अंग्रेजी रचनाओं का रोचक हिन्दी नाट्य रूपांतरण

किताब रूपांतरकार की नाटक के शिल्प पर गहरी पकड़ का जीवंत दस्तावेज;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-01 22:49 GMT
  • अरुण कुमार कैहरबा

यमुनानगर के प्रतिष्ठित मुकंदलाल नेशनल कॉलेज में वर्षों तक अंग्रेजी पढ़ाने वाले डॉ. इन्द्र पाल आनंद शिक्षा, साहित्य व नाटक की जान-मानी शख्यिसत हैं। हाल ही में उनकी किताब 'दो नाट्य रूपांतरण' आई है। किताब में अंग्रेजी के चर्चित लेखक जॉर्ज ऑरवेल के कालजयी उपन्यास 'ऐनीमल फार्म' का 'पशु बाड़ा' और लियोनार्ड मेरिक की कहानी 'द जजमेंट ऑफ पैरिस' का 'पैरिस का फैसला' शीर्षक से हिन्दी नाट्य रूपांतरण है। यह किताब इन्द्र पाल आनंद की नाटक के शिल्प पर गहरी पकड़ और रंगमंच के उनके अनुभवों को उजागर करने वाली है। किताब को पढ$कर नाटक देखने का आनंद प्राप्त हुआ महसूस होता है। नाटकों में दृश्य परिकल्पना, चुटीले संवाद, चरित्र-चित्रण, सूत्रधार व फ्लैश बैक तकनीक का प्रयोग देखते ही बनता है। यह किताब अंग्रेजी साहित्य को हिन्दी पाठकों के बीच ले जाने का सफल प्रयास भी है।

पहला नाटक 'पशु बाड़ा' ऊपर से पशुओं की कहानी दिखाई देता है, लेकिन भीतर से यह गहरी प्रतीकात्मक व व्यंग्यात्मक रचना है। रूस की क्रांति को संदर्भित करके लिखे गए नाटक के आईने में हम अपनी राजनैतिक व सामाजिक व्यवस्था देख सकते हैं। हमारे नेता राजनैतिक परिवर्तन, क्रांति व चुनावों के नाम पर झूठे वादे करके सब्ज बाग दिखाते हैं। लेेकिन बाद में वे वादों को भूल कर स्वार्थ साधने में जुट जाते हैं। कभी जिन आम लोगों को वे अपना साथी, सखा व प्रिय बताते नहीं अघाते थे, सत्ता हासिल करने के बाद उनसे मिलना भी दूभर हो जाता है। मीडिया को अपने प्रचार का माध्यम बनाकर वे लोगों की सोच व समझ में झूठ को सच की तरह से पेश करते हैं। इस नाटक में मेजर साहब नाम के बूढ़े भालू के भाषण से पशुओं में दो पैरों वाले मनुष्य द्वारा किए जा रहे शोषण का प्रतिरोध व प्रतिकार करने की चेतना पैदा होती है। वे क्रांति कर देते हैं। लेकिन क्रांति के बाद स्वार्थी लोग संघर्षशील लोगों को पीछे धकियाकर सत्ता हथिया लेते हैं। क्रांति के बाद तय किए गए आदर्शों को धीरे-धीरे हाशिये पर डाल दिया जाता है। नियमों और कानूनों को बदला जाने लगता है। सत्ता पर सूअरों और कुत्तों का वर्चस्व स्थापित हो जाता है। उन्हें विशेषाधिकार मिल जाते हैं। एक तरह से क्रांति के बाद सामंतवाद, अधिनायकवाद व तानाशाही स्थापित हो जाती है। बाकी लोगों का शोषण जारी रहता है, लेकिन उन्हें यह अहसास करवाया जाता रहता है कि उन्हें मनुष्य के शोषण से मुक्ति मिल गई। आखिर में सत्ताधारी सूअर मनुष्यों के साथ गलबहियां करते दिखाई देते हैं। तो नाटक के सूत्रधार गुरू (गधा) और कम्मों (घोड़ी) सवाल उठाते हैं कि क्या लोगों को बदलाव के सपने देखने बंद कर देने चाहिएं? नाटक के अंत में उठाया गया सवाल पाठकों को निराशा की तरफ ले जाते हुए दिखाई देता है, लेकिन नाटक में दिखाई गई स्थितियां कड़वे यथार्थ से रूबरू करवाती हैं और इसी में से रास्ते निकालने का भी संकेत करती हैं। रचना की नाटकीयता व रोचकता नाट्य रसिक पाठकों को शुरू से अंत तक ना केवल बांधे रखती है, बल्कि उन्हें अपने देशकाल के यथार्थ पर सोचने को मजबूर करती हैं।

दूसरा नाटक 'पैरिस का फैसला' फ्रांस की क्रांति के बाद की स्थितियों को उजागर करता है। हालांकि नाटक दो हास्य कलाकार मित्रों पर आधारित कॉमेडी है। दोनों एक ही अभिनेत्री से प्यार करते हैं। लड$की उन्हें विवाह के लिए अभिनय के मुकाबले में जीतने की चुनौती देती है। यह तय होता है कि अभिनय की उत्कृष्टता का निर्णय आम दर्शक करेंगे। यह मुकाबला उतार-चढ़ाव के साथ बहुत ही रोचक होता है। अभिनेत्री जैनी के साथ दोनों युवक कलाकार-रौबी और सैम जब बैठे होते हैं तो उनके पास पीटर नाम का जल्लाद आता है। फ्रांस की क्रांति के बाद जल्लाद अनेक लोगों को मशीन के जरिये मौत के घाट उतारता है। अब इस काम से उकता चुका है। पीटर को अपने जल्लाद के अनुभवों पर भाषण देना है, लेकिन वह इससे बचना चाहता है। रौबी उसे इस काम से बचने के लिए प्रलोभन देता है और उसके स्थान पर पीटर की भूमिका निभाते हुए जल्लाद के अनुभवों पर बहुत ही मार्मिक भाषण देता है। इससे वह अभिनय के मुकाबले में जीत के प्रति पूरी तरह आशान्वित है। लेकिन तभी एक नवाब उससे मिलने का प्रस्ताव देता है। रौबी पीटर के भेष में बूढ़े नवाब से मिलता है। नवाब उसे शराब पिलाता है और उसे बताता है कि उसके बेटे को उसी ने मौत के घाट उतारा है। उसने शराब में जहर मिला दिया है और कुछ समय के बाद उसकी मौत हो जाएगी। बाद में पता चलता है कि वह नवाब वास्तव में सैम है। बहुत ही नाटकीय अंदाज में जनता सैम के अभिनय को उत्कृष्ट बताती है और अभिनेत्री जैनी उसे जीवनसाथी स्वीकार करती है।

न्याय व्यवस्था के पतन और मृत्यु दंड के विषय को उठाकर नाटक सार्वभौमिक और कालजयी हो गया है। नाटक को पढ़ते हुए पाठकों में उत्सुकता चरम पर होती है। किताब में दोनों ही रूपांतरित नाट्य रचनाएं नाटक की दृष्टि से पूर्णत: सफल हैं। इन्हें नाटक के रूप में खेले जाने की जरूरत है। उम्मीद है कि अधिक से अधिक पाठक किताब को पढ़ेंगे।

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