नफ़रत के खिलाफ़ खड़ी महिलाएं
ऐसे वक्त में जब देश का वातावरण एक सम्प्रदाय, कुछ समुदायों तथा कतिपय विचारों के लिये पल रही नफ़रत के कारण विषाक्त हो चला है

ऐसे वक्त में जब देश का वातावरण एक सम्प्रदाय, कुछ समुदायों तथा कतिपय विचारों के लिये पल रही नफ़रत के कारण विषाक्त हो चला है, कुछ महिलाएं खुद को बड़े खतरे में डालती हुई इसके विरूद्ध उठ खड़ी हुई हैं। बेशक, उनके जैसे हजारों लोगों की तरह वे भी अलग-थलग पड़ती हुई दिख रही हैं लेकिन उम्मीद है कि उनसे प्रेरणा लेकर अन्य लोग भी साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिये कोशिशें करेंगे।
लोक गायिका नेहा सिंह राठौर लम्बे समय से कट्टरपंथियों के रडार पर हैं। अपने ठेठ देसी अंदाज में लिखे और गाये गीतों से वे सत्ता से कंटीले सवाल करती हैं। देश-प्रदेश की समस्याओं को वे अपने ढंग से उठाती हैं और सत्ता पर चोट करने से कतई नहीं चूकतीं। 'यूपी में का बा?' तथा 'बिहार में का बा?' वाले गीतों की उनकी श्रृंखला खासी लोकप्रिय हुई थी। बदहाली, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, कोरोना के कुप्रबंधन आदि पर उन्होंने सरकार पर तीखे हमले किये हैं। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर उन्होंने केन्द्र सरकार से अपने गीतों के जरिये सवाल किये जो पार्टी समर्थकों को नागवार नहीं गुज़रे। उनके खिलाफ लखनऊ तथा अयोध्या में एफआरआई दर्ज करा दी गयी है। यह भाजपा तथा उनसे जुड़े संगठनों का वही पैंतरा है जिसके अंतर्गत समाज सेवकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों आदि के खिलाफ मामले दज़र् होते हैं।
नेहा के खिलाफ़ राजद्रोह की शिकायत दर्ज की गयी है। हालांकि वे इस बात से घबराई हुई नहीं है और वे लगातार अपने वीडियो प्रसारित कर बतला रही हैं कि वे सत्ता से सवाल करना छोड़ेंगी नहीं। लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो. माद्री काकोटी भी लम्बे समय से वीडियो डालकर शासकीय कार्य प्रणाली की खामियां उजागर करती रही हैं। उनके खिलाफ भी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कर दी गयी है। नेहा तथा माद्री से भाजपा सरकारों की खुन्नस पुरानी है, वैसी ही जिस प्रकार स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा आदि से है जिसके खिलाफ़ पिछले दिनों उनके कार्यक्रम को लेकर नाराज़ महाराष्ट्र सरकार ने मामला दज़र् कर लिया था।
ये दोनों मामले उनकी अभिव्यक्ति को लेकर रहे हैं, पर इसके विपरीत जो अन्य महिलाएं नफ़रतियों के कोप का शिकार हो रही हैं, वे हाल के घटनाक्रमों के चलते हैं। 22 अप्रैल को पहलगाम (कश्मीर) के बैसरन घाटी में आतंकियों की फायरिंग से जो 26 पर्यटक मारे गये, उनमें से एक हिमांशी के पति लेफ्टिनेंट जनरल विनय नरवाल भी थे। 16 अप्रैल को दोनों की शादी हुई थी। इस घटना के बाद हिमांशी ने बेहद संयम व विवेक का परिचय देते हुए लोगों से अपील की कि 'चाहे आतंकियों ने उनके पति को कथित रूप से उनका धर्म पूछकर गोली मारी हो, फिर भी देश के मुसलमानों और कश्मीरियों को टारगेट न किया जाये।'
ऐशान्या के पति शुभम द्विवेदी की भी आतंकियों ने हत्या की। उन्होंने इस घटना का ब्यौरा देते हुए कहा कि 'दो हजार पर्यटकों के वहां होने के बावजूद एक भी पुलिस वाला या सुरक्षाकर्मी नहीं था।' उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि 'जिस सरकार के भरोसे वे वहां गये थे, उसने हम पर्यटकों को अनाथ छोड़ दिया।' भाजपा समर्थक इसलिये कुपित हैं कि उन्होंने व्यवस्था में खामी क्यों निकाली। उधर उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल नैनीताल की शैला नेगी भी नफ़रती ब्रिगेड के निशाने पर आ गयी हैं। यहां एक उम्रदराज़ मुस्लिम ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया। पुलिस वे आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया गया है लेकिन इसे लेकर वहां जमकर बवाल हो रहा है। वहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ मारपीट हो रही है, उनकी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। शैला ने उपद्रव कर रहे हिन्दुओं को समझाने की कोशिश की कि किसी एक व्यक्ति की गलती के लिये पूरे समुदाय को दोषी ठहराना उचित नहीं है। निश्चित ही यह एक समझदारी से भरी और विवेकपूर्ण बात थी लेकिन लोगों का गुस्सा शैला पर भड़क उठा है।
वैसे तो ये सभी महिलाएं अपने विचारों पर अडिग हैं लेकिन उनके खिलाफ जिस तरह से घृणा का सैलाब उमड़ आया है वह बेहद दुखद और बहुत हद तक इनकी सुरक्षा की दृष्टि से चिंताजनक है। नेहा को अपशब्द कहे जा रहे हैं। ये उनके रंग-रूप को लेकर तो हैं ही, उनका चरित्र हनन भी किया जा रहा है। हिमांशी, जिनका वैवाहिक जीवन एक सप्ताह का भी पूरा नहीं हुआ था, उनके बारे में बेहद अशोभनीय टिप्पणियां सोशल मीडिया पर देखी जा रही हैं। कोई उन्हें बचा जीवन किसी मौलवी के साथ बिताने की सलाह दे रहा है तो कोई कह रहा है कि 'वह अपने पति को खा गयी'। ऐशान्या से इसलिये नाराज़गी है क्योंकि उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था में चूक बतलाई है। शैला को तो सीधे-सीधे बलात्कार करने की तक धमकियां दी जा रही हैं।
इन सभी महिलाओं के प्रति जो विचार भाजपा समर्थकों द्वारा व्यक्त किये जा रहे हैं वे एक पतनशील समाज का साक्ष्य हैं जिससे उबरने के कोई चिन्ह दूर-दूर तक इसलिये दिखाई नहीं देते क्योंकि इन तत्वों को सत्ता का प्रश्रय प्राप्त है। जिस प्रकार से उन्हें चरित्रहीन निरूपित किया जा रहा है वह बताता है कि भारत एक कुंठित तथा नफ़रती समाज में बदल चुका है। पहले से यह देश स्त्री विरोधी है। सत्ता पोषित नफ़रती तत्वों से देश की विवेकशील व संवेदनशील महिलाएं पहले से अधिक असुरक्षित हैं।


