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ठंड से लड़ने के लिए वूली मैमथ के वंशाणुओं में हुए थे कई बदलाव

वूली मैमथों के सबसे बड़े जेनेटिक मूल्यांकन के नतीजे सामने आए हैं जिनसे उनके बारे में नई जानकारी मिली है. उनके बाल, कान, ठंड सहने और चर्बी के भंडारण की क्षमता और कान के मैल को लेकर भी महत्वपूर्ण बातें पता चली हैं.

ठंड से लड़ने के लिए वूली मैमथ के वंशाणुओं में हुए थे कई बदलाव
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शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने साइबेरिया के पर्माफ्रॉस्ट में मिले लुप्त हो चुके 23 वूली मैमथों के अवशेषों से उनके जीनोम का मूल्यांकन किया था. फिर उन्होंने इन जीनोमों की 28 आज के एशियाई और अफ्रीकी हाथियों के जीनोमों से तुलना की.

स्टॉकहोल्म के सेंटर फॉर पैलियोजेनेटिक्स में इवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट डेविड दिएज-देल-मोलिनो ने बताया, "इसका उद्देश्य उन म्युटेशनों का पता करना था जो सभी मैमथों में तो हैं लेकिन किसी भी हाथी में नहीं हैं - यानी, वो जेनेटिक संयोजन जो सिर्फ वूली मैमथ में थे." दिएज-देल-मोलिनो करंट बायोलॉजी पत्रिका में छपे इस अध्ययन के मुख्य लेखक हैं.

लाखों साल पुराना मैमथ

उन्होंने आगे बताया, "हमने पाया कि वूली मैमथों के जीनों में मॉलिक्यूलर संयोजन थे जो आर्कटिक के ठंडे वातावरण में जिंदा रहने के तरीकों से संबंधित थे, जैसे मोटा फर, चर्बी का भंडारण और मेटाबोलिज्म, और थर्मल सेंसेशन."

जीनोमों में 7,00,000 साल पुराना एक मैमथ शामिल है, जो कि साइबेरिया के स्टेप्पीज में इस प्रजाति के शुरू होने के समय के करीब का वक्त है. मैमथों के बाद के इतिहास में रहने वाले दूसरे मैमथों के जीनोम भी हैं, जिनकी वजह से यह दिखाया जा सकता है कि जेनेटिक बदलाव कैसे आए.

यह प्रजाति ऐसे समय में उभरी थी जब धरती की जलवायु ठंडी हो रही थी. उस समय ये उत्तरी यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में रहते थे. अधिकांश मैमथ करीब 10,000 साल पहले लुप्त हो गए थे. वो आखिरी हिम युग के अंत का समय था और जलवायु गर्म होनी शुरू हो चुकी थी.

वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर भी बहस जारी है कि मानवों द्वारा इनके शिकार की भी इनके लुप्त हो जाने में भूमिका रही हो. आखिरी वूली मैमथ 4,000 साल पहले साइबेरिया के तट से दूर रैंगेल द्वीप पर मर गए.

मैमथ जीनोम पर काम

सबसे पहले पूरे मैमथ जीनोम की सिक्वेंसिंग 2015 में की गई थी. नए अध्ययन ने दिखाया है कि 92 प्रतिशत अनूठे म्युटेशन इस प्रजाति की शुरुआत के समय ही मौजूद थे और कुछ विशेषताओं में इवोल्यूशन होता रहा. उदाहरण के तौर पर, इनका फर और ज्यादा रोयेंदार और इनके कान और ज्यादा छोटे होते ही चले गए.

सेंटर फॉर पैलियोजेनेटिक्स में इवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक लव डालेन कहते हैं, "हो सकता है हमारे 7,00,000 साल पुराने वूली मैमथ के कान आखिरी हिम युग के मैमथों के कानों से बड़े रहे हों."

एक बेहद इवॉल्व हो चुका जीन ऐसा भी था जिसे जब प्रयोगशाला में चूहों में "ऑफ" कर दिया गया तो उसकी वजह से उनके कान असामान्य रूप से छोटे हो गए. वूली मैमथ करीब आधुनिक अफ्रीकी हाथियों के आकार के ही थे, यानी करीब 13 फुट ऊंचे. लेकिन उनके कान काफी छोटे थे ताकि कानों की सतह बड़ी होने की वजह से शरीर का गर्मी वहां से उड़ न जाए.

सूखा और छल्लेदार फर

फर को लेकर कई जीन आधुनिक हाथियों से अलग हैं. इनमें से एक इंसानों में भी होता है और वो एक ऐसी अवस्था से जुड़ा होता है जिसमें बाल सूखे और छल्लेदार रहते हैं और उन्हें कंघी कर के सपाट नहीं किया जा सकता है.

मैमथों में रोयेंदार बाल और चर्बी के भण्डार से ठंड में इंसुलेशन में मदद मिलती होगी. इसके अलावा मैमथों के एक जीन में ऐसा म्युटेशन था जो इंसानों में कान में सूखे मैल के होने से जुड़ा है. हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इससे मैमथों को क्या फायदा होगा.

शोधकर्ता क्लोनिंग के जरिए मैमथ को फिर से धरती पर लाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं लेकिन अगर ऐसी कोई कोशिश होती है तो उसमें इनके काम से मदद ली जाती सकती है.

डालेन ने बताया, "हम जो डाटा सामने लाए हैं उसे मैमथों को पुनर्जीवित करने की दिशा में पहले एलिमेंट की तरह देखा जा सकता है. लेकिन यह बताया जाना चाहिए कि आगे का रास्ता लंबा है, वो गड्ढों भरा भी हो सकता है और यह भी हो सकता है कि वो कहीं भी ना पहुंचाए."


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