पहलवानों को न्याय की उम्मीद
भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने रविवार सुबह एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए नवनिर्वाचित कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया है

भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने रविवार सुबह एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए नवनिर्वाचित कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया है। बीते गुरुवार को ही संघ के चुनाव हुए थे, जिसमें संजय सिंह को अध्यक्ष चुना गया था। इन्हीं चुनावों में मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव उपाध्यक्ष पद का चुनाव हार गए थे। बहरहाल, अब संघ के निलंबन के साथ ही हार-जीत की ये बातें भी खारिज हो गई हैं। खेल मंत्रालय का अगला आदेश कौन सा होता है। इसमें निलंबन को लेकर मंत्रालय क्या फैसला लेता है।
क्या नए सिरे से चुनाव कराए जाएंगे। क्या अब सीधे लोकसभा चुनावों के बाद ही कुश्ती महासंघ में चुनाव होंगे या फिर जाट और राजपूत वोटों के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए चुनावों पर कोई फैसला लिया जाएगा। फिलहाल कई सारे सवाल कुश्ती के अखाड़े में खड़े हुए हैं, जिनके जवाब समय आने पर ही मिलेंगे। वैसे भारतीय कुश्ती संघ यानी डब्ल्यू एफ आई के अखाड़े में पिछले साल भर से जिस किस्म की उठा-पटक चल रही है, उसे देखकर यही लगता है कि अभी कई कठिन सवालों से भाजपा को जूझना होगा।
गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में ही साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया जैसे विश्वस्तरीय विजेता पहलवानों ने भाजपा सांसद और कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। इंसाफ की गुहार लगाते हुए कई पहलवान हफ्तों तक जंतर-मंतर पर धरना देते रहे। जिसके बाद खेल मंत्रालय ने कुश्ती संघ से 72 घंटे के अंदर आरोपों पर जवाब देने के लिए नोटिस भेजा। जिस पर संघ ने अपनी जवाबी चिठ्ठी में पहलवानों के आरोपों को ख़ारिज किया और कहा कि उनके पास यौन उत्पीड़न का एक भी आरोप नहीं आया है। कुश्ती में भारत का नाम दुनिया में रोशन करने वाले इन पहलवानों ने थक-हार कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की और फिर अलग-अलग आरोपों पर जांच शुरु हुई। देश के शीर्ष पहलवानों को ये उम्मीद थी कि जिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनके पदक जीतने पर उनकी हौसला अफजाई की, उन्हें अपनी बेटियों के समान बताया, वे कम से कम संसद से आरोपी ब्रजभूषण शरण सिंह को तो बर्खास्त करवा ही देंगे और बेटी बचाओ का नारा देने वाली भाजपा भी ऐसे आरोपी को पार्टी से निकालेगी।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ तो निराश पहलवानों ने अप्रैल में फिर से जंतर-मंतर पर धरना देना शुरु किया। न्याय के इंतजार में उनकी निराशा जब हद से अधिक बढ़ गई तो ये खिलाड़ी अपने पदकों को गंगा में बहाने के लिए हरिद्वार भी पहुंच गए। लेकिन तब किसान नेता नरेश टिकैत ने उन्हें रोक लिया। देश पहले साल भर का किसान आंदोलन देख चुका था। अब किसान और पहलवान एक साथ आते दिख रहे थे। हालांकि सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। इस बीच नये संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को हुआ और उसी दिन पहलवानों को जंतर-मंतर से जबरदस्ती हटा दिया गया। दिल्ली पुलिस ने देश को पदक दिलाने वाली महिला पहलवानों को किस तरह सड़क पर घसीटा, इसकी तस्वीरें देश आसानी से नहीं भूल सकता था, लेकिन लोगों को क्या पता था कि अभी ऐसी कुछ और तस्वीरें भी भविष्य में देखने मिलेंगी।
महिला पहलवानों के न्याय के संघर्ष में किसान और खाप पंचायतें सामने आईं तो खेल मंत्रालय भी हरकत में आया। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने सात जून को छह घंटे की लंबी बातचीत पहलवानों से की, और भरोसा दिलाया कि ब्रजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ जारी जांच 15 जून तक पूरी कर ली जाएगी। मगर पहलवान चाहते थे कि अब कुश्ती संघ में ब्रजभूषण शरण सिंह और उनसे जुड़े लोग चुनकर न आएं। साथ ही किसी महिला को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि महिला पहलवान सुरक्षित महसूस कर सकें। मगर ब्रजभूषण शरण सिंह संसद में बने ही रहे और इस बीच बीते गुरुवार को जब चुनाव हुए तो उनके करीबी संजय सिंह को 47 में से 40 वोटों के साथ अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।
जबकि संजय सिंह के खिलाफ उतरी कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक विजेता अनीता श्योराण को सिर्फ 7 वोट मिले थे। इस चुनाव के बाद ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर कुश्ती से अपने संन्यास का ऐलान किया और रोते हुए अपने जूते छोड़कर चली गईं। साक्षी के रखे हुए जूतों की ये तस्वीर सत्ता से सवाल करती रही कि आखिर महिला पहलवानों को कब तक इंसाफ की लड़ाई लड़नी पड़ेगी। इसके बाद बजरंग पुनिया ने अपने पद्मश्री को वापस लौटाने का ऐलान किया और पदक को प्रधानमंत्री मोदी के आवास के बाहर बने फुटपाथ पर रख कर अपना विरोध दिखाया। एक अन्य पहलवान वीरेंद्र सिंह ने भी पद्मश्री लौटाने का ऐलान कर दिया।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बहुत से लेखकों असहिष्णुता के विरोध में सम्मान वापस किए थे। और अब खिलाड़ी उसी राह पर बढ़ते दिखे। हालांकि दो-दो बार बहुमत से सत्ता पर काबिज भाजपा की सेहत पर ऐसे विरोधों का कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन छवि को दाग जरूर लगता है। पहलवानों के मुद्दे में दाग गहराने का जोखिम ज्यादा बढ़ सकता है, क्योंकि इसमें किसानों, खाप पंचायतों के साथ जाट वोटों का मामला भी जुड़ गया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री मामले को भाजपा ने जाट अस्मिता से जोड़ा था, लेकिन दो ही दिन में साक्षी मलिक के संन्यास के ऐलान से जाट अस्मिता का सवाल भाजपा पर उल्टा पड़ता दिखा। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और हाल ही में जीते गए राजस्थान में जाट मतदाताओं को साधना भाजपा को कठिन पड़ सकता है। यह कठिनाई और बढ़ती इससे पहले ही कुश्ती संघ के निलंबन का फैसला आ गया। फिलहाल इसका कारण जूनियर नेशनल चैंपियनशिप गोंडा में कराने के फैसले को बताया गया है। मंत्रालय इस बात से नाराज दिख रहा है कि नए संघ ने खेल संहिता की पूरी तरह से अनदेखी की है।
बहरहाल, कुश्ती संघ के निलंबन का असल कारण चाहे जो रहा हो, फिलहाल इस फैसले से पहलवानों को फिर से न्याय की उम्मीद दिख रही है। खबर है कि बजरंग पुनिया अपना पद्मश्री वापस ले सकते हैं और साक्षी मलिक संन्यास का फैसला बदल सकती हैं। लेकिन मूल सवाल फिर भी बरकरार रहेगा कि खेल संघों में किसी भी तरह से खिलाड़ियों का शोषण कैसे रोका जाएगा। कैसे संघों को दबदबा कायम है, वाली मानसिकता से मुक्त कराया जाएगा।


