दस साल बाद बन सकती है महिला महापौर
नगर निकाय चुनाव की घोषणा अभी भले न हुई हो, लेकिन नेताओं की निगाहें मेयर सीट पर लगी है
गाजियाबाद। नगर निकाय चुनाव की घोषणा अभी भले न हुई हो, लेकिन नेताओं की निगाहें मेयर सीट पर लगी है। दस साल बाद गाजियाबाद मेयर सीट अनारक्षित होने की संभावना बढ़ गई है। यही वजह है कि दावेदारों की फेहरिस्त भी लंबी होने लगी है। बसपा, कांग्रेस, बसपा में मेयर टिकट के दावेदार अपने 'आकाओंÓ की 'गणेश परिक्रमा करने लगे हैं। दावेदारों की सबसे बड़ी जमात भाजपा में है।
वर्ष 1995 में नगर निगम में पहली बार मेयर चुनाव जनरल कैटेगरी पर हुआ। इसके बाद दूसरी बार भी यह सीट जनरल कैटेगरी में रही और दोनों बार भाजपा के दिनेश चंद गर्ग मेयर चुने गए।
वर्ष 2007 में मेयर सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई, लेकिन भाजपा के पास ही रही। दमयंती गोयल मेयर चुनीं गई। 2012 में आरक्षण नए सिरे से तय हुआ और यह सीट ओबीसी वर्ग में चली गई। ओबीसी में तेलूराम कांबोज मेयर चुने गए।
कार्यकाल के बीच में ही निधन हो जाने पर हुए उपचुनाव में अशु वर्मा को टिकट मिला और वह रिकार्ड मतों से जीतकर मेयर बने। इस बार क्योंकि दो निगम बढ़ गए हैं, इसलिए चक्रानुक्रम के फार्मूले से इस बार गाजियाबाद की मेयर सीट ओबीसी महिला वर्ग के लिए आरक्षित होने की उम्मीद थी, लेकिन यूपी में नए नगर निगमों के गठन की वजह से अब यह गणित बिगड़ने की संभावना है।
ऐसे में फिरोजाबाद और सहारनपुर आरक्षण के गणित को बदल सकते हैं, ऐसे में चक्रानुक्रम के मुताबिक इस बार गाजियाबाद की मेयर सीट अनारक्षित कैटेगरी में रहने की उम्मीद है।
यही वजह है कि बाहुलता और पिछले रिकार्ड के आधार पर भाजपा से वैश्य समाज नेता सबसे ज्यादा दावेदारी ठोंक रहे हैं। संघ के पदाधिकारियों से लेकर संगठन के जिम्मेदार नेताओं तक वह परिक्रमा कर रहे हैं।
बात करे टिकट के चाहने वालों की तो इसमें भाजपा में पूर्व मेयर दमयंती गोयल के बेटे मयंक गोयल, आरकेजीआईटी कॉलेज के चेयरमैन दिनेश गोयल, सीनियर पार्षद अनिल स्वामी, ललित जायसवाल, मौजूदा मेयर अशु वर्मा, पृथ्वी सिंह कसाना समेत कई नेता दावेदारों की लाइन में हैं।
पहली बार निकाय चुनाव पार्टी के सिंबल पर लड़ रही सपा में पूर्व महानगर अध्यक्ष संजय यादव, पूर्व उपाध्यक्ष रविंद्र चौहान, ब्लाक प्रमुख संतोष यादव की पत्नी सीमा यादव, अलाउद्दीन अब्बासी समेत कई नेताओं ने दावेदारी ठोंक दी है।
कांग्रेस और बसपा में भी दावेदारों की फेहरिस्त लंबी है, हालांकि दोनों दल अभी मेयर सीट का आरक्षण तय होने का इंतजार कर पत्ते नहीं खोल रहे हैं। कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष का कहना है कि यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। पार्टी ताल ठोंक कर मैदान में उतरेगी। इससे साफ जाहिर है कि गाजियाबाद में दस साल बाद अगर अनारक्षित सीट हुई तो सभी दलों में मेयर टिकट पाने के लिए कड़ा मुकाबला होगा।


