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लेखिका बाबुषा कोहली बोलीं, शिक्षक होना असल में विद्यार्थी होना है

किताब 'भाप के घर में शीशे की लड़की' की लेखिका बाबुषा कोहली ने कहा कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के लाइव 'भाव संवाद' में कहा कि शिक्षक होना असल में विद्यार्थी होना है

लेखिका बाबुषा कोहली बोलीं, शिक्षक होना असल में विद्यार्थी होना है
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नई दिल्ली। किताब 'भाप के घर में शीशे की लड़की' की लेखिका बाबुषा कोहली ने कहा कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के लाइव 'भाव संवाद' में कहा कि शिक्षक होना असल में विद्यार्थी होना है। पेशे से शिक्षक हो जाने का अर्थ शिक्षक हो जाना नहीं है। लर्नर की भूमिका अपनाते हुए जब शिक्षक बच्चों के साथ जुड़ने की प्रक्रिया पर काम करते हैं, तब बच्चों का सीखना आसान होने लगता है। उन्होंने कहा, "शिक्षक होना एक जिम्मेदारी का काम है, क्योंकि शिक्षक पूरी पीढ़ी से संवाद में रहते हैं और इसके लिए शिक्षकों को अपने भीतर जाकर खुद को भी टटोलना होगा कि कहीं अनजाने में बच्चों तक कुछ गड़बड़ न सम्प्रेषित हो जाए।"

'भाप के घर में शीशे की लड़की' बाबुषा कोहली की तीसरी पुस्तक है जो कथेतर विधा की है और जिसे प्रकाशित किया है रुख पब्लिकेशन ने। 18 जुलाई की शाम 8 बजे 'भाव संवाद' बाबुषा कोहली अपनी इसी किताब पर बातचीत कर रही थीं। भारतीय ज्ञानपीठ और वागीश्वरी सम्मान से सम्मानित बाबुषा की पहली दोनों किताबें 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट' और 'बावन चिट्ठियां' प्रकाशित हो चुकी हैं।

इस बातचीत में उन्होंने, देश-दुनिया समाज के तमाम मुद्दों पर बात करते हुए कहा कि वो स्वप्नद्रष्टा हैं और एक ऐसे समाज का सपना देखती हैं, जहां किसी को किसी से ईष्र्या द्वेष न हो, प्रेम हो सद्भाव हो। उन्होंने कहा कि उनकी बात किसी यूटोपिया सी लग सकती है, लेकिन वो सचमुच ऐसे समाज का ही सपना देखती हैं, जो उनकी रचनाओं में नजर आता है।

उन्होंने कार्यक्रम के अंत में किताब का एक अंश भी दर्शकों को पढ़कर सुनाया। काय्र्रकम में मॉडरेटर की भूमिका निभा रही थीं लेखिका प्रतिभा कटियार।

कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के संस्थापक रश्मि रंजन परिदा ने बताया कि 'केएलएफ भाव संवाद' महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान साहित्यिक गतिविधियों को बरकरार रखने के लिए शुरू किया गया।


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