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आसिम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान की हालत चिंताजनक: रिपोर्ट

पाकिस्तान के हुक्मरान सेना को तो ताकतवर बनाने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन स्थानीय बलों या अर्धसैनिक बलों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है

आसिम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान की हालत चिंताजनक: रिपोर्ट
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कंपाला। पाकिस्तान के हुक्मरान सेना को तो ताकतवर बनाने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन स्थानीय बलों या अर्धसैनिक बलों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बुधवार को सामने आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि आर्मी चीफ असीम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा बेहद खराब है।

इसमें यह भी कहा गया है कि ये विफलता अविश्वास और भेदभाव की भावना से प्रेरित है। इसमें पाकिस्तान के रसूखदार पदों, खासकर सेना पर पंजाब प्रांत का दबदबा है, जबकि छोटे प्रांतों को हाशिए पर धकेल दिया गया है।

युगांडा के ‘डेली मॉनिटर’ की एक रिपोर्ट पाकिस्तानी हुक्मरानों और सेना को लेकर उनकी सोच पर से पर्दा उठाती है और खुलासा करती है कि कैसे प्रांतीय पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की टुकड़ियों को मजबूत बनाने के बजाय, कमजोर किया जा रहा है। उन पर आर्मी का पूरा कब्जा है। इसमें कहा गया है कि हर नया आतंकी हमला सेना को ज्यादा फंड और ऑपरेशनल अधिकार देने का काम करता है।

हैरानी की बात है कि सेना तो इन हमलों के बाद मजबूत होती है लेकिन पुलिस उसी दर से कमजोर! उनके सुधारों में निवेश करने या प्रोविंशियल लेवीज, पैरामिलिट्री फोर्सेज और फ्रंटियर कांस्टेबुलरी (एफसी) के जवानों की काबिलियत बढ़ाने पर कोई जोर नहीं दिया जाता है।

रिपोर्ट में बताया गया है, "पाकिस्तान की पुलिस और अर्धसैनिक टुकड़ियों (जिनमें प्रोविंशियल लेवीज फोर्स और फ्रंटियर कांस्टेबुलरी (एफसी) शामिल हैं) के हालात बेहद खराब हैं। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा (केपी) जैसे इलाकों में आतंकी हिंसा बढ़ रही है लेकिन इन स्थानीय बलों के पास इससे निपटने के संसाधन बहुत कम हैं। इस समस्या की जड़ में बजट का बड़ा असंतुलन है। 2025-26 के बजट में, पाकिस्तान ने डिफेंस के लिए 2.55 ट्रिलियन (पाकिस्तानी) रुपया आवंटित किया, पिछले साल से 20 फीसदी ज्यादा! ये पूरे बजट का बड़ा हिस्सा है, और इसका मुख्य फायदा आर्मी को होगा।"

इसमें आगे कहा गया है, "इसके उलट, 351.7 बिलियन पाकिस्तानी रुपये, जो मिलिट्री की फंडिंग का मुश्किल से सातवां हिस्सा है, आम लोगों की सुरक्षा हेतु आवंटित किया गया। जिसमें फेडरल पुलिस, रेंजर्स और एफसी जैसी 'सिविल आर्म्ड फोर्स' शामिल हैं। इस अंतर का मतलब है कि पुलिस और अर्धसैनिक ईकाइयों को सीमित शक्ति, उपकरण और प्रशिक्षण के साथ काम करना होगा।" रिपोर्ट में कहा गया है कि कई जानलेवा आतंकी हमलों के बाद, मुनीर ने खुद माना कि स्थानीय बल पर दबाव बढ़ रहा है। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कबायली जिलों का दौरा करते हुए, उन्होंने कहा कि आतंकी पुलिस को 'लगातार निशाना' बना रहे थे।

रिपोर्ट में बताया गया है, "ये नुकसान इतने ज्यादा हो गए थे कि केपी में परेशान पुलिसवालों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बेहतर सुरक्षा और स्पष्टता की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। मुनीर ने पुलिस और अन्य प्रशासनिक एजेंसियों को 'पूरी मदद देने' का वादा किया, और उनके बलिदान की तारीफ की। फिर भी, ऐसे वादों के बावजूद, स्थानीय बल कम लोगों, कम सुविधाओं (बुलेटप्रूफ जैकेट भी उनके पास नहीं है), और बहुत कम प्रशिक्षण के साथ समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जबकि अच्छी फंडिंग वाली आर्मी अपनी अहमियत बनाए हुए है।"

इसमें कहा गया कि पाकिस्तान की मौजूदा हालत चिंताजनक और बेहद अस्थिर है। पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स लड़ाई में जितनी तेजी से खत्म हो रही हैं, उतनी गति से उन्हें ताकतवर बनाने का काम नहीं किया जा रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया, "लगभग हर दिन पुलिस या एफसी जवानों के मरने की खबरें आती हैं, जो पहले से ही उस इलाके में हिंसा झेल रहे परिजनों के लिए दोहरी मार है। मुनीर और उनके साथी आर्मी जनरलों ने आतंक की असली वजहों या सिविलियन फोर्स की तादाद की कमी को दूर करने के बजाय, सैन्य अभियान और जुबानी हमलों पर पर ज्यादा ध्यान दिया है।"


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