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डिजिटल युग में बदलता भक्ति और आस्था का रूप

इस साल महाकुंभ में लाखों लोगों ने ना सिर्फ डिजिटल माध्यमों से गंगा जल मंगवाया बल्कि वर्चुअल दर्शन में भी खूब तेजी आयी

डिजिटल युग में बदलता भक्ति और आस्था का रूप
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भारत में इस साल महाकुंभ में लाखों लोगों ने ना सिर्फ डिजिटल माध्यमों से गंगा जल और प्रसाद मंगवाया बल्कि इसकी मदद से घर बैठे वर्चुअल दर्शन में भी तेजी आयी है.

महाकुंभ के दौरान सोशल मीडिया पर एक वीडियो की खूब चर्चा हुई. वीडियो में एक शख्स लोगों की पासपोर्ट साइज फोटो को गंगा में डुबकी लगवाकर उन्हें एक तरह से डिजिटल स्नान कराने की बात कह रहा था. हालांकि बहुत सारे लोगों ने इस वीडियो को एक 'मीम' की तरह लिया लेकिन डिजिटल डुबकी का यह आइडिया भारत में तेजी से फैल रहा है.

भारत में आध्यात्मिक तौर पर जुड़ाव रखने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है. इसका अंदाजा इस साल प्रयागराज में महाकुंभ से लगाया जा सकता है, जहां 43 दिनों के आयोजन में करीब 66 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया. यह पूरी दुनिया में सबसे बड़ा आयोजन था.

लेकिन भारत की सदियों पुरानी और विशाल धार्मिक व्यवस्था अब अभूतपूर्व डिजिटल क्रांति से गुजर रही है. जो पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा और अनुष्ठान कभी पूरी तरह से व्यक्तिगत और भौतिक हुआ करते, वे अब ऑनलाइन हो रहे हैं.

'श्री मंदिर' जैसे स्टार्टअप भक्ति को एक संगठित, तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था में बदलकर लोगों को वर्चुअल दर्शन, पूजा, चढ़ावा और दान जैसी तमाम सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं.

आस्था की अर्थव्यवस्था

भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था का आकार चौंकाने वाला है. आईएमएआरसी ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में यह बाजार लगभग 65 अरब डॉलर (लगभग 5-6 लाख करोड़ रुपये) का था और अनुमान है कि 2033 तक यह दोगुना होकर लगभग 135.1 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.

यह एक ऐसा विशाल और अनौपचारिक बाजार है, जिसका एक बड़ा हिस्सा अब तक मंदिरों और पुजारियों के पारंपरिक ढांचे तक ही सीमित था. यही वह जगह है जहां "फेथ-टेक" यानी धार्मिक तकनीक से जुड़ी कंपनियां अपनी जगह बना रही हैं.

डेटा प्लेटफॉर्म ट्रैक्सन के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में ऑनलाइन पूजा सर्विस में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि इस सेगमेंट में स्टार्टअप्स को होने वाली फंडिंग में साल-दर-साल 703 फीसदी की भारी वृद्धि हुई है.

'श्री मंदिर' जैसे ऐप्स इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. इसे 4 करोड़ से ज्यादा लोगों ने डाउनलोड किया है. इनमें से 12 लाख से ज्यादा यूजरों ने पिछले 12 महीनों में ऑनलाइन प्रार्थना और चढ़ावे जैसी सेवाओं का उपयोग किया है.

श्री मंदिर ऐप के फाउंडर और सीईओ प्रशांत सचान ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारा मकसद आस्था को तकनीक के साथ मिलाकर ऐसा अनुभव देना है, जहां लोग किसी भी समय, किसी भी स्थान पर अपने ईश्वर से उतनी ही निकटता महसूस कर सकें जितनी वे प्रत्यक्ष दर्शन में करते हैं."

पूजा से लेकर चढ़ावा: सब मिलता है यहां

डिजिटल भक्ति से जुड़े स्टार्टअप पूजा, चढ़ावा, दान, मंत्रों का जाप, पितरों की शांति के लिए यज्ञ और पूजा, त्योहारों से जुड़ी स्पेशल पूजा जैसी तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं.

कई स्टार्टअप अब पूजा सामग्री, गंगा जल, प्रसाद, मंदिरों की तरफ से दिये जाने वाले कुछ खास उत्पादों को भी लोगों तक पहुंचाते हैं. साथ ही श्री मंदिर जैसे प्लेटफॉर्म ने वाराणसी, प्रयागराज और अयोध्या के लगभग 50 से ज्यादा मंदिरों के दर्शन कराने का काम भी शुरू किया है. कंपनी की वेबसाइट के जरिए लोग यात्रा के पैकेज आदि बुक करा सकते हैं.

सचान ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हर अनुष्ठान पारंपरिक विधियों के अनुरूप ही सम्पन्न हो और भक्तों को वही शांति और संतोष मिले, जैसा कि वे मंदिर में जाकर अनुभव करते हैं. हमारी टीम का संकल्प है कि डिजिटल माध्यम से भी वही दिव्यता और गरिमा बरकरार रहे, जिससे करोड़ों लोग जुड़ाव महसूस करते हैं."

विदेशों में खूब हो रहा है इस्तेमाल

जर्मनी की म्यूनिख टेक्निकल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे अंकित शुक्ला ने हजारों किलोमीटर दूर बैठकर हाल ही में अपने पितरों की शांति के लिए पूजा करवाई.

अंकित शुक्ला ने डीडब्ल्यू हिंदी से बात करते हुए कहा, "मैंने म्यूनिख में बैठकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की मदद से गया (बिहार) में पितरों की शांति की पूजा करवाई. इस काम के लिए भारत जाने में समय और पैसा दोनों ज्यादा खर्च होता लेकिन श्री मंदिर की मदद से मेरा काम आसानी से हो गया."

एनएसएसओ सर्वे के अनुसार, भारत में हिंदू मंदिर अर्थव्यवस्था का आकार 40 अरब डॉलर होने का अनुमान है. मंदिरों की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अभी भी ऑफलाइन और अत्यधिक बिखरा हुआ है.

आस्था बनाम तकनीक का द्वंद्व

डिजिटल सेवाएं उन लोगों के लिए वरदान साबित हुई हैं जो शारीरिक रूप से यात्रा नहीं कर सकते, चाहे वह उम्र, स्वास्थ्य, या वित्तीय कारणों से हो. प्रवासी भारतीयों के लिए यह अपनी जड़ों से जुड़े रहने का एक जरिया है.

हालांकि सवाल यह भी उठता है कि क्या वर्चुअल पूजा उतनी ही प्रामाणिक है जितनी वास्तविक पूजा. क्या लाइव स्ट्रीमिंग पर एक पुजारी को देखना, मंत्रोच्चार सुनना, और प्रसाद की डिलीवरी प्राप्त करना भौतिक अनुभव की जगह ले सकता है.

बहुत से लोग मानते हैं कि मंदिर में उपस्थित होने, गंगा जल में स्नान करने और पुजारियों के साथ सीधे बातचीत करने का अनुभव डिजिटल माध्यम से नहीं मिल सकता. लेकिन उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर के महंत अक्षय भारती डिजिटल पूजा-पाठ के समर्थन में अपने तर्क देते हैं.

डीडब्ल्यू हिंदी को उन्होंने बताया, "पहले जहां हमारे मंदिर में इस तरह की पूजा 20-30 दिनों में होती थी, अब ऐप की मदद से एक दिन में 300 से ज्यादा पूजा रोज होती है. इस पहल के चलते ना केवल मंदिर की उपस्थिति को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली, बल्कि लाखों भक्तों के लिए ईश्वर से जुड़ने का नया अवसर भी पैदा हुआ है."

सितंबर की शुरुआत में ही हरिद्वार के सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में श्रद्धालुओं को घर बैठे दर्शन और वर्चुअल आरती जैसे अनुभव देने के लिए मंदिर की तरफ से 'एक ईश्वर' ऐप का शुभारंभ किया गया.

भारत जैसे देश में जहां कई बार लोगों की धार्मिक आस्था छोटी छोटी बातों से आहत हो जाती है. ऐसे में महज ऐप के जरिए लोगों के बीच विश्वसनीयता बना पाना आसान नहीं होगा.

इस पर सचान कहते हैं, "श्री मन्दिर में हमारा लक्ष्य केवल एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना नहीं है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक परंपराओं को आधुनिक युग की आवश्यकताओं से जोड़ना है. टेक्नोलॉजी हमारे लिए सिर्फ सुविधा का साधन नहीं, बल्कि आस्था को और गहरा करने का माध्यम है. हर सेवा, चाहे वह पूजा हो, अर्चना हो या दान, हम इस प्रकार उपलब्ध कराते हैं कि भक्तों की श्रद्धा, विश्वास और पवित्रता पर कोई आंच न आए."

डिजिटल भक्ति का भविष्य

डिजिटल भक्ति का भविष्य और भी रोमांचक और जटिल होने की संभावना है. आने वाले समय में, हम इन प्लेटफॉर्म पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और वर्चुअल रियलिटी (वीआर) जैसी तकनीकों का उपयोग देख सकते हैं.

एआई भक्तों को उनके अनुष्ठानों के लिए मार्गदर्शन दे सकता है, उन्हें शुभ मुहूर्त या त्योहारों की याद दिला सकता है, या उनकी पसंद के आधार पर भजन और मंत्रों की सिफारिश कर सकता है. यह लोगों के अनुभव को और व्यक्तिगत बना सकता है.

वहीं वीआर तकनीकें वर्चुअल तीर्थयात्रा का अनुभव प्रदान कर सकती हैं. सोचिए कि आप घर बैठे एक वीआर हेडसेट पहनकर केदारनाथ मंदिर की यात्रा कर रहे हैं या गंगा आरती में भाग ले रहे हैं. यह उन लोगों के लिए एक अद्भुत अनुभव होगा जो शारीरिक रूप से वहां मौजूद नहीं रह सकते.

यह निश्चित है कि डिजिटल भक्ति भारत में एक मजबूत और बढ़ती हुई ताकत बन गई है. यह सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा संगम है जो भारत की पहचान और आध्यात्मिकता को 21वीं सदी के अनुरूप ढाल रहा है.

भारत की सदियों पुरानी और विशाल धार्मिक व्यवस्था एक अभूतपूर्व डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रही है. जो पूजा पाठ, दान दक्षिणा और अनुष्ठान कभी पूरी तरह से व्यक्तिगत और भौतिक हुआ करते थे, वे अब ऑनलाइन हो रहे हैं. यह सिर्फ सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि पहुंच, सामूहिकता और पुरानी व्यवस्थाओं को चुनौती देने का भी है.


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