है। क्रोनी कैपिटलिज़्म एवं कुछ पसंदीदा स्थानों के उदय ने ट्रस्ट कैपिटल पर और बोझ डाला है जिसने शेयरधारकों के लिए तो अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन बड़े पैमाने पर लोगों तथा समाज के लिए अच्छा करने के बारे में निजी क्षेत्र की क्षमता में लोगों का विश्वास कम हो गया है।
जब कंपनियां देखती हैं कि वे श्रम कानूनों के उल्लंघन से बच सकती हैं या श्रमिकों की गरिमा को कम कर सकती हैं अथवा अपने कार्यबल के संबंध में हालात बदतर कर सकती हैं तो इस तरह के उल्लंघन और अधिक होंगे। इसका एकमात्र तोड़ यह है कि इस तरह की गैरकानूनी गतिविधियों को सख्ती से रोका जाए, उन व्यवसायों पर कड़ा आर्थिक दंड लगाया जाए और यह संदेश दिया जाए कि उल्लंघनों पर दृढ़ और त्वरित कार्रवाई की जाएगी। यह सबसे अधिक बाजार समर्थक सुधार हो सकता है जिसकी भारत को आवश्यकता है। इस तरह के कदम उठाने से नागरिकों को यह देख और समझ सकेंगे कि यद्यपि अपने संसाधनों के कारण निजी क्षेत्र शक्तिशाली है इसके बावजूद उसे सामान्य श्रमिकों के समान कानून के मानकों पर रखा जाता है।
यदि किसी बर्खास्तगी को इस्तीफे के रूप में छिपाया जाता है तो यह देश के कानूनों का गंभीर उल्लंघन है। आईटी छंटनी के मामले में ऐसे आरोप लगाये जा रहे हैं। गुजरात में एक विनिर्माण इकाई के मामले में आरोप लगाया गया कि उसने दलालों के माध्यम से लोगों को दूरदराज के क्षेत्रों से लाया और उनसे बंधुआ मजदूरों के रूप में काम कराया। तब काम पर रखने वालों पर आजीवन प्रतिबंधित कर जेल भेज दिया जाना चाहिए। आज की गिरावट फिसलन भरी ढलान से आई है जहां उदारीकरण के नाम पर श्रम अधिकारों को थोड़ा-थोड़ा करके नष्ट कर दिया गया है। श्रमिकों का अनुबंधीकरण एक नए स्तर पर पहुंच गया है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकानॉमिक रिलेशंस के एक पेपर में कहा गया है: 'ऐसा प्रतीत होता है कि कंपनियां अपनी सौदेबाजी की शक्ति और मजदूरी की मांग को नियंत्रण में रखने के लिए सीधे काम पर रखे गए श्रमिकों के खिलाफ अपने रणनीतिक लाभ के लिए ठेका श्रमिकों का उपयोग कर रही हैं।'
उदाहरण के लिए आईटी सेवा क्षेत्र में सॉफ्टवेयर इंजीनियर सामान्य रूप से दिन में आठ घंटे से अधिक काम करते हैं जबकि उन्हें केवल आठ घंटे के लिए भुगतान किया जाता है। यह कार्य क्रूर और अवैध है लेकिन इसे सामान्य मान लिया गया है। जिस तरह आवश्यकता से कम काम करने का समय दर्ज किया जाता है और हिसाब किया जाता है उसी तरह सामान्य से अधिक समय काम करने की स्थिति में उसे रिकॉर्ड करने और उसके अनुसार भुगतान करने की आवश्यकता होती है लेकिन नैतिकता के इस सरल बिंदु को उन कंपनियों द्वारा नज़रंदाज़ कर दिया गया है जो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (आईएफआरएस) के अनुपालन में अपने अकाउंट्स की जानकारी देते हैं और वैश्विक स्तर पर पूंजी जुटाने की कोशिश करती हैं।
इसका उद्देश्य यह तर्क देना नहीं है कि कंपनियां श्रमिकों की छंटनी नहीं कर सकतीं या उन्हें फिर से प्रशिक्षित अथवा फिर से असाइन नहीं कर सकती हैं। परेशानी लोगों को हटाने में नहीं है- यह मुद्दा कार्य संस्कृ ति से जुड़ा है जिसने भारत में सीईओ की भूमिका में एक कमांडर-इन-चीफ के दृष्टिकोण को जन्म दिया है। यह कठोर पदानुक्रम एक ऐसे समय में है जब श्रमिक संघों ने उनके प्रभाव को छीन लिया है। प्रबंधन, शॉप फ्लोर की समस्याओं को अनदेखा कर काम करता है।
यह काम पर सिस्टम के प्रभाव का जबरदस्त उदाहरण है- एक बदलाव जो बेहतर माना जाता था उसने मामले को बदतर बना दिया है। यूनियनों को विकास और जीवंतता के लिए बाधाओं के रूप में देखा गया। विनियमन को व्यवसाय को सीमित करने के रूप में देखा जाता है लेकिन सक्रिय और जीवंत यूनियनों के बिना तथा व्यवसाय विकसित करने के लिए सहयोग करने वाले अधिकारी वर्ग के साथ ही व्यवसाय जीवंत और सुरक्षित हो सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)