यूक्रेनी बच्चों को उत्तर कोरिया भेजे जाने पर मचा हंगामा
यूक्रेनी बच्चों को उत्तर कोरिया भेजे जाने पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने तीखा विरोध जताया. उनका आरोप है कि रूस नाबालिग बच्चों का इस्तेमाल दुष्प्रचार फैलाने और अपनी राजनीतिक साझेदारी मजबूत करने के लिए कर रहा है

यूक्रेनी बच्चों को उत्तर कोरिया भेजे जाने पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने तीखा विरोध जताया. उनका आरोप है कि रूस नाबालिग बच्चों का इस्तेमाल दुष्प्रचार फैलाने और अपनी राजनीतिक साझेदारी मजबूत करने के लिए कर रहा है.
खबर है कि दो यूक्रेनी बच्चों को उत्तर कोरिया में बने एक कैंप में भेजा गया था. यह कैंप उत्तर कोरियाई उच्च वर्ग के बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. कुछ विश्लेषक इन यूक्रेनी बच्चों को रूस और उत्तर कोरिया के प्रोपेगैंडा वॉर के मोहरे के तौर पर देखते हैं. जबकि, मानवाधिकार कार्यकर्ता का कहना है कि ये बच्चे वास्तव में युद्ध अपराधों के पीड़ित हैं.
बच्चों को भेजे जाने का खुलासा 3 दिसंबर को यूक्रेन के ‘रीजनल सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स' (आरसीएचआर) की कानूनी विशेषज्ञ कतेरीना राशेवस्का ने अमेरिकी कांग्रेस की सब-कमेटी के सामने गवाही में किया. आरसीएचआर के मुताबिक, ये दोनों बच्चे रूस के कब्जे वाले यूक्रेनी इलाके दोनेत्स्क की रहने वाली 12 साल की मिशा और क्रीमिया की राजधानी सिम्फेरोपोल की रहने वाली 16 साल की लीजा हैं. ये दोनों रूसी बच्चों के समूह के साथ उत्तर कोरिया के सोंग्दोवोन कैंप गए थे.
सोंग्दोवोन कैंप को 1960 में स्थापित किया गया था. यह शुरुआत में अन्य कम्युनिस्ट देशों से आने वाले बच्चों को रखने के लिए बनाया गया था. वहां बच्चे परिसर में बने छात्रावासों में रहते थे. वे वॉटर पार्क, नजदीकी समुद्र तट, फुटबॉल मैदान, जिम, एक्वेरियम और कई अन्य मनोरंजक गतिविधियों का आनंद ले सकते थे.
क्या है यूक्रेन का दावा
यूक्रेन के मुताबिक, रूस ने 19,500 से ज्यादा यूक्रेनी बच्चों का अपहरण किया है. इस आधिकारिक आंकड़े में सिर्फ पुष्टि किए गए मामले शामिल हैं. हालांकि, यूक्रेन का कहना है कि असली आंकड़ा इससे ज्यादा हो सकता है. राशेवस्का ने डीडब्ल्यू को बताया कि इन आंकड़ों में शायद मिशा और लीजा का नाम शामिल न हो, क्योंकि लंबे समय से इन आंकड़ों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. जबकि, इन दोनों बच्चों के बारे में हाल ही में जानकारी मिली है. उन्होंने कहा, "अभी हमारे पास इतने सबूत नहीं हैं कि हम उनके मामले में अवैध रूप से देश से बाहर भेजे जाने की बातों की पुष्टि कर सकें. इसलिए, उन्हें इस समय अपहृत बच्चों की श्रेणी में रखना जल्दबाजी होगी.”
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राशेवस्का के मुताबिक, बच्चों को भेजने में उनके कई अधिकारों के उल्लंघन हुए हैं. जैसे, उन्हें राजनीतिक विचारधारा सिखाना या ब्रेनवॉश करना, सैन्य गतिविधियों में शामिल करना, और रूसी दुष्प्रचार के लिए उनका इस्तेमाल करना. यह चौथे जिनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 50 के खिलाफ है. इसके अलावा, यह काम संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकार कन्वेंशन का भी उल्लंघन करता है, जिसमें बच्चों की पहचान, आराम, और उनके सबसे अच्छे हितों के सिद्धांत का हनन शामिल है.
आरसीएचआर की ओर से तैयार किए गए दस्तावेज के मुताबिक, बच्चों के लिए बनाए गए 165 कैंप में से ज्यादातर रूस और बेलारूस में हैं. हालांकि, ऐसा लगता है कि रूस और उत्तर कोरिया उस गठबंधन को और मजबूत करना चाहते हैं जो फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद बना है. नई दोस्ती के तहत, उत्तर कोरिया ने यूक्रेन में युद्ध के लिए हथियार और सैनिक भेजे हैं. जबकि, इसके बदले रूस ने उसे खाने के सामान, ईंधन और सैन्य तकनीक दी है.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने निंदा की
राशेवस्का ने डीडब्ल्यू को बताया कि उत्तर कोरिया के पूर्वी बंदरगाह शहर वॉनसन के पास सोंग्दोवोन इंटरनेशनल चिल्ड्रन कैंप में रुके दोनों बच्चों को बाद में रूस के कब्जे वाले यूक्रेन में वापस भेज दिया गया. उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, "इससे क्या फर्क पड़ता है? इस मामले में, रूस असल में दुष्प्रचार के लिए हमारे यूक्रेनी बच्चों का इस्तेमाल कर रहा है. वे उन्हें 'बाल और युवा कूटनीति' के तहत एक तरह से 'रूसी राजदूतों' के तौर पर दिखा रहे हैं.”
उन्होंने आगे कहा, "वे हमारे बच्चों का इस्तेमाल करके एक ऐसे देश के साथ रणनीतिक संबंध बना रहे हैं जिसे अमेरिका ने आतंकवाद का समर्थक करार दिया है. यह देश इन बच्चों की मातृभूमि यानी यूक्रेन के खिलाफ किए गए हमले में भी शामिल है. यह बिल्कुल मंजूर नहीं है.”
सोवियत संघ के पतन के बाद, यह कैंप तेजी से एक ऐसी जगह बन गया जहां उत्तर कोरिया के वरिष्ठ अधिकारियों के बच्चे रह सकते थे. हालांकि, रूस और उत्तर कोरिया के बीच दोस्ती फिर से शुरू होने के बाद से यह विदेशी बच्चों के लिए भी खुल गया है.
कैंप को बताया जाता है परंपराएं सिखाने का केंद्र
ट्रॉय विश्वविद्यालय के सियोल कैंपस में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर डैन पिंक्सटन ने 2013 में उत्तर कोरिया जाकर इस कैंप को देखा था. उन्होंने कहा, "यह बॉय स्काउट कैंप जैसा ही है, लेकिन यहां सबका ध्यान किम परिवार पर केंद्रित रहता है.”
उन्होंने बताया, "उत्तर कोरियाई बच्चों के लिए यह कैंप एक तरह से परंपराओं को सीखने की जगह जैसा होता है. वहां बच्चे कई तरह की मजेदार गतिविधियां कर सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें बहुत ज्यादा प्रोपेगैंडा और विचारधारा सिखाई जाती है. कैंप में जगह-जगह पोस्टर, बोर्ड और नारे लगे होते हैं. इनमें साम्राज्यवाद की बुराइयों के बारे में बताया जाता है.” वह आगे कहते हैं, "इन सब के बीच एक और बात मायने रखती है. वह यह है कि इससे पता चलता है कि उत्तर कोरिया और रूस किस तरह आपसी सहयोग को बढ़ा रहे हैं. वे पर्यटकों, व्यापारियों और अब तो छात्रों के लिए भी वहां जाने की व्यवस्था कर रहे हैं.”
पिंक्सटन का मानना है कि उत्तर कोरिया भेजे गए दोनों यूक्रेनी बच्चों को शायद एक प्रयोग के रूप में इस्तेमाल किया गया हो. इसके जरिए यह पता लगाना था कि अच्छे व्यवहार के बदले 'इनाम' मिलने पर गहरी वैचारिक शिक्षा यानी ब्रेनवॉशिंग का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है. वह कहते हैं, "यह सब इन बच्चों के 'रूसीकरण' का हिस्सा है और मुझे उम्मीद है कि हमें भविष्य में ऐसे और मामले देखने को मिल सकते हैं.”
अन्य विश्लेषक इसे सिर्फ दुष्प्रचार का हिस्सा मानते हैं. सियोल की कूकमिन यूनिवर्सिटी में इतिहास और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के रूसी प्रोफेसर आंद्रेई लैंकोव ने बच्चों को ले जाने के इस काम को ‘बहुत ही बेशर्मी से की गई चालबाजी' बताया.
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उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का इरादा कुछ भी हो, राशेवस्का पक्के तौर पर मानती हैं कि दुनिया को आगे आकर यूक्रेनी युवाओं और बच्चों को संरक्षण देने के लिए अधिक प्रयास करने चाहिए. उन्होंने कहा, "किम जोंग उन के शासन के लिए, यह 'बच्चों की कूटनीति' के माध्यम से रूस के साथ 'रणनीतिक साझेदारी' को बढ़ाने का एक आसान और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीका है. रूस के लिए, यह रणनीति फायदेमंद है क्योंकि बच्चों को ऐसी जगह देखने को मिलती है जहां मानवाधिकार और आजादी, रूस से भी ज्यादा खराब हालत में हैं. वहां न इंटरनेट है, न मोबाइल फोन, और न ही बाद में किसी से जुड़े रहने की कोई गुंजाइश है.”
राशेवस्का कहती हैं, "यह बात मायने नहीं रखती है कि एक बच्चा प्रभावित हुआ है या दो बच्चा. आखिरकार वे हमारे बच्चे हैं. बच्चे आंकड़े नहीं है. बच्चे लोगों को सदमा पहुंचाने का साधन नहीं हैं. बच्चे हमारा भविष्य हैं और वह भविष्य हमारा होना चाहिए था, लेकिन वह हमसे छीन लिया गया है. यह बात खुलकर कही जानी चाहिए.”
संयुक्त राष्ट्र ने रूस से बच्चों को वापस करने को कहा
पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने कहा कि जिन यूक्रेनी बच्चों को ‘जबरन' रूस ले जाया गया है उन्हें तुरंत और बिना शर्त के वापस भेजा जाए. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव में रूसी संघ से मांग की गई है कि जिन भी यूक्रेनी बच्चों को जबरन दूसरी जगहों पर भेजा गया है उन्हें तुरंत, सुरक्षित और बिना किसी शर्त के वापस भेजा जाए.
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इस प्रस्ताव में रूस से यह भी कहा गया है कि वह "यूक्रेनी बच्चों को जबरन हटाने, देश से बाहर भेजने, उनके परिवारों और कानूनी अभिभावकों से अलग करने, नागरिकता बदलने या गोद लेने जैसी किसी भी प्रक्रिया से उनके व्यक्तिगत दर्जे को बदलने, और उनका ब्रेनवॉश करने की सभी गतिविधियों को बिना किसी देरी के रोके.”
इसके जवाब में रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि "इस प्रस्ताव में रूस के खिलाफ अपमानजनक बातें की गई हैं, जिसमें उस पर यूक्रेनी बच्चों को बाहर भेजने, उन्हें ‘जबरदस्ती गोद लेने' और उनकी पहचान मिटाने का आरोप लगाया गया है.”
मंत्रालय के एक बयान के मुताबिक, "रूस एक बार फिर जोर देता है कि यूक्रेनी बच्चों को डिपोर्ट करने यानी बाहर भेजने के जो भी आरोप उस पर लगे हैं, वे पूरी तरह से बेबुनियाद और भ्रामक हैं. यह खास तौर पर युद्ध क्षेत्र से उन नाबालिगों को निकालने का मामला था जिनकी जान खतरे में थी.”


