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पूर्व डिप्टी एनएसए पंकज सरन ने बांग्लादेश-भारत को दी सलाह , बोले- भड़काऊ बयानों तथा कार्रवाइयों से बचें

बांग्लादेश में भारतीय मिशनों पर भीड़ के हमलों के परिप्रेक्ष्य में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार पंकज सरन ने दोनों देशों को सलाह दी है कि वे आपसी रिश्तों में किसी भी ताकत को दखलअंदाजी न करने दें और भड़काऊ बयानों तथा कार्रवाइयों से बचें

पूर्व डिप्टी एनएसए पंकज सरन ने बांग्लादेश-भारत को दी सलाह , बोले- भड़काऊ बयानों तथा कार्रवाइयों से बचें
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बांग्लादेश-भारत को भड़काऊ कार्रवाइयों और बयानों से बचना चाहिए: पंकज सरन

नई दिल्ली। बांग्लादेश में भारतीय मिशनों पर भीड़ के हमलों के परिप्रेक्ष्य में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार पंकज सरन ने दोनों देशों को सलाह दी है कि वे आपसी रिश्तों में किसी भी ताकत को दखलअंदाजी न करने दें और भड़काऊ बयानों तथा कार्रवाइयों से बचें।

बंगलादेश में भारत के उच्चायुक्त रहे सरन ने 'यूनीवार्ता' को दिये एक विशेष साक्षात्कार में चेतावनी दी कि "भड़काऊ कार्रवाइयां और बयान केवल माहौल को खराब करने का काम करते हैं"। उनका इशारा बांग्लादेश के विभिन्न छात्र नेताओं द्वारा दिये गये उन बयानों की ओर था जो भारत और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार स्थिति पर करीबी नजर रखेगी ताकि बंगलादेश में तैनात भारतीय उच्चायोग या भारतीय राजनयिकों को कोई नुकसान न पहुंचे।

बंगलादेश में गुरुवार देर रात से शुक्रवार सुबह तक व्यापक हिंसा देखने को मिली, जब भीड़ ने ढाका और कई अन्य शहरों में उत्पात मचाया। यह हिंसा सिंगापुर के एक अस्पताल में इंकलाब मंच आंदोलन के प्रमुख नेता शरीफ उस्मान हादी की मृत्यु के बाद भड़की।

इस अशांति ने देश की आंतरिक सुरक्षा, प्रेस की स्वतंत्रता और राजनयिक मिशनों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।

जिन स्थानों को निशाना बनाया गया उनमें खुलना और चटगांव (चट्टोग्राम) स्थित भारतीय मिशन भी शामिल थे, इसके अलावा मौजूदा शासन की आलोचना करने वाले राजनीतिक नेताओं और पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया।

'डेली स्टार' और 'प्रथम आलो' जैसे अखबारों के कार्यालयों तथा उदारवादी सांस्कृतिक संगठन 'छायानट' पर भी हमले किये गये। इस दौरान सड़कों पर "भारत का बहिष्कार करो", "अवामी लीग के ठिकानों को जलाओ" और "हादी का खून व्यर्थ नहीं जायेगा" जैसे नारे गूंजते रहे।

सरन ने "सुमति लौटने" की उम्मीद जताते हुए कहा कि विरोध-प्रदर्शन किसी भी लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन यह "पूरी तरह कानून की सीमाओं के भीतर" होना चाहिये।

पूर्व भारतीय राजनयिक और रणनीतिकार ने कहा कि "बंगलादेश के अधिकतर लोग भारत के साथ सामान्य संबंध चाहते हैं," और यही द्विपक्षीय संबंधों की असली ताकत रही है।


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