Top
Begin typing your search above and press return to search.

संविधान बचाने की चिंता

22 मार्च से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही है और हमेशा की तरह देश भर के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी

संविधान बचाने की चिंता
X

22 मार्च से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही है और हमेशा की तरह देश भर के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी। भारत में बरसों से ऐसा ही होता आया है, और धीरे-धीरे फिल्मों, टीवी धारावाहिकों और भक्ति से जुड़े चैनलों के कारण पूजा-पाठ का प्रसार कुछ अधिक हो गया है। पिछले कुछ वक्त में राजनीति का चरित्र भी बदला है तो अब राजनेताओं की पूजा-पाठ, व्रत, हवन भी सार्वजनिक कार्यक्रम बन गए हैं। देश के धार्मिक और राजनैतिक चरित्र में बदलाव के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब उत्तरप्रदेश सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों को चैत्र नवरात्रि और रामनवमी के दौरान मंदिरों में विशेष धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने को कहा है।

योगी सरकार इन कार्यक्रमों में प्रदर्शन करने के लिए चुने गए कलाकारों को मानदेय के रूप में भुगतान करने के लिए प्रत्येक जिले को 1 लाख रुपये भी उपलब्ध कराएगी। राज्य के संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने 10 मार्च को जारी एक आदेश में कहा है कि चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दौरान नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, इसलिए इस अवधि में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन प्रस्तावित है।

यह आदेश सभी जिला मजिस्ट्रेटों और संभागीय आयुक्तों को भेजा गया है। पत्र में कहा गया है कि प्रत्येक ब्लॉक, तहसील और जिले में आयोजन समितियों का गठन किया जाना चाहिए। यह सुझाव भी दिया गया है कि मंदिरों और 'शक्तिपीठों' में दुर्गा सप्तशती और अखंड रामायण का पाठ कराया जाए। आदेश के अनुसार, आयोजकों से संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर तस्वीरें अपलोड करने की अपेक्षा की जाती है। आदेश में कहा गया है कि जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाए और बड़ी जनभागीदारी सुनिश्चित की जाए।

उत्तरप्रदेश सरकार के इस फैसले के बाद यह सवाल उठता है कि क्या यह राज्य संविधान के अनुसार चलेगा या धर्म के आधार पर। और धर्म का मतलब यहां हिंदू धर्म से है, क्योंकि बाकी धर्मावलंबियों को हिंदुत्व के पैरोकार विधर्मी कहते हैं। कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने के सवाल पर छात्राओं के साल के साल बर्बाद हो रहे हैं। लेकिन वहां धर्मनिरपेक्षता का तकाजा दिया जा रहा है कि शैक्षणिक परिसरों में धार्मिक पोशाकों की अनुमति नहीं दी जा सकती। हिंदुस्तान के कई स्कूलों में देवी सरस्वती की मूर्ति बनी हुई है।

प्रार्थना के बाद बच्चे गायत्री मंत्र का पाठ करते हैं। बोर्ड परीक्षाओं से पहले स्कूल द्वारा आयोजित हवनों में शामिल होते हैं। शारदीय नवरात्र के दौरान देश के कई शहरों में रात-रात भर गरबा चलता है। अब तो स्टेशन और एयरपोर्ट पर भी गरबा करते उत्साहियों को देखा जा सकता है। अभी होली बीती है और इस दौरान कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं, जिसमें दूसरे धर्म के लोगों पर, खासकर महिलाओं पर जबरदस्ती रंग फेंका जा रहा है। लेकिन इन सब को देखकर किसी की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती। क्योंकि लोगों के दिमाग में यह भर दिया गया है कि भारत हिंदुओं का देश है और यहां हिंदुओं को पूरा हक है कि वे चाहे जैसे अपनी धार्मिक भावनाओं को प्रकट करें, धर्म के नाम पर जो तमाशा चाहें, वो खड़ा कर लें। कोई उन्हें कुछ नहीं कहेगा।

लेकिन मॉल, अस्पताल या चलती ट्रेन में कोई शांति से एक ओर नमाज़ पढ़े, तो लोगों को हिंदू धर्म पर खतरा नजर आने लगता है। वे तब संविधान की आड़ में धर्मनिरपेक्षता की बात करने लगते हैं। यही कुतर्क क्रिसमस या न्यू ईयर के उत्सवों पर भी दिया जाता है, क्योंकि बाजार की चकाचौंध इन त्यौहारों पर अधिक होती है और इन्हें मान कर जनता का एक तबका खुद को आधुनिक समझने लगता है। किसी भी धर्म का कोई भी त्योहार मनाने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह धार्मिक उदारता सभी धर्मों के त्योहार पर देखने नहीं मिलेगी, यह एक कड़वी सच्चाई है।

उत्तरप्रदेश सरकार किस हक से करदाताओं के पैसे को नवरात्र मनाने के लिए खर्च कर सकती है, यह सवाल किया जाना चाहिए। लेकिन नहीं किया जाएगा, क्योंकि इससे पहले कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने में भी जनता का ही धन लगा और जनता चुप रही। त्योहार पर मुफ्त सिलेंडर देने का वादा करने वाले त्योहार के ऐन पहले सिलेंडर के दाम बढ़ा देते हैं, जनता तब भी चुप ही रहती है। क्योंकि उसे भव्य राम मंदिर बनते देखना है। इस मंदिर में अपने आराध्य के दर्शन और पूजापाठ की भारी रकम उसे शायद चुकाना पड़े, क्योंकि अब भगवान तक पहुंच बनाने की प्रक्रिया भी महंगी हो गई है। लेकिन धर्म बचाने के लिए जनता यह सारे कष्ट सह लेगी। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, और कानून व्यवस्था की दुर्गति के बीच धर्म को बचते देखने के लिए जनता कितनी बच पाएगी, यह भी विचारणीय है। क्योंकि जनतंत्र में जनता की रक्षा तभी तक है, जब तक संविधान बचा है।

संविधान तो धर्मनिरपेक्षता की बात कहता है, जिसमें सरकार को सभी धर्मों के लिए समान भाव रखते हुए जनकल्याण के कार्य करने चाहिए और किसी भी धर्म विशेष को बढ़ावा देने या उसका दमन करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। लेकिन उत्तरप्रदेश में ऐसा होता नहीं दिख रहा। बल्कि सपा, कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाए तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विपक्ष की आलोचना को खारिज किया है। उन्होंने कहा, 'भगवान श्रीराम और रामचरितमानस से जुड़ा कोई भी धार्मिक आयोजन हो रहा हो तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। इस पर कोई सवाल या जवाब नहीं होना चाहिए। मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि जय श्रीराम और जय माता दी।'

इस जवाब में धर्मनिरपेक्षता ही नहीं, अभिव्यक्ति की आजादी, विपक्ष की भूमिका सभी को खारिज किया जा रहा है। क्या इसके बाद भी लोगों को संविधान बचाने की चिंता नहीं होनी चाहिए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it