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फलीस्तीन क्षेत्र: किसी इलाके के देश बनने की क्या शर्तें हैं?

फलीस्तीन को एक स्वतंत्र देश का दर्जा देने के लिए समर्थन बढ़ता जा रहा है. हालांकि, किसी भी इलाके को देश का दर्जा मिलना आसान नहीं होता, क्योंकि इसके लिए बहुत सारे नियम-कानून और शर्तें पूरी करनी होती हैं

फलीस्तीन क्षेत्र: किसी इलाके के देश बनने की क्या शर्तें हैं?
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फलीस्तीन को एक स्वतंत्र देश का दर्जा देने के लिए समर्थन बढ़ता जा रहा है. हालांकि, किसी भी इलाके को देश का दर्जा मिलना आसान नहीं होता, क्योंकि इसके लिए बहुत सारे नियम-कानून और शर्तें पूरी करनी होती हैं.

इस्राएल के पुराने सहयोगी भी अब फलीस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दे रहे हैं या ऐसा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. फिलहाल फलीस्तीन, इस्राएल और हमास के बीच मौजूदा संघर्ष का केंद्र बिंदु बना हुआ है.

दरअसल, करीब 150 अन्य देश पहले से ही फलीस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दे चुके हैं. फ्रांस, कनाडा और संभावित तौर पर ब्रिटेन जैसे प्रमुख देश भी अब फलीस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि, इससे जरूरी नहीं है कि फलीस्तीन में जारी संघर्ष खत्म हो जाएगा या उसकी सीमाएं सुरक्षित हो जाएंगी. इसका कारण यह है कि देश का दर्जा हासिल करना एक आसान प्रक्रिया नहीं है. कई अन्य देशों के बीच सीमा विवादों के दौरान यह बात साफ तौर पर देखने को मिली है.

कोई इलाका देश कैसे बनता है?

हर देश का अपना अलग आकार, प्रकार और बनावट होता है. फिलहाल, 193 देश संयुक्त राष्ट्र के पूर्ण सदस्य हैं. वहीं, अगर कोई देश संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य नहीं है, तो भी वह उसकी गतिविधियों में शामिल हो सकता है, दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जुड़ सकता है और अपने दूतावास भी खोल सकता है. इससे पता चलता है कि एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होना जरूरी नहीं है.

किसी भी क्षेत्र को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश 1933 में हस्ताक्षरित ‘मोंटेवीडियो कन्वेंशन' में लिखे हैं. इसे ‘कन्वेंशन ऑन राइट्स एंड ड्यूटीज ऑफ स्टेट्स' भी कहा जाता है. इसके हिसाब से, एक देश के पास ये चार चीजें होनी चाहिए: तय भौगोलिक सीमाएं, स्थायी आबादी, जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार और अंतरराष्ट्रीय समझौतों में शामिल होने की क्षमता.

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अकसर कहा जाता है कि किसी भी क्षेत्र का एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व, उसे बाहरी दुनिया से मिलने वाली 'मान्यता' पर निर्भर करता है. हालांकि, आयरलैंड के डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी में शांति और संघर्ष अध्ययन के स्कॉलर और देश की मान्यता से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ गेजिम विसोका का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों में ऐसा कहीं नहीं लिखा है, पर दूसरे देशों की मान्यता का असर जरूर होता है.

विसोका ने कहा, "किसी भी राष्ट्र के काम करने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्तित्व में रहने, समझौते करने, अंतरराष्ट्रीय समझौतों का फायदा पाने और बाहरी देशों द्वारा कब्जा, अधिकार और मनमाने हस्तक्षेप से सुरक्षा पाने के लिए मान्यता बहुत महत्वपूर्ण है. अगर आपको मान्यता मिली हुई है, तो आपकी स्थिति उस राष्ट्र से कहीं बेहतर होती है जिसे मान्यता नहीं मिली है.”

संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने की प्रक्रिया

सिर्फ देश का दर्जा मिलने या मोंटेवीडियो कन्वेंशन की शर्तों को पूरा करने से कोई देश अपने-आप संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं बन जाता है. सदस्य बनने की प्रक्रिया में उम्मीदवार देश को कई चरण पूरे करने होते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव को पत्र लिखना होता है, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सदस्यता दायित्वों को स्वीकार करने की औपचारिक घोषणा करनी होती है और महासचिव का समर्थन चाहिए होता है.

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इसके बाद, उम्मीदवार देश को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों का समर्थन हासिल करना होता है. इसके लिए, परिषद के 15 सदस्यों में से 9 सदस्यों का पक्ष में वोट देना जरूरी है. साथ ही, सभी 5 स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका का भी समर्थन मिलना चाहिए.

इतिहास गवाह है कि यह बाधा, राष्ट्र का दर्जा चाहने वाले देशों के लिए पार करना मुश्किल रहा है. यहां तक कि उन देशों के लिए भी जिन्हें बहुत से देशों से मान्यता मिली हुई है. फलीस्तीन, कोसोवो और पश्चिमी सहारा उन देशों में शामिल हैं जिन्हें बहुत सारे देशों ने मान्यता दे दी है, लेकिन वे अब तक संयुक्त राष्ट्र के पूर्ण सदस्य नहीं बन पाए हैं.

विसोका ने कहा, "जब मोंटेनेग्रो और क्रोएशिया संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुए थे, तो उन्हें 70 से भी कम देशों ने मान्यता दी थी. वहीं दूसरी तरफ, फलीस्तीन को लगभग 150 देशों, कोसोवो को करीब 118-119 देशों और पश्चिमी सहारा को 50 से ज्यादा देशों ने मान्यता दी हुई है.” वहीं, अगर कोई देश सुरक्षा परिषद की बाधा पार कर लेता है, तो उसे बस महासभा में संयुक्त राष्ट्र के बाकी सदस्यों में से दो-तिहाई देशों के वोट चाहिए होते हैं.

पर्यवेक्षक, पूर्ण सदस्य, फायदे और नुकसान

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों के अलावा, दो और देश हैं जिन्हें स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है. ये हैं होली सी (वेटिकन सिटी) और फलीस्तीन. ये दोनों संयुक्त राष्ट्र की ज्यादातर बैठकों में शामिल हो सकते हैं और सारे दस्तावेज देख सकते हैं. साथ ही, न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अपने मिशन भी बनाए रख सकते हैं, यानी आधिकारिक प्रतिनिधि कार्यालय बनाए रख सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य न होने पर भी कोई देश अन्य संगठनों में शामिल हो सकता है. मसलन, फलीस्तीन भले ही पूर्ण सदस्य नहीं है, फिर भी वह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जा सकता है.

कुछ ऐसे राष्ट्र जिन्हें लंबे समय से मान्यता मिली हुई है, उन्होंने भी संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने का विरोध किया है. उदाहरण के लिए, स्विट्जरलैंड 56 सालों तक स्थायी पर्यवेक्षक रहा और अंत में 2002 में जाकर एक पूर्ण सदस्य बना. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के बहुत फायदे हैं. यह एक तरह से पक्के तौर पर मान्यता देता है. अगर कोई देश आपको मान्यता देना बंद भी कर दे, तो भी आपकी संप्रभुता बनी रहती है. साथ ही, यह बड़े-छोटे, ताकतवर-कमजोर, सभी देशों को एक समान मानता है.

विसोका ने कहा, "वहीं, अगर कोई देश संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं बनता है, तो उसे बहुत दिक्कतें आती हैं. उसे संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों और कार्यक्रमों तक वैसी पहुंच नहीं मिलती, जैसे एक सदस्य देश को मिलती है. इसके अलावा, उसे बुरा बर्ताव झेलना पड़ सकता है. वह अलग-थलग पड़ सकता है. उसे व्यापार और आर्थिक संबंधों में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.” इसके अलावा, उसे अपना इलाका खोने का भी खतरा रहता है. विसोका ने उदाहरण के तौर पर पश्चिमी सहारा और नागोर्नो-काराबाख का जिक्र किया.

कुछ इलाकों को दूसरे देश भले ही मान्यता दे दें, पर उनकी मुश्किलें खत्म नहीं होतीं. फलीस्तीन और कोसोवो को भी बहुत से देशों ने मान्यता दी है, लेकिन उन्हें अभी भी कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. विशेषज्ञ विसोका ने यह साफ किया है कि संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता प्राप्त न कर पाना किसी भी राष्ट्र के अस्तित्व को कम नहीं करता. उन्होंने कहा, "सिर्फ इसलिए कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बनने की मंजूरी नहीं मिली है, वे दूसरे राष्ट्रों की तुलना में कमतर नहीं हो जाते.”

किसी भी इलाके को देश के तौर पर मान्यता मिलना एक लचीली और लगातार बदलती प्रक्रिया है. विसोका ने बताया, "दुर्भाग्य से, अंतरराष्ट्रीय कानून में मान्यता सबसे कमजोर कड़ी है. यही वजह है कि कोई ऐसा नियम नहीं है जो यह बता सके कि कौन सा इलाका कोई देश है, दूसरे देशों को मान्यता देने का अधिकार किसके पास है, और किस इलाके को देश का दर्जा मिल सकता है.”

वह आगे कहते हैं, "यह बहुत हद तक हर मामले के आधार पर तय किया जाता है. हर देश की मान्यता देने की नीति एक जैसी नहीं होती. इसलिए, वे इसमें बदलाव और सुधार करते रहते हैं.” हालांकि, इसका नुकसान यह है कि इससे हिंसा और टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है, क्योंकि देश खुद को वैध और मान्यता प्राप्त साबित करने के लिए संघर्ष करते हैं. हाल के उदाहरणों में कोसोवो और दक्षिण सूडान का संघर्ष के बाद नया देश बनकर उभरना शामिल है.


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