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दक्षिण-पूर्व एशिया में नए दोस्त तलाश रहा है उत्तर कोरिया

क्या वियतनाम और लाओस की तरह दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे देश भी उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते दुरुस्त करेंगे?

दक्षिण-पूर्व एशिया में नए दोस्त तलाश रहा है उत्तर कोरिया
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उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने हाल ही में वियतनाम और लाओस के नेताओं से मुलाकात की और आपसी रिश्ते मजबूत करने पर जोर दिया. क्या दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे देश भी अब ऐसे कदम उठाएंगे?

उत्तर कोरिया ने हाल ही में अपनी सत्तारूढ़ "वर्कर्स पार्टी" की स्थापना के 80 साल पूरे होने का जश्न मनाया. इस मौके पर चीन और रूस जैसे देशों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित किया गया और उनका भव्य स्वागत किया गया.

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दक्षिण-पूर्व एशिया के देश वियतनाम और लाओस के नेता भी इस विशाल परेड में शामिल हुए. परेड में हजारों सैनिकों ने प्योंगयांग के हथियार भंडार का प्रदर्शन किया.

वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव तो लाम की यह यात्रा काफी खास मानी जा रही है. पिछले 18 साल में ऐसा पहली बार हुआ है, जब कोई वियतनामी नेता उत्तर कोरिया गया हो. लाम अपनी पार्टी में वही पद संभालते हैं, जो उत्तर कोरिया की वर्कर्स पार्टी में किम जोंग उन के पास है.

क्या यह उत्तर कोरिया की कूटनीतिक जीत है?

उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी ने बताया कि प्योंगयांग और हनोई, दोनों देशों ने रक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई है.

जापान के कंसाई गाइडाई विश्वविद्यालय में 'शांति और संघर्ष' अध्ययन के एसोसिएट प्रोफेसर मार्क एस. कोगन, लाम की इस यात्रा को उत्तर कोरिया के लिए एक कूटनीतिक जीत मानते हैं.

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उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यह वैधता का एक संकेत था, क्योंकि लगभग दो दशक में पहली बार किसी उच्च स्तरीय वियतनामी नेता ने उत्तर कोरिया का दौरा किया.

कोगन ने आगे कहा, "दोनों पक्षों के लिए यह दौरा फायदे का सौदा रहा है. वह कठिन परिस्थितियों में एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं. वियतनाम काफी लंबे समय से उत्तर कोरिया से आने वाले गैरकानूनी सामानों के लिए एक रास्ता रहा है. इससे वह (उत्तर कोरिया) पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों से सफलतापूर्वक बच सकता है."

राजनीतिक सोच समान, लेकिन आर्थिक व्यवस्था अलग

उत्तर कोरिया और वियतनाम इस साल अपने कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में राजनीतिक वैज्ञानिक और लेक्चरर, एडवर्ड हॉवेल ने बताया कि दोनों देश नाम मात्र के लिए ही कम्युनिस्ट हैं. जनता पर शासन करने की उनकी विचारधारा काफी हद तक सामान है. हालांकि, उनकी आर्थिक नीतियों में बड़ा अंतर है.

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हॉवेल के अनुसार, "वियतनाम और उत्तर कोरिया एकदम एक जैसे नहीं हैं. वियतनाम की व्यवस्था राजनीतिक रूप से तो कम्युनिस्ट है, लेकिन आर्थिक रूप से वह पूंजीवादी हैं. जबकि, किम जोंग उन इस व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते."

हॉवेल ने यह भी बताया कि "उत्तर कोरिया और वियतनाम का रक्षा, स्वास्थ्य सेवा और विमान क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का वादा इस बात को दर्शाता है कि प्योंगयांग नए भौतिक संसाधनों के स्रोत तलाशना चाहता है."

'काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया आज भी चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. पिछले दो दशकों से चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है. वर्ष 2023 में तो उत्तर कोरिया के कुल आधिकारिक व्यापार में लगभग 98 फीसदी हिस्सेदारी चीन की थी.

हॉवेल के अनुसार, वियतनाम के लिए उत्तर कोरिया के साथ सहयोग बढ़ाना आर्थिक रिश्तों को मजबूत करने का एक तरीका हो सकता है, खासकर कृषि और संस्कृति के क्षेत्रों में. लेकिन उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे गरीब और अलग-थलग देशों में से एक है. इसके कारण उसकी छोटी और केंद्र-नियंत्रित अर्थव्यवस्था व्यापार के लिए बहुत सीमित अवसर दे सकती है.

दक्षिण कोरिया के केंद्रीय बैंक के मुताबिक, वर्ष 2022 में उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था का आकार केवल 24.5 अरब डॉलर था. यह अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खनन, कृषि और अपने विशाल रक्षा तंत्र पर निर्भर है.

इस देश में डिफेंस सेक्टर रोजगार का सबसे मुख्य क्षेत्र है. करीब ढाई करोड़ की कुल आबादी में 20 लाख लोग सेना या रक्षा से जुड़ी नौकरियों में काम करते हैं.

उत्तर कोरिया पहले केवल अपने ही सैन्य बलों के लिए हथियार बनाता था, लेकिन अब उसने कुछ विदेशी ग्राहकों को भी खोज लिया है. ये ग्राहक ज्यादातर भूतपूर्व सोवियत संघ या अफ्रीका के दक्षिणी हिस्सों के देश हैं.

लाओस के साथ भी बढ़ रही है साझेदारी

वियतनाम का पड़ोसी देश लाओस भी प्योंगयांग में आयोजित समारोह में शामिल हुआ. लाओस के राष्ट्रपति और लाओ पीपल्स रिवॉल्यूशनरी पार्टी के महासचिव थोंगलून सिसौलिथ ने इस कार्यक्रम में भाग लिया.

उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया के अनुसार, दोनों देशों ने अपनी साझेदारी को और मजबूत करने पर सहमति जताई है. उत्तर कोरिया और लाओस के बीच पिछले 50 वर्षों से कूटनीतिक संबंध कायम हैं. हालांकि, दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार काफी कम है.

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लेकिन हॉवेल के अनुसार, लाओस ऐसे कई तरीकों से उत्तर कोरिया की मदद करता है, जिनसे अन्य देश दूर रहना ही पसंद करते हैं. उन्होंने बताया, "उत्तर कोरिया और लाओस के बीच रिश्तों का मजबूत होना, इस बात का संकेत है कि उत्तर कोरिया को एक और ऐसा साझेदार मिल गया है, जो उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचाने को तैयार है."

रिपोर्टों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद लाओस अपने यहां उत्तर कोरियाई आईटी और निर्माण कर्मचारियों को काम करने की अनुमति देता है. इन कामगारों की विदेशी कमाई को उत्तर कोरिया के सैन्य कार्यक्रमों को सहारा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

उत्तर कोरिया के लिए सबसे बेहतर साझेदार कौन?

दक्षिण कोरिया की समाचार वेबसाइट 'एनके न्यूज' के मुख्य संवाददाता श्रेयस रेड्डी के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशिया उत्तर कोरिया के लिए एक उपयोगी क्षेत्र है. यह इलाका आमतौर पर वैश्विक मामलों में तटस्थ रहता है. इस क्षेत्र के अधिकांश देश अमेरिका, चीन और रूस जैसी शक्तियों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखना चाहते हैं.

श्रेयस रेड्डी ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा, "अगर उत्तर कोरिया अपनी कूटनीतिक पहुंच बढ़ाना चाहता है, तो उसके लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देश सबसे बेहतर साझेदार हो सकते हैं."

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उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि जो भी देश उत्तर कोरिया के करीब आते हैं, वह एक बड़ा जोखिम उठाएंगे. ऐसा माना जा सकता है कि वे उत्तर कोरिया को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचाने में मदद कर रहे हैं.

श्रेयस रेड्डी ने कहा, "अगर दक्षिण-पूर्व एशिया के देश उत्तर कोरिया के साथ सहयोग बढ़ाना चाहते हैं, खासकर व्यापार के क्षेत्र में, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के नियमों का बहुत सावधानी से पालन करना होगा."

उन्होंने यह भी कहा कि सिंगापुर, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों को इस बात से और भी सतर्क रहने की जरूरत है. उन्हें सावधानी बरतनी होगी कि कहीं वे उत्तर कोरिया के साथ कोई ऐसा कदम न उठा लें, जो बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख को नुकसान पहुंचाए.


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