हार के बाद कांग्रेस में उठने लगे विरोध के स्वर

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बिहार में भी प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाये जाने के साथ ही राजद से संबंध तोड़कर पार्टी को अपने बलबूते खड़ा करने की आवाज उठने लगी है;

Update: 2019-05-28 01:23 GMT

पटना। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बिहार में भी प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाये जाने के साथ ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से संबंध तोड़कर पार्टी को अपने बलबूते खड़ा करने की आवाज उठने लगी है। 

प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष चंदन बागची ने कहा कि कांग्रेस की हार की जिम्मेवारी लेते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है उसी तरह बिहार में जिन नेताओं को लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने की जिम्मेवारी मिली थी, उन्हें भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार में राजद के साथ गठबंधन से भी पार्टी को नुकसान ही हुआ है। पार्टी को बिहार में अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। वर्ष 2000 में ही कांग्रेस को राजद से संबंधों को तोड़ लेना चाहिए था और यदि उस समय ऐसा कर लिया गया होता तो आज पार्टी की यह स्थिति नहीं होती।

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने राजद तथा कांग्रेस के गठबंधन को बेमेल बताया और कहा कि राजद जातीय आधार पर घृणा की राजनीति करता है जबकि उनकी पार्टी की विचारधारा सामाजिक समरसता की रही है। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियों का वैचारिक स्तर पर कोई मेल नहीं है इसलिए बेहतर होगा कि कांग्रेस राजद के साथ अपना संबंध तोड़े और बिहार में अपने बलबूते पर संगठन को मजबूत करे।

कांग्रेस विधायक अमित कुमार टुन्ना ने बिहार में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए बिहार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य अखिलेश प्रसाद सिंह को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि श्री सिंह ने अपने बेटे को टिकट दिलाने के लिए अपनी ही पार्टी का नुकसान किया। कांग्रेस को 11 सीटें मिल रहीं थी लेकिन बेटे को टिकट दिलवाने के लिए श्री सिंह ने कांग्रेस के कोटे की सीट दूसरे दलों को दिलवा दी। 

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