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पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों का अपहरण, जबरन विवाह और धर्म परिवर्तन

पाकिस्तान में हर साल अल्पसंख्यक समुदायों की कम से कम 2,000 नाबालिग लड़कियों का अपहरण होता है और उन्हें मुस्लिम पुरुषों से जबरन विवाह कराने और इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के मामले सामने आते हैं

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों का अपहरण, जबरन विवाह और धर्म परिवर्तन
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इस्लामाबाद। पाकिस्तान में हर साल अल्पसंख्यक समुदायों की कम से कम 2,000 नाबालिग लड़कियों का अपहरण होता है और उन्हें मुस्लिम पुरुषों से जबरन विवाह कराने और इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के मामले सामने आते हैं। यह खुलासा देश के प्रमुख अल्पसंख्यक अधिकार समूह वॉयस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी (वीओपीएम) की एक ताज़ा रिपोर्ट में हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में लिंग आधारित अपराध खास तौर पर हिंदू और ईसाई समुदाय की नाबालिग लड़कियों को निशाना बनाते हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय निकाय भी मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने 2024 में ऐसे मामलों पर चिंता जताते हुए कहा था कि इन अपराधों और अपराधियों को मिलने वाली छूट अब बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान धार्मिक अल्पसंख्यकों के हाशिये पर धकेले जाने का लंबा इतिहास रखता है। ईसाई उत्पीड़न की निगरानी करने वाले संगठन ओपन डोर्स की सूची में पाकिस्तान आठवें स्थान पर है। जबकि ईसाई देश की आबादी का महज 1.8 प्रतिशत हैं, उनके खिलाफ कुल ब्लास्फेमी आरोपों का लगभग एक चौथाई हिस्सा दर्ज होता है।

हिंदू समुदाय के संदर्भ में रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट और माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप की उन रिपोर्टों का हवाला दिया गया है, जिनमें पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती घृणा भाषण, भेदभाव और हाशियाकरण के मामलों को दर्ज किया गया है।

रिपोर्ट का कहना है कि एक बार इस्लाम में धर्म परिवर्तन कराने के बाद, पाकिस्तान के धर्मत्याग (अपोस्टेसी) कानूनों के कारण लड़कियां अपने मूल धर्म में वापस नहीं लौट सकतीं, क्योंकि इसे दंडनीय अपराध माना जाता है।

रिपोर्ट में 14 वर्षीय ईसाई लड़की मैरा शाहबाज और 15 वर्षीय हिंदू लड़की चंदा महाराज के मामलों का भी जिक्र किया गया है, जिनमें अदालतों ने पीड़िताओं को न्याय देने के बजाय अपहरणकर्ताओं का पक्ष लिया। चंदा के मामले में, नाबालिग साबित करने के सभी सबूत खारिज कर अदालत ने उसे एक साल बाद उसके अपहरणकर्ता को सौंप दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, अपहरणकर्ता और उनके सहयोगी अकसर झूठे जन्म प्रमाणपत्र बनवाकर पीड़िता की उम्र बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, मुस्लिम मौलवी की मदद से निकाह कराते हैं और दबाव डालकर बयान दिलवाते हैं कि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से हुआ। कई मामलों में अदालतें भी ऐसे अपहरणकर्ताओं को ही लड़की की कस्टडी सौंप देती हैं।


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