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नेपाल में "आग और आंदोलन" के बाद आगे क्या

सिर्फ दो दिनों के विरोध प्रदर्शन ने नेपाल में केपी शर्मा ओली से प्रधानमंत्री पद की कुर्सी छीन ली. सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगाकर नेपाली युवाओं के सालों पुराने ज्वाले को फोड़ दिया

नेपाल में आग और आंदोलन के बाद आगे क्या
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सिर्फ दो दिनों के विरोध प्रदर्शन ने नेपाल में केपी शर्मा ओली से प्रधानमंत्री पद की कुर्सी छीन ली. सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगाकर नेपाली युवाओं के सालों पुराने ज्वाले को फोड़ दिया.

अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल, ये भारत के वे पड़ोसी देश हैं जहां जनता ने संसद को आग लगा दी, सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका और भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर बड़े प्रदर्शन किए. 8 सितंबर, 2025 की सुबह नेपाल की राजधानी काठमांडू में युवा, जिन्हें जेनरेशन जी भी कहा जा रहा है, वे सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए.

आरोप लग रहा है कि सरकार ने इन प्रदर्शनों को रोकने के लिए घातक बल प्रयोग किया, पुलिस फायरिंग में 19 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए.

प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग और 19 मौतों के बाद केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि, 8 सितंबर को हुई हिंसा के बाद सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाया गया बैन वापस ले लिया, लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. उन्होंने कई मंत्रियों के घरों को आग के हवाले कर दिए. यही नहीं कई मंत्रियों को गुस्साई भीड़ ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा.

अंदर-अंदर ही उबल रहे थे नेपाली युवा

इससे पहले नेपाल में 1990 में एक जन आंदोलन शुरू हुआ था, जिसके बाद छिड़े लंबे गृहयुद्ध के चलते वहां के राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी. लेकिन 35 साल बाद इस बार युवाओं का आंदोलन थोड़ा अलग है. इस बार के आंदोलन में ऐसी पीढ़ी के किशोर और युवा शामिल हैं, जो डिजिटली जागरूक हैं और वे दुनिया के साथ सोशल मीडिया के जरिए जुड़े हैं. उनकी नाराजगी का एक और मुख्य कारण कथित भ्रष्टाचार भी है.

नेपाल की न्यूज वेबसाइट बाह्रखरी के संपादक प्रतीक प्रधान कहते हैं, "सोशल मीडिया पर लगाए बैन ने विरोध प्रदर्शन को भड़काने के लिए एक चिंगारी का काम किया. देश में लंबे से समय से निराशा का माहौल भीतर ही भीतर था. लोग बहुत गुस्से में हैं और इस वक्त नेपाल बहुत अनिश्चित स्थिति में है."

नेपाल में प्रदर्शनों को जेन जी का विरोध कहा गया है, जो आम तौर पर 1995 और 2010 के बीच पैदा हुई पीढ़ी के लिए इस्तेमाल किया जाता है. वे बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया बैन के विरोध में थे. दरअसल, नेपाल सरकार ने 4 सितंबर को कहा कि फेसबुक और यूट्यूब समेत ज्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को तत्काल प्रभाव से ब्लॉक किया जाएगा. सरकार का कहना था कि ये कंपनियां उन नियमों का पालन करने में विफल रही हैं, जिनके तहत उन्हें सरकार के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवाना था.

इसके लिए सरकार संसद में एक विधेयक भी लेकर आई, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को ठीक ढंग से प्रबंधित किया जाए और वे जिम्मेदार और जवाबदेह रहें. लेकिन इस विधेयक पर संसद में बहस नहीं हुई थी.

अधिकार समूहों ने इसे सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने का प्रयास बताया.

नेताओं की लग्जरी लाइफस्टाइल और आम नेपाली

इसी समय, देश में नेताओं, उनके परिवारों और सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता में गुस्सा सुलग रहा था. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने से कुछ हफ्ते पहले सोशल मीडिया पर एक अभियान चलाया गया, जिसमें नेपाल के अमीरों और गरीबों के बीच असमानताओं को उजागर किया गया. यह अभियान मशहूर सोशल मीडिया साइट टिक टॉक पर खूब चला. कई ऐसे वीडियो शेयर किए गए जिनमें नेताओं के बच्चों की भव्य जीवन शैली को दिखाया गया.

प्रधान कहते हैं, "इन सभी मुद्दों ने नेपाल के युवाओं को असंतुष्ट बना दिया. उन्होंने सोचा कि सड़कों पर उतरने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है."

आंदोलन के बाद क्या

अंतरराष्ट्रीय संकट समूह के एक वरिष्ठ सलाहकार आशीष प्रधान ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "अब एक ऐसी व्यवस्था को तेजी से बनाने की जरूरत होगी और उसमें ऐसे लोगों को शामिल करना होगा, जो अभी भी नेपालियों खासकर देश के युवाओं के साथ भरोसा कायम कर सके."

नेपाल में तेजी से बदलती स्थिति पर पड़ोसी देश भारत की करीब से नजर है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की स्थिति पर एक्स पोस्ट में लिखा, "यह जानकर बहुत पीड़ा हुई कि इसमें अनेक युवाओं की जान गई है. नेपाल की स्थिरता, शांति और समृद्धि हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. मैं नेपाल के अपने सभी भाई-बहनों से विनम्र अपील करता हूं कि वे शांति-व्यवस्था बनाए रखें."


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