लेखक राहुल सांकृत्यायन हिन्दू के सवाल पर भाकपा से हुए थे बाहर
हिंदी के अमर लेखक महापंडित राहुल सांकृत्यायन को इस्लाम के भारतीयकरण और हिंदी के सवाल पर भाकपा से निष्कासित कर दिया गया था ।
नयी दिल्ली। हिंदी के अमर लेखक महापंडित राहुल सांकृत्यायन को इस्लाम के भारतीयकरण और हिंदी के सवाल पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)से निष्कासित कर दिया गया था लेकिन बाद में उन्होंने अपनी भूल स्वीकार कर ली थी और तब उन्हें दोबारा पार्टी में शामिल कर लिया गया था।
वर्ष1948 में मुंबई में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक सम्मेलन में हिंदी के सवाल पर राहुल जी के भाषण के कुछ अंशों पर पार्टी ने आपत्ति दर्ज की थी लेकिन उन्होंने पार्टी के कहने पर अपने भाषण में उस अंश को हटाने से मना कर दिया जिसके कारण सांकृत्यायन को बाद में पार्टी से निकाल दिया गया।
भाकपा नेता अतुल कुमार अंजान ने सांकृत्यायन की 125 वीं जयंती के मौके पर बातचीत में कहा कि राहुल जी आजादी की लड़ाई के महान स्वतंत्रता सेनानी थे और वह हिंदी के बहुत बड़े लेखक भी थे।
आजादी की लड़ाई में वह चार बार जेल भी गए थे और करीब 140 ग्रंथों की रचनाएं भी की थी। वह 32 भाषाएं जानते थे। उनके जैसा महापंडित कोई नहीं हुआ। इसके साथ ही तिब्बत से 22 खच्चरों पर कई दुर्लभ पांडुलिपियां भी लाई थी । लेकिन वह हिंदी हिंदुस्तानी के विवाद में हिंदी के समर्थक थे और भारतीय भाषाओं में हिंदी को ही सर्वश्रेष्ठ स्थान देना चाहते थे जिस पर पार्टी ही नहीं बल्कि उस जमाने के तमाम बड़े लेखक सहमत नहीं थे और उन्होंने राहुल जी से अपनी असहमति व्यक्त की थी ।
कुमार ने कहा कि इसके बाद भी पार्टी के साथ राहुल जी का यह विवाद वर्षों तक चलता रहा और वर्ष 1955 के आसपास उनकी पार्टी की सदस्यता जारी नहीं रखी गई।
अंजान ने कहा कि पार्टी अपने बड़े नेताओं को निकालती नहीं है बल्कि उनकी सदस्यता का नवीनीकरण नहीं करती है। राहुल जी के साथ भी ऐसा ही हुआ, तब राहुल जी ने पार्टी के महासचिव अजय घोष को पत्र लिखकर अपनी भूल सुधार कर ली।
इसके बाद राहुल जी को दोबारा पार्टी में शामिल कर दिया गया।
भाकपा नेता ने कहा कि राहुल जी ने कभी पार्टी विरोधी गतिविधियों में भाग नहीं लिया था और वह चाहते थे की उन्हें दोबारा पार्टी की ओर से रूस भेजा जाए ताकि वह वहां रहकर और अध्यन कर सकें।
राहुल जी ने अपने जीवनकाल में हमेशा शोषितों पीड़ितों और किसानों के लिए आवाज उठाई तथा एक समतामूलक समाज बनाने का सपना देखा और उसके लिए जीवन भर वह संघर्ष करते रहे।
राहुल जी की जीवनीकार गुणाकर मुले ने भी लिखा है कि राहुल जी इस्लाम का भारतीयकरण करना चाहते थे और हिंदी उर्दू के संबंध में वह हिंदी के पक्षधर थे।
उन्होंने 1948 के मुंबई में हुए प्रगतिशील लेखक संघ में जो भाषण दिया था । उसकी प्रति पहले ही छप गई थी और पार्टी के नेताओं ने उसे पहले ही पढ़ लिया था।
उन लोगों ने राहुल जी से कहा कि वह आपत्तिजनक अंशो को हटा दें लेकिन राहुल जी इस पर सहमत नहीं हुए जिसके कारण उनका पार्टी से विच्छेद हो गया ।
मुले ने यह भी लिखा है कि 1937 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी में राहुल जी को व्याख्यान देना था तो उसकी अध्यक्षता पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी जिसमें श्री नेहरू ने कहा था कि देश के विश्वविद्यालयों में राहुल जैसे व्यक्तित्व को होना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि राहुल जी देश में भले ही प्रोफेसर ना बने लेकिन वह श्रीलंका और रूस में अतिथि प्रोफेसर बने। उनकी शिक्षा दीक्षा केवल मिडिल क्लास तक की हुई थी पर उन्हें यह गौरव भी प्राप्त हुआ।
उन्होंने बिहार के छपरा में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी और उन्होंने गया में आयोजित कांग्रेस के सम्मेलन तथा कानपुर में हुए कांग्रेस के महाधिवेशन एवं कराची में हुए महाधिवेशनों भी भाग लिया था ,लेकिन बाद में वह कम्युनिस्ट हो गए।
वह बिहार के छपरा में परसा मठ के महंत भी रहे। इसके अलावा उन्होंने जेल में रहकर वोल्गा से गंगा जैसी किताब लिखी जो मात्र 20 दिनों में पूरी की। इसके अलावा 19 दिनों में उन्होंने जेल में रहकर सिंह सेनापति जैसा उपन्यास भी लिखा ।
अंजान कहते हैं कि राहुल जी की स्मृति में पार्टी एक बड़ा आयोजन करेगी जिसमे किसानों की समस्याओं पर चर्चा होगी । राहुल जी किसान सभा के अध्यक्ष भी थे।


