Top
Begin typing your search above and press return to search.

भारत में बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल

भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों और अपहरण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इसमें नाबालिग लड़कियों की संख्या चिंताजनक है

भारत में बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल
X

भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों और अपहरण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इसमें नाबालिग लड़कियों की संख्या चिंताजनक है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नई रिपोर्ट बताती है कि भारत में बच्चों के खिलाफ अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है. वर्ष 2023 में कुल 1,77,335 मामले दर्ज किए गए. यह संख्या एक साल पहले के आंकड़ों की तुलना में लगभग नौ फीसदी अधिक है. साल 2022 में बच्चों के खिलाफ अपराधों के कुल 1,62,449 मामले दर्ज किए गए थे. रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकांश अपराधों में आरोपी बच्चों के जानने-पहचानने वाले लोग ही थे.

सबसे अधिक मामले अपहरण और पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किए गए हैं. अपहरण की घटनाएं, बच्चों के खिलाफ कुल अपराधों का 45.05 फीसदी हिस्सा हैं. वहीं 67,694 मामले पॉक्सो अधिनियम से संबंधित अपराधों में दर्ज हुए हैं, जो कि कुल मामलों का 38.17 फीसदी है. इनमें लड़कियों के साथ हुए अपराध अधिक हैं. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अपराध दर सबसे अधिक पाई गई है.

भारत में कितनी भयावह समस्या है बाल तस्करी?

उत्तर-पूर्वी राज्यों में देश के बाकी हिस्सों की तुलना बच्चों के खिलाफ अपराध की संख्या बहुत कम रही. मणिपुर में 85, नागालैंड में 26 और सिक्किम में 139 मामले सामने आए.

अपहरण और गुमशुदगी के मामलों में उछाल

बच्चों के खिलाफ कुल अपराधों में अपहरण संबंधी क्राइम की संख्या सबसे अधिक पाई गई. इसके कारण 82,106 बच्चे प्रभावित हुए. नाबालिग लड़कियों से विवाह के लिए उनका अपहरण करना सबसे बड़ी वजह रही. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में 16,737 लड़कियों और 129 लड़कों को जबरन शादी के लिए अगवा किया गया. या नाबालिग लड़कियों की मानव तस्करी, या खरीद-फरोख्त के भी 1,858 मामले सामने आए.

बच्चे के लापता होने के मामलों में शुरुआती 24 घंटे बहुत अहम होते हैं. इस अवधि के बाद बच्चे को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हालत में खोज पाने की संभावना कम हो जाती है. कई बच्चों से जबरन भीख मंगवाई जाती है. यहीं बच्चे अपराधियों के प्रभाव में आकर उनके गिरोह का हिस्सा बन सकते हैं. कुछ मामलों में, उन्हें बेच दिया जाता है, या वे जबरन वेश्यावृत्ति और अन्य अवैध गतिविधियों में फंसा दिए जाते हैं.

महिलाओं के साथ अपराध की राजधानी भी है दिल्ली

बाल अधिकारों के क्षेत्र से जुड़े लोग बताते हैं कि ये केवल आंकड़े हैं. इसके पीछे कई और वजहें होती हैं. बच्चे घरेलू हिंसा के कारण भी घर से भाग जाते हैं. एक स्टडी के मुताबिक, 79.4 फीसदी बच्चों के साथ दुर्व्यवहार उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है. चौंकाने वाली बात यह है कि लगभग 40 फीसदी मामलों में मां ही अपने बच्चे का शोषण करती हैं. वहीं, 17.3 फीसदी मामलों में दोनों माता-पिता मिलकर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.

कुछ परिस्थितियों में लड़कियां अपने परिचित के साथ भी चली जाती हैं. स्वागता राहा, एनफोल्ड प्रोएक्टिव हेल्थ ट्रस्ट में डायरेक्टर (रिसर्च) हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया, "हमारी स्टडी में पाया गया कि कई बार किशोरियां प्रेम संबंध के चलते भी चली जाती हैं. परिवार प्रेम विवाह के लिए मंजूरी नहीं देता. घर में हिंसा के चलते लड़कियां अपने किसी परिचित के साथ घर छोड़कर चली जाती हैं. एनसीएआरबी डाटा में इसे अपहरण की श्रेणी में गिन लिया जाता है, जबकि ऐसे मामलों में लड़की की मर्जी होती है."

पॉक्सो अधिनियम में बढ़ते मामले

पॉक्सो के तहत दर्ज मामलों की संख्या साल 2022 में 63,414 थी. एक साल बाद, यानी 2023 में ये बढ़कर 67,694 हो गई. इनमें 98 फीसदी भुक्तभोगी लड़कियां हैं.

39,076 मामलों में आरोपी बच्चे को पहले से जानते थे. इसमें से भी 3,224 मामले ऐसे हैं, जिनमें आरोपी परिवार के ही सदस्य हैं. करीब 15,000 मामलों में आरोपी पारिवारिक दोस्त, पड़ोसी या अन्य परिचित व्यक्ति था. लगभग 21,000 केस ऐसे हैं जिनमें आरोपी दोस्त, ऑनलाइन मित्र या लिव-इन पार्टनर है, जिन्होंने शादी का झांसा देकर अपराध किया. केवल 1,358 मामलों में आरोपी कोई अज्ञात था.

2024 में जर्मनी के करीब 18,000 बच्चे बने यौन शोषण के शिकार

भारत में बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के लिए पॉक्सो अधिनियम लागू किया गया था. पॉक्सो के तहत बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें भी स्थापित की गई हैं, ताकि मामलों का तेज और प्रभावी ढंग से निपटारा किया जा सके.

साल 2022 में इस कानून को बने एक दशक बीत गया. इस मौके पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि बच्चों के साथ यौन शोषण एक संवेदनशील मुद्दा है. खासकर तब, जब आरोपी परिवार का ही सदस्य होता है. उन्होंने परिवारों से अपने बच्चों को 'अच्छा और बुरा' टच समझाने का सुझाव दिया था.

लड़कियों की स्थिति ज्यादा संवेदनशील क्यों

बच्चों, खासकर लड़कियों को अगवा करना और उनके यौन उत्पीड़न के पीछे कई सामाजिक वजहें होती हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक बेरोजगारी, गरीबी और घर में हिंसा जैसे कारण बच्चों और परिवारों को असुरक्षित स्थिति में ला देते हैं. परिवार का टूटना, आवास की कमी और ग्रामीण से शहरी स्थानांतरण जैसी परिस्थितियां भी उनके जीवन को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा बाढ़, सूखा या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाला विस्थापन भी बड़ी वजह है.

भारत: क्या डे-केयर में भी सुरक्षित नहीं बच्चे

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 20 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 12 करोड़ लड़कियों का यौन शोषण किया जाता है. लगभग 90 प्रतिशत किशोर लड़कियों ने बताया कि उन्हें सेक्स वर्क में ले जाने वाला व्यक्ति कोई परिचित था. आमतौर पर ये उनका बॉयफ्रेंड या पति होता है.

कोरोना महामारी के बाद भारत में डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल काफी बढ़ा है. पढ़ाई और स्कूल ऑनलाइन शिफ्ट हो गए. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसके कारण बच्चों का जीवन ऑनलाइन शिफ्ट हो गया औक अब इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है.

भगवान जी पाठक, बिहार में बाल अधिकारों पर काम करते हैं. वह समग्र शिक्षण एवं विकास संस्थान से जुड़े हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत में परिवार का कॉन्सेप्ट लगभग खत्म होता जा रहा है. बच्चे एकांकी हो रहे हैं. कई माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल के सहारे छोड़ देते हैं. मन बहलाने के लिए बच्चे ऑनलाइन किसी साथी या दोस्त को खोजते हैं और उसी के साथ संलिप्त होना चाहते हैं. कई मामलों में शादी और नौकरी का प्रलोभन देकर बच्चों का शोषण किया जा रहा है.


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it