महिला आरक्षण विधेयक : शकुनि का पांसा
अंतत: वोट कबाड़ने और सत्ता में बने रहने के लिये आखिरी पांसा भी फेंक दिया गया

- संध्या शैली
इस विधेयक के खिलाफ कोई नहीं है। महिलाओं को समानता की मांग करने वाला कभी उन्हें आरक्षण देने के खिलाफ हो भी नहीं सकता। इसकी नियमावली भी बाद में बनाई जा सकती है, लेकिन सवाल यह है कि इतने सालों तक सरकार में रही और संसद के अधिवेशनों में महिला विरोधी कदम उठाने वाली भाजपा को आज अचानक क्यों इस देश की महिलाओं के पक्ष में निर्णय लेने का ख्याल आ गया?
अंतत: वोट कबाड़ने और सत्ता में बने रहने के लिये आखिरी पांसा भी फेंक दिया गया। 'मनुस्मति' को देश के संविधान से ऊपर मानने वाली, 'संविधान सभा' में हिंदू महिलाओं को अधिकार देने वाले 'हिंदू कोड बिल' के खिलाफ हंगामा करते हुये उसे पारित होने से रोकने वाली महिला विरोधी पलटन ने अंतत: महिला आरक्षण के विधेयक को 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' के नाम से एक पांसे की तरह उछाल दिया है।
इस विधेयक के खिलाफ कोई नहीं है। महिलाओं को समानता की मांग करने वाला कभी उन्हें आरक्षण देने के खिलाफ हो भी नहीं सकता। इसकी नियमावली भी बाद में बनाई जा सकती है, लेकिन सवाल यह है कि इतने सालों तक सरकार में रही और संसद के अधिवेशनों में महिला विरोधी कदम उठाने वाली भाजपा को आज अचानक क्यों इस देश की महिलाओं के पक्ष में निर्णय लेने का ख्याल आ गया? इसीलिए न कि अब लोकसभा और कई बड़े राज्यों के चुनाव सिर पर हैं।
कई महिला संगठन इस विधेयक को पारित करने और महिलाओं को विधायिकाओं में अधिकार देने की कई सालों से मांग कर रहे थे। दिल्ली और देश के कई शहरों, कस्बों और इलाकों में इसकी मांग करते हुये प्रदर्शन हुये, सेमीनार हुये, महिलाओं की बैठकें हुईं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार भी कोई दूध की धुली नहीं थी, लेकिन उस वक्त जब यह विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ था तब लोकसभा में इसे पारित करने में अड़ंगे लगाने वाली भाजपा अब क्यों इस विधेयक को पारित करने का दिखावा कर रही है?
वैसे किसी भी समाज या देश में बदलाव तभी होते हैं जब आम जनता उनके पक्ष में आवाज बुलंद करती है। देश के प्रगतिशील महिला आंदोलनों का ही परिणाम था कि प्रजातांत्रिक परंपराओं और धर्मनिपेक्षता की रक्षा करने के लिये संविधान में संशोधन होते रहे और कानून बनते रहे। 'राष्ट्रीय महिला आयोग' बना और हर राज्य में भी 'महिला आयोग' बने। देश में कामगार महिलाओं की दशा पर सरकार द्वारा एक अध्ययन करवाया गया और महिलाओं के पक्ष में कानून बनाने की कोशिश की गई।
दहेज हिंसा को परिभाषित करते हुये 498 ए जैसा कानून बना, देश में घरेलू हिंसा को रोकने के लिये अलग कानून बनाया गया, कार्यस्थल पर यौन हिंसा के खिलाफ कानून बना, यौन हिंसा की परिभाषा विस्तृत की गई, पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद उन्हें प्रशिक्षित किया गया और अब कई पंचायतों में महिलायें आधे से भी अधिक चुनी गई हैं।
माना कि इन तमाम कानूनों में कई खामियां हैं, लेकिन इन खामियों को दूर करने के लिये आवाज उठाई जा रही है। कुल मिलाकर आज नहीं तो कल महिला आरक्षण विधेयक पारित होना ही था। जो भाजपा हर साल हजारों महिलाओं की जान लेने वाले दहेज अपराध को रोकने के लिये बने 498 ए कानून को कमजोर करने में लगी हो, वह कैसे इस कानून को बनायेगी और महिलाओं को विधायिकाओं में पहुंचने का रास्ता साफ करेगी।
लोकसभा में पारित इस विधेयक और पूर्व में पारित विधेयकों में अंतर यही है कि पहले के विधेयक पारित होते ही लागू हुये थे, लेकिन इस ताजा कानून में पहले से ही 2029 तक की समय-सीमा लगा दी गयी है। यानि दो चुनावों को निपटाने के बाद। अब यह भी कहा जा रहा है कि परिसीमन और जनगणना, विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों को तय करने के बाद यह कानून कार्यान्वित किया जायेगा। जनगणना कब होगी?
वर्ष 2021 की जनगणना कोरोना का कारण बताकर टाल दी गई, लेकिन घोषणा करने के बावजूद 2023 के खत्म होने तक उसकी प्रक्रिया भी शुरू नहीं की गई है। तो फिर यह आशा कैसे की जा सकती है कि अगली 2031 में होने वाली जनगणना के आंकड़े समय पर प्रकाशित होकर इस विधेयक के क्रियान्वयन की शर्तों को पूरा कर देंगे? उसके बाद होने वाले परिसीमन के पहले तो इस विधेयक का क्रियान्वयन होने से रहा।
दूसरी बात यह है कि जिस सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री, सांसद, विधायकों पर बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण, हत्या के आरोप हों उससे क्या इस देश की महिलायें अपेक्षा कर सकती हैं कि इस विधेयक का क्रियान्वयन करेगी? क्या यह विडंबना नहीं है कि महिला पहलवानों का यौन शोषण करने वाला सांसद बृजभूषण सिंह 'महिला आरक्षण विधेयक' के पक्ष में हाथ उठाता है? महिला कोच को, जिसने भाजपा की हरियाणा सरकार के खेल मंत्री संदीप सिंह के खिलाफ शिकायत की थी, निलंबित कर देते हैं?
गुजरात में बिल्किस बानो की तीन साल की बच्ची की हत्या करने वालों और बिल्किस की छोटी बहन और मां सहित 11 महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले अपराधियों को जेल में अच्छे व्यवहार का सर्टिफिकिट देकर जेल से रिहा करने की सिफारिश करती है? और जेल से रिहा होने के बाद उन बलात्कारियों का सार्वजनिक सम्मान करती है?
जिस सत्ताधारी पार्टी के नेता, विधायक, यहां तक कि महिला सांसद तक कठुआ में हुये घृणित बलात्कार और हत्या तक के प्रकरणों में आरोपी ही नहीं, वरन अपराधियों के समर्थन में जुलूस निकालते हैं, उन्नाव के घृणित बलात्कार और हत्या के प्रकरण में तो भाजपा विधायक कुलदीप सैंगर आरोपी ही नहीं, अपराधी भी साबित हो जाता है, लेकिन आज तक इन तमाम नेताओं को पार्टी से निलंबित नहीं किया जाता। इतना ही नहीं ये नेता उन मासूमों और उनके परिजनों को ही घृणित घटनाओं के लिये जिम्मेदार बता देते हैं।
मध्यप्रदेश में लगातार हुईं घटनायें इसी का सबूत देती हैं। अभी हाल में उज्जैन में 12 साल की बच्ची के साथ हुआ लोमहर्षक कांड मौजूदा सरकार पर शर्मनाक धब्बा है। सागर के पास के गांव में एक युवती और उसकी मां के साथ हुई घटना इसका सबूत हैं कि स्थानीय हत्यारे दबंग नेता और मंत्री इसके लिये युवती और उसकी मां को चरित्रहीन और भाई, जिसकी हत्या कर दी गई, को चोर बता रहे हैं।
दरअसल इतिहास बताता है कि सत्तारूढ़ भाजपा और उसके मातृ संगठन आरएसएस का इस देश की महिलाओं के आंदोलनों में योगदान और देश की रवायत से कोई संबंध ही नहीं रहा है। जिन महिलाओं और देश के लोकतंत्र तथा समता के समर्थक दलों और संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर अब तक लड़ाई लड़ी है, उन्हें ही इसे वास्तविक बनाने की लड़ाई भी लड़नी और जीतनी होगी।
(लेखिका 'अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति' की केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य और 'लोकजतन' की सह-सम्पादक हैं।)


