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नाबालिग बच्ची से मारपीट के आरोप में महिला पायलट और पति गिरफ्तार

दिल्ली में एक महिला पायलट और उसके पति को नाबालिग घरेलू सहायिका के साथ मारपीट और टॉर्चर के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. घरेलू सहायिका के साथ मारपीट और अमानवीय बर्ताव का यह कोई पहला मामला नहीं है.

नाबालिग बच्ची से मारपीट के आरोप में महिला पायलट और पति गिरफ्तार
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दिल्ली के द्वारका इलाके में समाज को शर्मशार करने वाली घटना सामने आई है. आरोप है कि एक महिला पायलट और उसके पति ने घर में काम करने वाली नाबालिग बच्ची के साथ मारपीट की और उसका उत्पीड़न किया.

10 साल की बच्ची द्वारका के एक दंपती के घर पर घरेलू काम करती थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को पीड़ित बच्ची के एक रिश्तेदार ने देखा कि जब बच्ची बालकनी में सफाई कर रही थी तब महिला पायलट उसे मार रही थी.

भीड़ के हत्थे चढ़ा दंपती

इस रिश्तेदार ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि जब उसने बच्ची को फोन किया और कहा कि वह वहां से निकल आए तो बच्ची ने तो बताया कि दंपती उसके साथ हमेशा मारपीट करता है, उसने कहा कि अगर वह घर छोड़कर जाती है तो उसकी और पिटाई की जाएगी.

इसके बाद बच्ची के रिश्तेदार दंपती के घर के बाहर जमा हो गए और महिला पायलट और उसके पति से घर का दरवाजा खोलने को कहा. दंपती ने घर का दरवाजा नहीं खोला, जिसके बाद वहां और लोगों की भीड़ जमा हो गई. जिसके बाद दंपती ने घर का दरवाजा खोला और बच्ची को घर से निकाला. इस दौरान वहां भीड़ ने दंपती की पिटाई भी की.

आरोपी दंपती की पहचान कौशिक बागची और पूर्णिमा बागची के रूप में हुई है. कौशिक बागची विस्तारा एयरलाइंस में ग्राउंड स्टाफ हैं वहीं पूर्णिमा बागची इंडिगो एयरलाइंस में पायलट हैं. पुलिस ने दोनों को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया. पूर्णिमा को दो सप्ताह की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया जबकि कौशिक को गुरूवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा.

दिल्ली पुलिस ने कहा कि दंपति के खिलाफ आईपीसी की धारा 370 (तस्करी), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 343 (गलत कारावास), 324 (चोट पहुंचाना) के साथ-साथ बाल श्रम कानून और किशोर न्याय अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.

बच्ची का आरोप हमेशा होती थी मारपीट

बच्ची का बयान भी दर्ज कराया गया है. बच्ची ने अपने बयान में आरोप लगाया कि उसके साथ महिला और उसका पति हमेशा मारपीट करते थे. बच्ची बिहार की रहने वाली है और उसके माता-पिता कुछ दिनों पहले गांव चले गए थे. पीड़ित बच्ची पिछले एक महीने से आरोपी दंपती के घर पर घरेलू सहायिका के तौर काम कर रही थी.

इस घटना का वीडियो बुधवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें भीड़ दंपती की पिटाई करती हुई नजर आ रही है. वीडियो क्लिप में कुछ महिलाएं महिला पायलट को थप्पड़ मारते हुए दिख रही हैं. पुलिस इस मामले में पूर्णिमा की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर मारपीट में शामिल लोगों की पहचान कर रही है.

एक छोटी बच्ची के साथ मारपीट करने का मामला सामने आने के बाद विस्तारा और इंडिगो ने अलग-अलग बयान जारी किया है. विस्तारा और इंडिगो ने कहा है कि उसने इन कर्मचारियों को ड्यूटी से हटा लिया है और वह पुलिस के साथ सहयोग कर रही है.

गरीबी का फायदा उठाते लोग

द्वारका में जो घटना हुई है वह कोई एकलौती घटना नहीं है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पुणे, गुरुग्राम और बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों में ऐसी घटनाएं कई बार सामने आई हैं. कई मौकों पर तो इस तरह की घटना का पता तक नहीं चल पाता है.

बड़े शहरों में रोजगार की तलाश में गांवों से आने वाले गरीब परिवार कई बार ऐसे उत्पीड़न के जाल में फंस जाते हैं जिससे निकल पाना उनके लिए बेहद मुश्किल हो जाता है. वे पीड़ा सहते हुए भी घरेलू काम करने को मजबूर हो जाते हैं, मजबूरी पैसे की और परिवार चलाने की होती है.

इसी साल फरवरी में गुरुग्राम से एक दंपती के घर से 14 साल की बच्ची को बचाया गया था. दंपती पर नाबालिग बच्ची के साथ मारपीट और उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगा था.

दंपती ने बच्ची को घरेलू सहायिका के तौर पर काम पर रखा फिर उसपर बेइंतहा जुल्म ढाए. बच्ची के शरीर को गर्म चिमटे से दागा और उसकी डंडे से पिटाई की. आरोपी बच्ची को खाना तक नहीं देते थे. बच्ची भूख मिटाने के लिए डस्टबिन से खाना उठाकर खाती थी. यह बच्ची झारखंड की रहने वाली थी.

अक्टूबर 2013 में दिल्ली के पॉश वसंत कुंज इलाके से झारखंड की रहने वाली 18 साल की घरेलू सहायिका को बचाया गया था. इस लड़की को तीन महीने तक प्रताड़ित किया गया था. एक और घटना में 2017 में 23 साल की घरेलू कामगार की टॉर्चर के बाद मौत हो गई थी.

घरेलू कामगार अधिकतर पिछड़े इलाकों और कमजोर समुदायों से आते हैं. जिनमें अधिकांश अशिक्षित या फिर कम पढ़े-लिखे, अकुशल व असंगठित होते हैं. इस कारण वे श्रम बाजार को नहीं समझ पाते हैं. इसलिए इन्हें कम वेतन, अधिक काम के घंटे, हिंसा-दुर्व्यवहार यहां तक कि यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. छुट्टी या इलाज की सुविधा की बात तो ये सोच भी नहीं पाते हैं.


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