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महिला दुखियों और असहायों का पेट भरने का नेक काम कर रही

महिला करीब दो दशक से भिक्षाटन के जरिये हर सप्ताह सैकड़ों दीन दुखियों और असहायों का पेट भरने का नेक काज कर रही है।

महिला दुखियों और असहायों का पेट भरने का नेक काम कर रही
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कुशीनगर। किसी खास अवसर अथवा धार्मिक आयोजन के मौके पर भंडारे का आयोजन आम बात है मगर अति पिछड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश में भगवान बुद्ध की निर्वाणस्थली कुशीनगर में एक महिला करीब दो दशक से भिक्षाटन के जरिये हर सप्ताह सैकड़ों दीन दुखियों और असहायों का पेट भरने का नेक काज कर रही है।

जिले के पडरौना नगर में रहने वाली रेखा पांडेय हर शनिवार अपने घर पर दीन-दुखियों, असहायों और दिव्यांगों को भरपेट भोजन कराती हैं और दक्षिणा भी देती हैं।

पति के निधन के बाद भंडारा चलाने में दिक्कत आई तो उन्होंने दूसरा रास्ता अख्तियार किया। अब वह छह दिन भिक्षाटन करती हैं।
इससे जो रूपये-पैसे मिलते हैं। उससे शुक्रवार को राशन खरीद कर शनिवार को भंडारा करती हैं। उनके इस प्रयास से 18 साल से चल रहे भंडारे में कभी ब्रेक नहीं लगा।

भंडारा भी सौ-पचास का नहीं होता। प्रायः दो-ढाई सौ से ज्यादा ही लोग उसमें शामिल होते हैं। रेखा कहती हैं, जब तक जिंदा रहेंगी, भंडारा बंद नहीं होने देंगी। जीवों पर दया और भूखों को भोजन उनके जीवन का अब लक्ष्य बन गया है।

गोपालगंज बिहार के रमजिता निवासी आचार्य रघुनाथ पांडेय पत्नी रेखा पांडेय के साथ छह दशक पहले पडरौना आए थे। पडरौना के तिलकनगर मोहल्ले में एक छोटा सा घर बनाकर रहने लगे। पंडिताई आजीविका का साधन बनी।

1999 में पांडेय दम्पत्ति ने गरीबों के लिए शनिवार को भंडारे की शुरुआत की। कुछ ही समय में यह भंडारा इतना लोकप्रिय हो गया कि शनिवार को सुबह होते ही उनके घर के सामने दीन-दुखियों की भीड़ जमा हो जाती थी। पांडेय दम्पत्ति मनोयोग से भोजन बनाकर सभी को खिलाते थे और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करते थे।


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