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जर्मनी: शरणार्थियों के पुनर्वास कार्यक्रम पर लगी रोक पर यूएन ने जताया खेद

जर्मनी की नई मैर्त्स सरकार ने आप्रवासन नीतियों में कई बदलाव किए हैं. इन बदलावों के तहत ही संयुक्त राष्ट्र के पुनर्वास कार्यक्रम पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई थी. इस फैसले पर संयुक्त राष्ट्र ने खेद जताया है

जर्मनी: शरणार्थियों के पुनर्वास कार्यक्रम पर लगी रोक पर यूएन ने जताया खेद
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जर्मनी की नई मैर्त्स सरकार ने आप्रवासन नीतियों में कई बदलाव किए हैं. इन बदलावों के तहत ही संयुक्त राष्ट्र के पुनर्वास कार्यक्रम पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई थी. इस फैसले पर संयुक्त राष्ट्र ने खेद जताया है.

आप्रवासन पर नई सरकार के कड़े रुख के तहत जर्मनी में संयुक्त राष्ट्र के पुनर्वास कार्यक्रम पर अस्थायी रूप से रोक अप्रैल में लगा दी गई थी. इसके साथ ही जर्मन सांसदों ने बीते शुक्रवार को उस प्रक्रिया पर को दो साल के लिए निलंबित कर दिया जिसके तहत यहां आने वाले शरणार्थी अपने परिवार के सदस्यों को भी यहां बुलाने के लिए आवेदन कर सकते थे. जर्मन सरकार के इस फैसले पर शरणार्थियों के लिए बनी संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएचसीआर ने खेद जताया है.

एजेंसी के अधिकारी फिलिपो ग्रांडी ने कहा कि सरकार के इस फैसले से वह चिंतित हैं. उन्होंने आगे कहा, "अच्छा होगा अगर जर्मनी इस प्रोग्राम के तहत कुछ और शरर्णार्थियों को जगह दे सके." उदाहरण के तौर पर उन्होंने ऐसे शर्णार्थियों का जिक्र किया, जिन्हें अपने देश में अपनी यौनिकता के कारण खतरा हो. शरणार्थियों के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र के इस कार्यक्रम के तहत जर्मनी ने पहले वादा किया था कि वह 2024 और 2025 के दरम्यान 13,000 लोगों को शरण देगा लेकिन सरकार बदलने के साथ ही इस कदम पर रोक लगा दी गई.

पुनर्वास के इंतजार में 25 लाख शरणार्थी: यूएनएचसीआर

शरणार्थियों के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत उन शरणार्थियों को दूसरे देशों में भेजा जाता है जो अपने होस्ट देशों में यानी जहां उन्हें पहली बार शरण मिली, वहां किन्हीं कारणों से नहीं रह पाते. जिन शरणार्थियों के आवेदन को मंजूरी मिल जाती है उन्हें असाइलम के लिए बिना आवेदन किए तीन सालों तक रहने की मंजूरी दी जाती है.

इस कार्यक्रम के तहत हर साल औसतन पांच हजार लोगों को यहां शरण दी जाती थी. अमेरिका और कनाडा के बाद जर्मनी ऐसे शरणार्थियों को शरण देने के मामले में तीसरे नंबर पर आता है. वहीं, यूएनएचसीआर के मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक 2025 में करीब 25 लाख शरणार्थियों को पुर्नवास की जरूरत होती. हालांकि, सीरिया में आंतरिक हालात बदलने के बाद ऐसे लोगों की संख्या में गिरावट भी दर्ज की गई है.

"जबरन वापस भेजना खड़ी कर सकता है नई परेशानियां"

सीरिया में बशर अल असद की सत्ता खत्म होने के बाद सीरियाई शरणार्थियों को भी उनके देश वापस लौटाए जाने की बहस तेज हो गई है. हालांकि, ग्रांडी इस फैसले के खिलाफ चेताते हुए कहते हैं कि सीरिया की नई सरकार कम अनुभवी और कमजोर है. उन्होंने यह भी बताया कि कई हजार सीरियाई नागरिक अपने अपने घरों को लौट चुके हैं लेकिन ये वे लोग थे जो आंतरिक रूप से ही विस्थापित हुए थे. यूरोप से बमुश्किल ही कोई सीरिया वापस गया है क्योंकि यहां की स्थिति बेहतर है.

सीरियाई शरणार्थियों को जबरन वापस भेजे जाने पर उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो इससे नई चुनौतियां पैदा होंगी. साथ ही उन्होंने सीरिया में नए निवेश करने की वकालत भी की. 2015 से जर्मनी ने करीब 10 लाख सीरियाई शरणार्थियों को पनाह दी है. यह संख्या दूसरे यूरोपीय देशों के मुकाबले कहीं अधिक है. पुनर्वास योजना के तहत जर्मनी में सबसे अधिक शरणार्थी सीरिया से ही आए थे.



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