Top
Begin typing your search above and press return to search.

दुनिया महामारी से सबक लेने में नाकाम: रिपोर्ट

कोरोना महामारी के डेढ़ साल में दुनिया ने अभी भी प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत कम काम किया है.

दुनिया महामारी से सबक लेने में नाकाम: रिपोर्ट
X

एक वैश्विक स्वास्थ्य मॉनिटर ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस महामारी के डेढ़ साल में, दुनिया ने अभी भी प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत कम काम किया है और अपनी गलतियों से सीखने में विफल रही है.

बर्लिन में पेश की गई एक रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र निकाय ग्लोबल प्रिपेयर्डनेस मॉनिटरिंग बोर्ड (जीपीएमबी) ने महामारी की वैश्विक प्रतिक्रिया में निरंतर विफलताओं की आलोचना की है.

रिपोर्ट में कहा गया, "अगर कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष को तैयारियों को गंभीरता से लेने और विज्ञान के आधार पर तेजी से कार्य करने में सामूहिक विफलता द्वारा परिभाषित किया गया तो दूसरे को गहन असमानताओं और नेताओं की विफलता के रूप में चिह्नित किया गया है."

महामारी से क्या सीखा
रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि ने एक ऐसी दुनिया को उजागर कर दिया है जो "असमान, विभाजित और बेहिसाब" है. रिपोर्ट कहती है, "स्वास्थ्य आपातकालीन पारिस्थितिकी तंत्र इस टूटी हुई दुनिया को दर्शाता है. यह उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं है और इसमें बड़े सुधार की जरूरत है." बर्लिन में ग्लोबल हेल्थ समिट में यह रिपोर्ट पेश की गई. कोरोना वायरस के कारण मौतों की संख्या पचास लाख के करीब पहुंचने वाली है.

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कोविड-19 से जुड़ी अधिक मृत्यु दर को ध्यान में रखते हुए डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि कुल मृत्यु दर दो से तीन गुना अधिक हो सकती है. टीकाकरण दरों के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच गहरा मतभेद नजर आता है.

वैक्सीन के मामले में पिछड़े गरीब देश
विश्व व्यापार संगठन की प्रमुख एनगोजी ओकोंजो-इविएला ने इस महीने की शुरुआत में बताया था कि दुनिया भर में दी जाने वाली छह अरब से अधिक टीकों की खुराक में गरीब देशों में केवल 1.4 प्रतिशत लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है.

जीपीएमबी के सह-अध्यक्ष एल्हाद एस सी ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा, "कोविड-19 के दौरान वैज्ञानिक प्रगति, विशेष रूप से वैक्सीन विकास की गति, हमें गर्व का कारण देती है." वे आगे लिखते हैं, "हालांकि, हमें कई त्रासदियों पर गहरी शर्म महसूस करनी चाहिए. टीके की जमाखोरी, कम आय वाले देशों में ऑक्सीजन की विनाशकारी कमी, शिक्षा से वंचित बच्चों की पीढ़ी, नाजुक अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य प्रणालियों का टूटना आदि."

उन्होंने यह भी कहा कि महामारी से लाखों मौतें "न तो सामान्य थीं और न ही स्वीकार्य" थीं. 2020 की एक रिपोर्ट में जीपीएमबी ने कहा कि महामारी ने पहले ही खुलासा कर दिया था कि दुनिया ने इस तरह की आपदाओं की तैयारी पर कितना कम ध्यान केंद्रित किया था, पर्याप्त चेतावनी के बावजूद बड़ी बीमारी का प्रकोप अपरिहार्य था.


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it