प्रदेशभर में मजदूरों ने प्रदर्शन कर दिखाई ताकत
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन ने आज की सफल आम हड़ताल के लिए इस देश के मजदूरों और आम जनता को बधाई दी है

रायपुर। श्रम कानूनों को निरस्त करके 12 घंटे के कार्य दिवस थोपने, न्यूनतम वेतन और हड़ताल का अधिकार छीनने का प्रावधान करने वाली श्रम संहिता के खिलाफ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत संगठित और असंगठित क्षेत्र की देशव्यापी हड़ताल के साथ छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े कई किसान संगठनों ने आज एकजुटता व्यक्त करते हुए पूरे प्रदेश में आंदोलनकारी मजदूरों के समर्थन में प्रदर्शन किया। कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा आहूत कल देशव्यापी किसान आंदोलन में जगह-जगह किसानों के प्रदर्शन होंगे और किसान श्रृंखलाएं बनाई जाएंगी।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन ने आज की सफल आम हड़ताल के लिए इस देश के मजदूरों और आम जनता को बधाई दी है। राजनांदगांव, सरगुजा, कांकेर और कोरबा सहित कई जिलों से एकजुटता प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि जिला किसान संघ के नेतृत्व में जहां राजनांदगांव में और किसान सभा के नेतृत्व में अंबिकापुर और कोरबा में मजदूरों के साथ मिलकर प्रदर्शन किया गया और श्रम कानूनों को बहाल करने की मांग की गई, वहीं कांकेर के दूरस्थ आदिवासी अंचल कोयलीबेड़ा में एक सभा के जरिये संविधान रक्षा की शपथ ली गई। अन्य जिलों से भी अभी सूचनाएं आ रही हैं।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा देश को कॉर्पोरेट गुलामी की ओर धकेलने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है। दुनिया में आज कहीं भी 12 घंटों का कार्य दिवस नहीं है। न्यूनतम वेतन और हड़ताल के जरिये सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार मजदूरों ने पूंजीपतियों से लडक़र हासिल किया है। लेकिन आज फिर मजदूरों को दासता के युग में धकेला जा रहा है। देश की राष्ट्रीय संपत्ति को कार्पोरेटों की तिजोरियों में कैद करने के साथ ही अब मजदूरों से उनके जीवन और आराम करने का अधिकार छीनकर उसे कॉर्पोरेट मुनाफे के हवन-कुंड में झोंका जा रहा है। इसी प्रकार किसान विरोधी कानूनों के जरिये खेती-किसानी के अधिकार और नागरिकों की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया गया है। इसलिए मजदूर-किसानों का यह देशव्यापी संघर्ष आम जनता का संघर्ष भी बन गया है।
किसान नेताओं ने हरियाणा में मजदूर-किसान नेताओं को गिरफ्तार करने की, दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहे किसानों को रोकने की कोशिशों की और उन पर आंसू गैस के गोले और पानी की बौछार मारने की मोदी सरकार की हरकत की कड़ी निंदा की है। इस प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ के किसान भी प्रतीकात्मक तौर से हिस्सा लेने जा रहे हैं और कल पूरे प्रदेश में प्रदर्शन करने, मोदी सरकार के पुतले जलाने और किसान श्रृंखलाएं बनाने का आह्वान किया गया है। इन विरोध प्रदर्शनों के जरिये मोदी सरकार से कृषि विरोधी तीनों काले कानून और बिजली कानून निरस्त करने, सभी फसलों, सब्जियों, वनोपजों और पशु-उत्पादों का सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, खेत मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन और रोजगार की गारंटी का कानून बनाने की मांग की जाएगी। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार से भी मांग की जा रही है कि केंद्र के कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए पंजाब की तजऱ् पर वह एक सर्वसमावेशी कानून बनाये। किसान नेताओं ने राज्य के मंडी कानून में संशोधनों को अपर्याप्त और केंद्र के किसान विरोधी कदमों का अनुगामी करार दिया है और इसका तीखा विरोध किया है।
किसान आंदोलन के नेताओं ने कहा है कि आगामी दिनों में पूरे प्रदेश के किसान संगठनों को एकजुट करके कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रतिरोध को और तेज किया जाएगा। यह संघर्ष तब तक चलेगा, जब तक कि इन मजदूर-किसान विरोधी कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता। उन्होंने पूरे प्रदेश के किसान समुदाय से इन संघर्षों में शामिल होने की अपील की है।
प्रदेश के कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन , मंत्रालयीन कर्मचारियों, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया था । बैंक, बीमा, डाक, इनकम टैक्स, कोयला, बालको, राजहरा, हिरी, खदान, बैलाडीला, ऊर्जा, भिलाई में ठेका मजदूर, आंगनवाड़ी , मध्यान्ह भोजन कर्मी, कोटवार, पंचायत कर्मी, राज्य सरकार कर्मी, एम्स कर्मचारी, बीस एन एल कर्मी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव व हर हिस्से के श्रमिक हस्तल पर रहे ।
राजधानी सहित प्रदेश के सभी स्थानों पर संयुक्त सभाएं व प्रदर्शन
संयुक्त मंच के साथियों ने सपरे स्कूल मैदान में संयुक्त सभाएं की । जिसे बी सान्याल, संजय सिंह, धर्मराज महापात्र, आर डी सी पी राव, नरोत्तम शर्मा, राकेश साहू, प्रेमकिशीर बाघ, प्रदीप मिश्रा, विभाष पैतुंडी, सी एल साहू, तुलसी साहू, पद्मा साहू, आदि ने संबोधित किया ।
वकताओ ने हड़ताल की सफलता से बौखलाकर हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में किसानो को दिल्ली पहुंचने से रोकने विगत 3 दिनों से किसान नेताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी की तीव्र आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे दमन से सरकार की देश बेचो मुहिम के विरुद्ध मजदूर, किसान आंदोलन को रोका नहीं जा सकता है । श्रमिक संगठनों के नेताओं ने मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार एवं भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा देश के मजदूरों, किसानों और आम लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों पर किए जा रहे हमलों की कड़ी की और कहा कि भाजपा सरकार ने, ‘सभी को साथ लेकर चलने का’ , जो मुखौटा अपने पहले कार्यकाल (2014-19) में पहना था, 2019 के बाद से अपने दूसरे कार्यकाल में उतार कर फेंक दिया है। एक ऐसे वक़्त में जबकि मांग की कमी के चलते अर्थव्यवस्था सभी पैमानों पर काफी सुस्त हैं, सरकार ने व्यापार करने में आसानी के नाम पर अपनी गलत नीतियों को जारी रखा, जिसके फलस्वरूप व्यापक दरिद्रता की स्थिति और गंभीर हुई और संकट और गहरा गया। इस प्रक्रिया में, कॉरपोरेट करों को कम करने के अलावा, सरकार ने विपक्षी दलों की अनुपस्थिति में संसद में तीन श्रम-विरोधी संहिताओं को नितांत अलोकतांत्रिक तरीके से पारित कर लिया ।
इन श्रम संहिताओं की रचना यूनियनों का गठन मुश्किल बना कर और उनका हड़ताल का अधिकार छीन कर स्ट्रीट वेंडर, घरेलू कामगार, मध्याह्न भोजन कर्मचारी, बीड़ी श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, रिक्शा-चालकों और अन्य दैनिक वेतन भोगी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बड़े वर्ग को इन कानूनों के दायरे से बाहर करके, श्रमिकों पर दासता की स्थितियों को थोंपने के उद्देश्य से की गई है। इसी तरह से सभी संसदीय और संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हुए, बगैर कानूनी रूप से कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दिए, सरकार ने तीन कृषि बिलों को पारित किया है और आवश्यक वस्तु अधिनियम में प्रतिबंधात्मक परिवर्तन किया है।
इस के द्वारा सरकार ने कॉर्पोरेट और अनुबंध खेती, बड़े खाद्य प्रसंस्करण और विदेशी और घरेलू खुदरा एकाधिकार को बढ़ावा दिया है और देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डाला है । इतना ही नहीं, बिजली (संशोधन) विधेयक, 2020 पर 12 मुख्यमंत्रियों के विरोध को अनदेखा करते हुए और संसद में प्रस्तुत कर बिल को विधिवत लागू किए बिना, बिजली वितरण नेटवर्क का निजीकरण शुरू कर दिया है और मौजूदा कर्मचारियों को नए मालिकों की दया पर छोड़ दिया है।
इससे पहले, सरकार ने बड़े एनपीए खातों की वसूली हेतु कोई प्रयास किये बगैर ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय कर आम जमाकर्ताओं के धन को खतरे में डाला । भारतीय रिज़र्व बैंक, जीवन बीमा निगम और सार्वजानिक क्षेत्र के विभिन्न उपक्रमों का उपयोग एटीएम के रूप में किया जा रहा है; रेलवे मार्ग, रेलवे स्टेशन, रेलवे उत्पादन इकाइयाँ, हवाई अड्डे, पोर्ट और डॉक्स, लाभकारी सरकारी विभाग , कोयला खदानें, नकदी समृद्ध सार्वजनिक उपक्रमों जैसे बीपीसीएल, 41 आयुध कारखानों, बीएसएनएएल, एयर इंडिया, सडक़ परिवहन जैसे सार्वजानिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण का उन्मादी खेल नीलामी और 100त्न एफडीआई के माध्यम से खेला जा रहा है। एक ऐसे समय में जब देश कोविड-19 महामारी से त्रस्त है, इन सभी विनाशकारी उपायों को तेज़ी से अमल में लाया जा रहा है।
यहां तक कि फ्रंटलाइन वॉरियर्स - डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, स्वच्छता कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकर्ता, जिनको अपना स्वयं का जीवन जोखिम में डाल कर सर्वेक्षण करने के लिए मजबूर किया जा रहा है , उनको वादा किया गया मौद्रिक और बीमा लाभ न देकर उनके साथ घिनौना व्यवहार किया गया है, जबकि चिन्हित भ्रष्ट पूंजीपति महामारी में भी रोजाना करोड़ों रुपये के बाजार पूंजीकरण के लिए सुर्खियों में हैं!। सरकारी कर्मचारी को समय से पहले रिटायर करने की धमकी दी जा रही है ।
राजभवन घेराव करने निकले किसानों को पुलिस ने रोका
छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के नेतृत्व में प्रदेश के विभिन्न जिलों से राजभवन घेरने के लिये रायपुर आये सैकड़ों किसानों ने प्रेस क्लब के पास से रैली के रूप में राजभवन की ओर कूच किया, प्रदर्शनकारी किसान राज्य और केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाकर अपने असंतोष को व्यक्त कर रहे थे किसानों हाथों में मांगों से संबंधित तख्तियां और झंडे लिये थे, दरगाह के समीप बेरिकेट लगाकर पुलिस ने किसानों को राजभवन की ओर जाने से रोक दिया।
प्रदर्शनकारी किसान केंद्र सरकार के तीन कानूनों को विरोध कर रहे थे और स्वामीनाथन आयोग के लागत सी-2 पर 50त्न लाभ जोडक़र कृषि उपजों का न्यूनतम गारंटी मूल्य कानून बनाने की मांग कर रहे हैं इसके अलावा किसान राज्य सरकार से इस बात से असंतुष्ट हैं कि दो साल का बाकी बोनस देने और चना गेंहूं आदि उपजों की सरकारी खरीदी करने का वायदा आज तक पूरा नहीं किया है, किसान राज्य सरकार से प्रति एकड़ 20 च्.ि की दर से धान की खरीदी करने, राजाव गांधी किसान न्याय योजना में सभी किसानों को शामिल करने और प्रति एकड़ 10 हजार रू. आदान की राशि जून माह तक एक मुश्त प्रदान करने और गैर बोर वाले किसानों को भी सिंचाई पंपों को दी जाने वाली बिजली सब्सिडी के बराबर की राशि देने की मांग भी कर रहे थे।
प्रदेश के किसानों के रायपुर आने की पूर्व सूचना होने के बावजूद, राज्यपाल ने किसान प्रतिनिधियों से सौजन्य भेंट के लिये 5 मिनट का समय भी नहीं दिया और किसान प्रतिनिधियों को राजभवन के सचिवालय में ग्यापन सौंपने का संदेश दिया जिसे किसानों ने ठुकरा दिया किसान इस बात पर अड़ गये कि जब ग्यापन अधिकारी को ही देना है तब राजभवन का कोई अधिकारी आकर उनका ग्यापन ले, बाद में नायब तहसीलदार सोनकर ने किसानों का प्रधानमंत्री और राज्यपाल के नाम अलग अलग ग्यापनों को लिया
छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के राजकुमार गुप्त ने राज्यपाल पर किसानों के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाते हुए कहा कि एक साल पहले भी संगठन द्वारा राज्यपाल से भेंट करने के लिये समय देने लिखित में आवेदन किया गया था किंतु किसानों को आज तक भेंट के लिये समय नहीं दिया गया।
आज के प्रदर्शन में किसान संगठन के केंद्रीय नेताओं राजकुमार गुप्त, आई के वर्मा, झबेंद्र भूषण वैष्णव, दुर्ग जिला के उत्तम चंद्राकर, परमानंद यादव, बद्रीप्रसाद पारकर, बाबूलाल साहू, बंशी देवांगन, संतु पटेल, गिरीश दिल्लीवार, पूरन साहू, शंकरराव,अमित हिरवानी, बलकरण वर्मा, बेमेतरा जिला के रामसहाय वर्मा, पंचम साहू, उमाशंकर साहू, कांकेर जिला के एस आर नेताम, छत्तीसगढ़ी किसान समाज के सुबोध देव आदि प्रमुख रूप से शामिल थे ।


