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साइबर अपराध रोकने के लिए बनी पहली यूएन संधि पर दस्तखत हुए

साइबर अपराधों को रोकने के लिए हुई इस संधि का प्रस्ताव सबसे पहले रूस ने 2017 में दिया था. टेक कंपनियों और मानवाधिकार समूहों ने इस संधि के प्रावधानों पर चिंता जताते हुए सरकारी निगरानी बढ़ने की आशंका जाहिर की है

साइबर अपराध रोकने के लिए बनी पहली यूएन संधि पर दस्तखत हुए
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साइबर अपराधों को रोकने के लिए हुई इस संधि का प्रस्ताव सबसे पहले रूस ने 2017 में दिया था. टेक कंपनियों और मानवाधिकार समूहों ने इस संधि के प्रावधानों पर चिंता जताते हुए सरकारी निगरानी बढ़ने की आशंका जाहिर की है.

साइबर अपराध से जुड़ी पहली संयुक्त राष्ट्र संधि पर देशों ने वियतनाम की राजधानी हनोई में हस्ताक्षर कर दिए हैं. सरकारों की ओर से निगरानी बढ़ने की शंका जताने वाली टेक कंपनियों और मानवाधिकार संगठनों के विरोध के बावजूद यह संधि हुई है. यह वैश्विक कानूनी ढांचा ऑनलाइन ठगी, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे डिजिटल अपराधों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के मकसद से तैयार किया गया है. वियतनाम के राष्ट्रपति लुओंग कुओंग ने इस मौके को एक "मील का ऐतिहासिक पत्थर” बताया. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश भी इस मौके पर हनोई में मौजूद रहे.

संयुक्त राष्ट्र की इस साइबर अपराध विरोधी संधि का प्रस्ताव 2017 में रूसी राजनयिकों की ओर से आया था. कई साल चली वार्ताओं के बाद इसे 2024 में इसे मंजूरी मिली. वियतनामी सरकार के अनुसार, 60 देशों ने इस समझौते में शामिल होने के लिए पंजीकरण कराया है. हालांकि प्रतिभागियों की सूची सार्वजनिक नहीं की गई. यह संधि 40 सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद प्रभाव में आएगी. विश्लेषकों का मानना है कि संधि पर दस्तखत करने वाले देशों की सूची सिर्फ रूस, चीन और उनके सहयोगियों तक सीमित नहीं रहेगी.

पढ़ें: चीन में ऑनलाइन सेंसरशिप का नया दौर, 'नकारात्मक कंटेंट' पर सख्त कार्रवाई

मानवाधिकार संगठनों और टेक कंपनियों की चिंताएं

टेक ग्लोबल इंस्टीट्यूट की संस्थापक सबहानाज राशिद दिया ने कहा कि संधि के उस प्रावधान को लेकर चिंता जताई जा रही है, जो निजी कंपनियों को यूजर डेटा साझा करने के लिए बाध्य कर सकता है. उन्होंने न्यूज एजेंसी एएफपी से कहा कि यह संधि उन प्रथाओं को वैधता देती है जिनका इस्तेमाल अधिनायकवादी देशों में पहले से ही पत्रकारों के खिलाफ किया जाता रहा है.

दक्षिणपूर्व एशिया में तेजी से फैलते ऑनलाइन ठगी के धंधे को अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के पीछे एक बड़ी वजह बताया गया है. वहीं, मानवाधिकार संगठनों ने इस संधि के सुरक्षा प्रावधानों को "कमजोर” बताया है. एक दर्जन से अधिक अधिकार समूहों की ओर से जारी एक पत्र में कहा गया कि इस संधि में मानवाधिकारों की पर्याप्त सुरक्षा नहीं की गई है.

टेक कंपनियों ने भी इस नई संधि को लेकर अपनी चिंताएं प्रकट कीं. मेटा, डेल और भारत की इंफोसिस समेत 160 कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाला 'साइबरसिक्योरिटी टेक अकोर्ड' ग्रुप हनोई में आयोजित संधि समारोह में शामिल नहीं हुआ.

इससे पहले, इन कंपनियों ने चेतावनी दी थी कि यह संधि साइबर सुरक्षा रिसर्च को अपराध के दायरे में ला सकती है. साथ ही कहा कि प्रशासन का बिना रोक-टोक वाला नियंत्रण, अरबों यूजरों के आईटी सिस्टम को गंभीर खतरे में डाल सकता है.

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वियतनाम की मेजबानी पर सवाल

सरकार-विरोधी अभिव्यक्तियों को दबाने के वियतनाम के इतिहास को देखते हुए हनोई को मेजबान शहर चुने जाने की आलोचना भी की जा रही है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्चर डेब्रा ब्राउन के मुताबिक, वियतनाम में राजनेताओं की आलोचना करने वाली ऑनलाइन आवाजों को दबाने के लिए कानूनों का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने कहा कि रूस इस संधि के पीछे एक प्रमुख ताकत रहा है और इसके पारित होने पर वह जरूर खुश होगा.

उन्होंने जोड़ा कि विश्व में होने वाले अधिकतर साइबर अपराध खुद रूस से ही जुड़े हैं, और उसे अपने देश के भीतर इनसे निपटने के लिए कभी किसी अंतरराष्ट्रीय संधि की जरूरत नहीं पड़ी. विश्लेषकों के मुताबिक, यह संधि वैश्विक डिजिटल नियमन की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन निजता और सरकारों के कब्जे से जुड़ी चिंताओं को लेकर विवाद आगे भी जारी रहेंगे.


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