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सुप्रीम कोर्ट रक्षा करेगा मताधिकार की?

लोकतंत्र की सर्वाधिक महत्वपूर्ण व बुनियादी प्रक्रिया यानी मतदान के लिये इस्तेमाल में आने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का विवाद अंतत: सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुंच ही गया

सुप्रीम कोर्ट रक्षा करेगा मताधिकार की?
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लोकतंत्र की सर्वाधिक महत्वपूर्ण व बुनियादी प्रक्रिया यानी मतदान के लिये इस्तेमाल में आने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का विवाद अंतत: सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुंच ही गया। मंगलवार को इस पर हुई जोरदार बहस में मशीनों की कार्यपद्धति को शीर्ष कोर्ट की बेंच ने न सिर्फ ध्यानपूर्वक सुना बल्कि अपनी ओर से अनेक तरह के सवाल कर जानने की कोशिश की कि ये मशीनें किस तरह से काम करती हैं और क्या वे दोषमुक्त हैं। लोगों में मतदान को लेकर जो अविश्वास पैदा हो गया है, अदालत उसे खत्म करने के प्रति उत्सुक नज़र आई जो एक अच्छा संकेत है।

आखिरकार ये वे ही सवाल हैं जिनके चलते लम्बे समय से देशवासी ईवीएम की ओर शंका भरी निगाहों से देख रहे हैं। अनेक राजनीतिक दल, सिविल सोसायटियां एवं वरिष्ठ वकील कहते आये हैं कि मशीनें हैक हो सकती हैं। हालांकि मामले पर बहस पूरी नहीं हो पाई परन्तु इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार (18 अप्रैल) को तय कर सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह इस मामले को तेजी से निपटाना चाहता है। वैसे भी 18वीं लोकसभा के मतदान का पहला चरण 19 अप्रैल को होने जा रहा है जिसके साथ 7 चरणों वाले इस आम चुनाव का आगाज़ हो जायेगा। एक दिन पहले यदि न्यायालय कोई फैसला करता है तो यह देखना होगा कि क्या वह ऐसा होगा जिससे लोगों की मौजूदा निर्वाचन प्रणाली में विश्वास की बहाली होगी और चुनावों की पारदर्शिता लौटेगी।

मंगलवार को जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट में इस पर दलीलें दी गईं उससे कुछ बातें साफ हैं। पहली तो यह कि अब तक इसके पक्ष में जितने हल्के-फुल्के ढंग से केन्द्र सरकार व निर्वाचन आयोग बातें कर रहा था, यह वैसा छोटा मामला नहीं है। दूसरे, इसे लेकर जो शंकाएं जाहिर की जा रही थीं वे निराधार नहीं थीं। तीसरे, भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान दो शासनकाल में जिस प्रकार से केन्द्रीय निर्वाचन आयोग इसी पद्धति से चुनाव कराने पर अड़ा है, वह अकारण नहीं है। जस्टिस संजीव खन्ना तथा जस्टिस दीपांकर दत्ता ने लगभग पूरे दिन ईवीएम पद्धति के ज्यादातर पहलुओं पर बारीकी से जानकारी ली और अनेक तरह के सवाल भी किये। इस दौरान कई तरह की सलाहें भी प्रशांत भूषण, गोपाल शंकर नारायण, संजय हेगड़े जैसे देश के नामी-गिरामी वकीलों के जरिये आईं। यह याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने दायर की है जिसने अनेक तथ्यों के आधार पर इस बात की मांग की कि मतदाता को भरोसा हो कि उसने जिसे वोट दिया है, वह उसे ही मिले। वकीलों का कहना था कि पर्ची को मतदाता स्वयं मतपेटी में डाले। निर्वाचन आयोग का कहना था कि इससे नतीजे 12 दिन विलम्ब से आयेंगे। हालांकि इस तर्क में कोई दम नहीं दिखता क्योंकि वैसे भी चुनाव प्रारम्भ होने के बाद परिणाम दो-ढाई माह बाद ही आयेंगे।

कोर्ट ने इस प्रणाली को अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी बनाने की दिशा में कई सम्भावनाओं की गहराई से पड़ताल की। उम्मीदवारों को बार कोड देने, मशीन के काम करने का तरीका, हैक होने की सम्भावना, उसकी देखरेख व सुरक्षा आदि आयामों पर चर्चा हुई। वकीलों ने इस बात को रेखांकित किया कि यह याचिका नागरिकों के मताधिकार से सीधी जुड़ी है और यह उनका मौलिक अधिकार है। उन्हें जानने का पूरा हक है कि उनका वोट उसी उम्मीदवार व दल को गया है या नहीं जिसे उन्होंने दिया था। वर्तमान प्रणाली में ऐसा जानने का जरिया नहीं है। वोटरों को अपने मतदान का भौतिक सत्यापन और पर्ची के शारीरिक स्पर्श करने का अवसर मिलना चाहिये।

मतदाता स्वयं पर्ची को हाथ में लेकर सत्यापित करे कि उसका वोट उसके द्वारा पसंद किये गये व्यक्ति व पार्टी को ही गया है। उनका यह भी कहना था कि सरकार इस चुनाव पर करीब 5000 करोड़ रुपये खर्च कर रही है तथा वह 'एक देश एक चुनाव' योजना पर भी काम कर रही है। ऐसे में चुनाव प्रणाली पूर्णत: पारदर्शी होनी चाहिये। वकीलों ने मांग की कि कम से कम 50 प्रतिशत वीवीपैट का मिलान डाले गये मतों के साथ होना चाहिये ताकि किसी प्रकार का शक न रहे।

कोर्ट को निर्वाचन आयोग की ओर से दी गई यह जानकारी सभी को हैरत में डालने के लिये पर्याप्त थी कि फिलहाल हर मशीन से केवल 5 पर्चियों का ही मिलान होता है जबकि इस बाबत आम समझ यही थी कि यह 5 प्रतिशत होती है। इस लिहाज से देखें तो जिस मशीन के जरिये पांच सौ-हजार वोट डलते हैं उस अनुपात में यह संख्या नगण्य है जो किसी भी तरह की गड़बड़ियों को न तो दर्शायेगी और न ही साबित होने देगी। एडीआर के पक्ष में खड़े वकीलों ने निर्वाचन आयोग की इस दलील को औचित्यहीन बतलाया कि सत्यापित करने में वक्त लगेगा। उनका कहना था कि इस आधार पर मांग को खारिज नहीं किया जा सकता। यह कोई कारण नहीं होना चाहिये। ज़रूरी है तो सभी पर्चियों (वीवीपैट) का मिलान होना चाहिये। चुनाव आयोग को स्वयं ही इसका स्वागत करना चाहिये क्योंकि यहां मामला जनता के विश्वास का है।

उल्लेखनीय है कि पिछले कई चुनावी परिणाम ऐसे आये थे जिनमें जमीनी हकीकत कुछ दिखती थी परन्तु जीत भारतीय जनता पार्टी को ही हासिल होती रही। फिर, जो भाजपा 2014 के पहले ईवीएम के विरोध में थी, अब इसकी पक्षधर है। इसे लेकर कई वरिष्ठ वकील आंदोलन करते रहे हैं। साथ ही, ईवीएम के मसले पर विपक्षी दल चुनाव आयोग से चर्चा करना चाहते हैं परन्तु उन्हें वक्त ही नहीं दिया गया। इन सबके चलते ईवीएम को लेकर लोगों में संदेह बना हुआ है। उम्मीद है कि गुरुवार को जब बेंच बैठेगी तो ऐसा फैसला आयेगा जो जनता व लोकतंत्र के पक्ष में होगा।


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