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यमुना एक्सप्रेस वे : मुनाफे की जमीन पर बनी हादसों की सड़क

उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार ने वर्ष 2003 में नोएडा से आगरा तक 165 किलोमीटर लंबे ताज एक्सप्रेसवे (यमुना एक्सप्रेसवे) के निर्माण का फैसला लिया था

यमुना एक्सप्रेस वे : मुनाफे की जमीन पर बनी हादसों की सड़क
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ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार ने वर्ष 2003 में नोएडा से आगरा तक 165 किलोमीटर लंबे ताज एक्सप्रेसवे (यमुना एक्सप्रेसवे) के निर्माण का फैसला लिया था। 7 फरवरी 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने एक्सप्रेसवे का शिलान्यास लखनऊ से किया था। इस एक्सप्रेस-वे को बनाने का जिम्मा जयप्रकाश एसोसिएट लिमिटेड को दिया गया था।

उस वक्त जेपी के पास कई सीमेंट फैक्ट्रियां थीं, जिसका इस्तेमाल एक्सप्रेस वे बनाने में भरपूर हुआ। एक्सप्रेस-वे का निर्माण करने पर जेपी को 38 साल तक टोल टैक्स वसूलने का अधिकार और नोएडा से आगरा के बीच एक्सप्रेस वे के किनारे पांच स्थानों पर पांच 5 हेक्टेयर जमीन दी गई थी। करार में नोएडा और ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे को भी जेपी ग्रुप को सौंपने की बात कही गई थी। इसके अनुसार नोएडा और ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे टोल टैक्स वसूलने की बात थी।

लेकिन 1 साल बाद ही सरकार बदलने के साथ एक्सप्रेस वे का काम रुक गया। 2007 में जब बसपा सरकार दोबारा बहुमत में आई तो इसका निर्माण शुरू हुआ। फिर इसका नाम बदलकर यमुना एक्सप्रेसवे कर दिया गया। बसपा सरकार इसे 2011 तक पूरा करना चाहती थी लेकिन चुनाव के चलते इसका उद्घाटन नहीं हो सका। सपा सरकार ने 2012 में इसे हरी झंडी दिखाई और यह एक्सप्रेस चालू हो गया।

यमुना एक्सप्रेसवे बनने से नोएडा से आगरा तक का सफर काफी कम समय में पूरा किया जा सकता है। इसीलिए बीते कई सालों से पुराने मथुरा रोड को छोड़कर अब ज्यादा से ज्यादा ट्रैफिक इसी एक्सप्रेसवे पर डाइवर्ट हो चुका है। जितना ज्यादा ट्रैफिक इस एक्सप्रेस वे पर ट्रांसफर हुआ है उतने ही हादसों की संख्या बढ़ गई है।

इन बढ़ते हादसों को रोकने के लिए आईआईटी दिल्ली ने इस यमुना एक्सप्रेसवे का सर्वे किया और मिली खामियों को यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी के सामने रखा। जिसके बाद उन खामियों को पूरा करने का काम शुरू हुआ।

आईआईटी दिल्ली द्वारा बताई गई खामियों को धीरे-धीरे जब पूरा किया जाने लगा तो साल दर साल हादसों में कमी आती दिखाई देने लगी। लेकिन उन जिंदगियों का क्या जिन्होंने इस एक्सप्रेस-वे पर दम तोड़ दिया। कम समय में ज्यादा ड्युरेबिलिटी और मुनाफे के लिए बनाई गई सीमेंट रोड कितनी कारगर है यह आपको इस रिपोर्ट से पता चलेगा।

क्या क्या खामियां बताई आईआईटी दिल्ली ने

आईआईटी दिल्ली ने यमुना एक्सप्रेसवे का सर्वे किया और बहुत सारी खामियां बताई। जिनमें से 7 सबसे बड़े मेजर पॉइंट यमुना अथॉरिटी के सामने रखे गए और बताया गया कि अगर इन्हें जल्द से जल्द पूरा कर लिया जाएगा तो इस रोड पर होने वाले एक्सीडेंट की संख्या कम हो सकती है।

1. एक्सप्रेस वे के प्रवेश और निकास द्वार पर जन सुविधाओं के पास रंबल स्ट्रिप लगाई जाए ताकि वहां पर वाहनों की गति कम हो सके।

2. निकास द्वार पर क्रश एंटीन्यूटर्स लगाए जाएं। एक्सप्रेस वे पर निकलते समय वाहन तेज गति से होते हैं। ऐसे में अगर वाहन अनियंत्रित होते भी हैं तो क्रश एंटीन्यूटर्स गाड़ी को क्षतिग्रस्त होने से बचाएंगे।

3. एक्सप्रेस वे पर साइन बोर्ड की संख्या बढ़ाई जाए इसमें स्टॉप टोल प्लाजा जन सुविधाएं दूरी आदि का जिक्र हो।

4. एक्सप्रेस वे के किनारे बैरियर को और ऊंचा उठाया जाए ताकि बाहर से जानवर आदि ना आ सके।

5. एक्सप्रेस वे पर बनाई गई लेन को खत्म किया जाए अभी बाइक, कार ओवरटेकिंग लेन तय है।

6. वाहनों की गति पर नियंत्रण के लिए चालान सिस्टम को और दुरुस्त किया जाए अभी चालान सिस्टम है लेकिन बहुत प्रभावी नहीं है।

7. डिवाइडर की जगह प्लस मीडियन बनाया जाए (यह प्लेन होता है लेकिन वाहन नहीं चलते)।

क्या कहते है रोड सेफ्टी एक्सपर्ट

इस मुद्दे पर हमसे बात करते हुए अभिनव सिंह चौहान, ट्रैफिक एंड ट्रांसपोर्टेशन एक्सपर्ट ने बहुत सारी जानकारियां साझा की। उन्होंने बताया कि सीमेंट रोड की लाइफ ज्यादा होती है और मेंटेनेंस कम होता है, इसीलिए ज्यादातर जगहों पर अब इसी को बनाने का काम चल रहा है। उन्होंने बताया कि सीमेंटेड रोड की जो पेवमेंट होती है वह हीट को ऑब्जर्व नहीं करती है और रिफ्लेक्ट कर देती है। जिसकी वजह से गाड़ी के टायर जल्दी गर्म होते हैं।

इसीलिए सीमेंटेड रोड की पेवमेंट रिजीड पेवमेंट कहलाती है और डामर रोड की पेवमेंट फ्लैक्सिबल और बिटमिनस पेवमेंट होती है। गाड़ी का आम टायर जो डामर रोड पर 40 हजार किलोमीटर तक चल सकता है। वह कंक्रीट या सीमेंटेड रोड पर महज 20 हजार किलोमीटर तक ही चल पाएगा। उन्होंने बताया कि रोड पर ड्राइव करने वालों का अलर्टनेस मोड कितना एक्टिव हो पा रहा है, यह भी देखना बेहद जरूरी होता है इसलिए जगह-जगह साइन बोर्डस जरूर लगे होने चाहिए, जिन पर लोगों की नजर पड़े।

थोड़ी थोड़ी दूर पर रेस्ट रूम्स और टी प्वाइंट जरूर होना चाहिए ताकि ड्राइवर बिल्कुल फ्रेश रहे। इसके साथ ही साथ रोड सेफ्टी एक्सपर्ट अभिनव ने बताया कि टायर कंपनी अभी अलग अलग तरीके के टायर बनाती हैं जितनी लग्जरी गाड़ी होगी उसके टायर उतने ही फ्लैक्सिबल होंगे और वह जल्दी खराब होते हैं क्योंकि वह गाड़ी और अंदर बैठने वालों की कंफर्ट पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। उनके मुताबिक अगर आपकी गाड़ी का टायर खराब है या काफी घिसा हुआ है तो फिर सीमेंटेड एक्सप्रेस वे पर ज्यादा सफर नहीं करना चाहिए वह खतरनाक हो सकता है।

क्या कहते है एक्सीडेंट के आंकड़े

यमुना अथॉरिटी ने बीते 7 साल के आंकड़ों को साझा किया है जिनके मुताबिक एक्सीडेंट्स में भारी गिरावट आई है। बीते 7 साल के आंकड़ों में 2022 में सबसे कम हुए अब तक एक्सीडेंट। यमुना अथॉरिटी के सीईओ अरुण वीर सिंह ने 2016 से लेकर अक्टूबर 2022 तक के एक्सीडेंट, मौत और चोट लगने के आंकड़ों को जारी किया है। जिनके मुताबिक 2016 से लेकर 2022 के बीच में अब तक 2022 में सबसे कम एक्सीडेंट अभी तक दर्ज किया गया है।

इन आंकड़ों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जिनमें एक्सीडेंट, मौत और चोट लगना शामिल हैं। यमुना अथॉरिटी के सीईओ ने बताया कि यमुना एक्सप्रेस वे पर पहले से अब एक्सीडेंट कम हुए हैं। इसकी वजह है कि पूरे एक्सप्रेस-वे पर दोनों तरफ 165 किलोमीटर में थ्राई बीम लगाया गया है। 172 बुलनोज लगवाए गए हैं। जगह-जगह और अट्यूनिटर भी लगे हैं। जिनकी वजह से ये हादसे कम हुए हैं।

आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो 2016 में जहां 1219 कुल हादसे हुए थे, वहीं 2022 अक्टूबर तक महज 249 हादसे हुए हैं। 2016 में जहां मौत का आंकड़ा 133 था, वहीं 2022 अक्टूबर तक महज 91 पहुंचा है।


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