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बांग्लादेश: इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी एनसीपी

बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी कट्ट्ररपंथी पार्टी ने ऐलान किया है कि वह पिछले साल आंदोलन करने वाले छात्रों की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. हालांकि कुछ छात्र नेताओं ने इसका विरोध किया है

बांग्लादेश: इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी एनसीपी
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बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी कट्ट्ररपंथी पार्टी ने ऐलान किया है कि वह पिछले साल आंदोलन करने वाले छात्रों की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. हालांकि कुछ छात्र नेताओं ने इसका विरोध किया है.

इस्लामी कट्ट्ररपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में अगले साल होने वाले चुनावों के बाद बनने वाली सरकार में हिस्सेदार बनना चाहती है. अगस्त 2024 में छात्रों के आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से बाहर किए जाने के बाद यह देश में पहले आम चुनाव होंगे. हसीना के 15 साल के एकछत्र राज में इस्लामी कट्टरपंथियों की बहुत नकेल कसी गई. लेकिन उनकी सत्ता से विदाई के बाद यह अब ये पार्टियां फिर से एकजुट हो रही हैं.

बांग्लादेश में हिंसा

बांग्लादेश में 12 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की आवामी लीग को इन चुनावों में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं है, जबकि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के जीतने की संभावना जताई जा रही है. गुरुवार को पार्टी के कार्यवाहक चेयरमैन तारिक रहमान की 17 साल बाद बांग्लादेश में वापसी से पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश पैदा हो गया है.

बढ़ा कट्टरपंथियों का गठबंधन

रविवार को जमात-ए-इस्लामी ने घोषणा की कि लंबी वार्ताओं के बाद छात्रों की बनाई नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी ) के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर उसकी सहमति बन गई है. हालांकि इस दौरान कुछ छात्र नेताओं ने इस गठबंधन को लेकर अपनी नाराजगी भी जताई है.

जमात के नेता शफीकुर रहमान ने एक अन्य छोटे दल लिबरेशन डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ भी समझौता होने की बात कही है. उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, "हमारे गठबंधन में आठ पार्टियां थी, अब इसमें दो और पार्टियां आ गई हैं." जमात के नेतृत्व वाले गठबंधन में बहुत सी छोटी-छोटी पार्टियां है जिनके पास इससे पहले संसद की इक्का-दुक्का सीटें ही रही हैं.

17 करोड़ की आबादी वाला बांग्लादेश अगस्त में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से उथल-पुथल का शिकार है. इस्लामी कट्टरपंथी पार्टियों की बढ़ती ताकत से धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों में चिंता की लहर है, जिनमें सूफी मुसलमान और हिंदू शामिल हैं. देश की आबादी में इनकी हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से भी कम है.

कट्टरपंथियों ने ऐसी कई सांस्कृतिक गतिविधियों को बंद करने की मांग की है जिन्हें वे 'इस्लाम विरोधी' मानते हैं. इनमें संगीत और थिएटर के साथ-साथ महिला फुटबॉल मैच और पतंग उड़ाना भी शामिल है.

एनसीपी में विरोध

जमात से गठबंधन होने से पहले, एनसीपी के कम से कम 30 सदस्यों ने पार्टी प्रमुख नाहिद इस्लाम को पत्र लिखकर इसका विरोध किया है. उन्होंने कहा है कि एनसीपी की विचारधारा और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए वचनबद्धता जमात के एजेंडे से मेल नहीं खाते हैं. एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ने का मन बना रहीं तस्नीम जारा ने शनिवार को पार्टी छोड़ दी. रविवार को एक और संभावित उम्मीदवार तस्नुवा जबीन ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया.

वहीं पार्टी की वरिष्ठ नेता समांथा शर्मीन ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में चेतावनी दी है कि पार्टी को कट्टरपंथियों से गठबंधन करने की 'भारी कीमत' चुकानी होगी. एनसीपी का गठन इसी साल मार्च में हुआ था और उसने मध्यमार्गीय राजनीति का वादा किया था, जो लोकतांत्रिक, समतावादी और लोगों के कल्याण की राजनीति करेगी. एनसीपी ने जमात से गठबंधन होने के बारे में कोई बयान जारी नहीं किया है.


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