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ईवीएम से पिंड छूटेगा क्या?

अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से का प्रमुख देश है- नामीबिया। 2014 के चुनाव में यहां इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल सबसे पहले हुआ था

ईवीएम से पिंड छूटेगा क्या?
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- पुष्परंजन

दुनिया के 178 देशों में से 29 मुल्क पूर्ण अथवा आंशिक रूप से ईवीएम का इस्तेमाल चुनावों में कर रहे हैं। किंवदंतियों में किसी दैत्य के प्राण तोते में बसे रहने की कल्पना की जाती थी, ईवीएम में भी सत्तासुरों के प्राण बसते हैं। प्रतिपक्ष चाहे जितना एकजुट हो जाए, या अखिल भारतीय आंदोलन कर ले, ईवीएम है, तो सत्तासुरों को परास्त करना असंभव ही मानिये।

अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से का प्रमुख देश है- नामीबिया। 2014 के चुनाव में यहां इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल सबसे पहले हुआ था। चार हज़ार वोटिंग मशीनों के ज़रिये जो चुनाव परिणाम आये, उसमें 24 साल सत्ता में रह चुकी पार्टी 'स्वापो' फिर से विजयी घोषित हुई। साउथ वेस्ट अफ्रीका पीपुल्स आर्गेनाइजेशन (स्वापो) के नेता हागे जीकोब 2019 में भी 56 फ ीसद मतों से जीतकर राष्ट्रपति बन गये थे। उनके विरोधी इस 'करिश्मा' के पीछे ईवीएम का सबसे बड़ा योगदान मानते हैं। भारत ने नामीबिया को 2012 में 3400 इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनें भेजी थीं। 2019 के चुनाव में ईवीएम का जब व्यापक विरोध हुआ, तो भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने वोटर वेरीफिएबल पेपर ट्रेल (वीवीपैट) मशीनें भी नामीबिया भिजवा दीं।

मेक इन इंडिया ईवीएम बोत्सवाना भी भेजी गई। 2019 के चुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल पर इस अफ्र ीक़ी देश में बवाल मचा, तो बोत्सवाना सरकार ने भारतीय चुनाव आयोग को चि_ी भेजी कि उनके अधिकारी यहां के कोर्ट में आयें, और यह डेमो करके दिखायें कि इन मशीनों की हैकिंग नहीं हो सकती। बीईएल द्वारा निर्मित ईवीएम से कोई छेड़छाड़ संभव नहीं है। भारतीय चुनाव आयोग इसपर चुप्पी साध गया। भारतीय निर्वाचन आयोग का कोई बंदा बोत्सवाना गया, या नहीं? इसपर कोई जानकारी नहीं दी गई।

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो सेंट्रल अफ्रीक़ा के बड़े देशों में शुमार होता है। दिसंबर 2018 में राजधानी किन्हासा से ख़बर आई कि वहां चुनाव आयोग के वेयरहाउस में आग लगा दी गई है, जिससे वहां रखी दो तिहाई ईवीएम मशीनें राख हो चुकीं। वहां 21 हज़ार 100 पोलिंग स्टेशनों पर ईवीएम के ज़रिये चुनाव कराने का विरोध हो रहा था, लेकिन 17 वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे राष्ट्रपति जोसेफ कबीला इसपर अड़े हुए थे कि मतपत्रों का इस्तेमाल नहीं होने देंगे। मार्टिन फायेलू वहां के प्रमुख प्रतिपक्षी नेता थे, उन्होंने धमकी दे रखी थी कि ईवीएम के ज़रिये चुनाव हुआ, तो हम उसका बायकॉट करेंगे।

यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठा। निकी हेली तब यूएन में अमेरिकी दूत थीं, उन्होंने दो तर्क दिये। पहला, जो ईवीएम डीआर कांगो के इस्तेमाल में है, वह आसानी से हैक किये जा सकते हैं। दूसरा, कांगो गणराज्य के ग्रामीण वोटर तकनालॉजी से वाकिफ़ नहीं हैं। इन दोनों तर्कों के बिना पर निकी हेली ने डीआर कांगो में चुनाव मतपत्रों के ज़रिये कराने पर ज़ोर दिया। किन्हासा में निकी हेली के इस स्टैंड का ज़बरदस्त स्वागत हुआ। कांगो नेशनल एलेक्शन कमीशन ने दक्षिण कोरिया से जिन एक लाख ईवीएम मंगाई थी, उनमें से दो का टेस्ट संसद में कराया गया, दोनों ख़राब निकलीं।

लेकिन डीआर कांगो ने एक रास्ता बता दिया कि दुनिया के जिन देशों में शासकों द्वारा संरक्षित चुनाव आयोग जनता पर ईवीएम जबरदस्ती थोपते हैं, तो उनके विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुनवाई संभव है। भारत में जो लोग चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को सही ठहराते हैं, वो इस बात पर फु लकर कुप्पा हैं कि नेपाल, नाइजीरिया, इंडोनेशिया, रूस, बोत्सवाना, पापुआ न्यूगिनी, अफ ग़ानिस्तान ने ट्रायल के लिए भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) से कुछ मशीनें मंगाई थीं। नामीबिया और भूटान ने अपने चुनावों में भारतीय ईवीएम का इस्तेमाल किया, यह मील का पत्थर बन गया। लेकिन नामीबिया में ईवीएम सर्वस्वीकृत नहीं है। वोटर अब भी ईवीएम से निकले परिणामों पर संदेह व्यक्त करते हैं।

इंटरनेशन इंस्टीट्यूट फ ॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्ट्रोरल अस्सिटेंस (आईडीईए) की मानें, तो आज की तारीख़ में दुनिया के 178 देशों में से 29 मुल्क पूर्ण अथवा आंशिक रूप से ईवीएम का इस्तेमाल चुनावों में कर रहे हैं। भारत और भूटान के अलावा यूएई, रशियन फेडरेशन के कुछ हिस्सों, पेरू, एस्तोनिया, डोमिनिक रिपब्लिक, ब्राज़ील, बेल्ज़ियम, ऑस्ट्रेलिया, आर्मेनिया, अर्जेंटीना, अल्बानिया, फिलीपींस, पनामा, ओमान, न्यूजींलैंड, नामीबिया, मंगोलिया, किरगिस्तान, इराक, कांगो, वेनेजुएला में ईवीएम की उपस्थिति है। इनके अलावा ईरान, कनाडा, मैक्सिको कुछ प्रांतों में ईवीएम के ज़रिये चुनाव कराते हैं।

यों, अमेरिका में कई प्रांतों में मतपत्रों के ज़रिये वोटिंग होती है। मगर, जहां इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है, उसकी निगरानी इलेक्ट्रोरल मैनेजमेंट बॉडी (इएमबी) करती है। 'इएमबी' में राजनीतिक दल, सुरक्षा एजेंसियां, मीडिया, सिविल सोसाइटी के लोग, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की भागीदारी होती है। फिजी, फ्रांस व दक्षिण कोरिया अमेरिकी पैटर्न पर चुनाव संचालित कर रहे हैं। इराक में ईवीएम के ज़रिये वोटिंग में बेईमानी का विरोध लगातार हुआ है, मगर वहां का चुनाव आयोग इसे इग्नोर करता रहा है।

लैटिन अमेरिकी देशों में ब्राज़ील ने 1996 में और वेनेजुएला ने 1998 में ईवीएम का इस्तेमाल आरंभ किया। पारागुए ने 2001 से 2006 के बीच ईवीएम प्रायोगिक तौर पर शुरू किया, लेकिन जब शिकायतों का ढेर लगना शुरू हुआ, 2007 में ईवीएम को अलविदा कह दिया गया। पेरू में 2011 से ईवीएम प्रयोग में है। इक्वाडोर में 2014 से 2017 तक प्रयोग के बाद 2019 में ईवीएम के इस्तेमाल को रोक दिया गया। अर्जेंटीना में ईवीएम इस्तेमाल में है। मैक्सिको में प्रोटो टाइप ईवीएम इस्तेमाल में है। लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में 33 देश हैं, मगर ईवीएम का इस्तेमाल एक तिहाई मुल्क ही कर पर रहे हैं।

भारत के बाद भूटान, दक्षिण एशिया का अकेला देश रह गया, जहां चुनाव इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के आधार पर हो रही है। मगर, भूटान में चुनाव से लेकर उसकी पंचवर्षीय योजनाओं तक का ख़र्चा भारत वहन करता है, यह बात भी ढंकी-छिपी नहीं है। जो बात अभी ज़ेरे बहस होनी चाहिए, वह यह कि बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन पर प्रतिबंध क्यों लगा दिया? कारण केवल आर्थिक नहीं, चुनाव में विश्वसनीयता भी एक बड़ा मुद्दा है। भारत में सबसे पहले 1982 में केरल के पारूल विधानसभा सीट उपचुनाव में 50 पोलिंग स्टेशन पर प्रयोग के तौर पर इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हुआ था। 1998 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली विधानसभा की 16 सीटों पर ईवीएम के ज़रिये लोगों ने वोट डाले थे। 2004 के आम चुनाव संपूर्ण रूप से ईवीएम के सहारे हुआ। उस कालखंड में सड़क से संसद तक कोई पार्टी ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्न कर रही थी, तो वह बीजेपी थी।

2009 में भाजपा ने चुनावी हार का सामना किया था, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे। सुब्रमण्यम स्वामी भी विशेषज्ञों के हवाले से ईवीएम के विरूद्ध सघन अभियान चलाये हुए थे। 2010 में जीवीएल नरसिम्हा राव ने 'डेमोक्रेसी एट रिस्क : कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन' नामक एक किताब भी लिखी थी। मजेदार बात यह है कि इस पुस्तक की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। जीवीएल की पुस्तक पर आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडू का भी संदेश छपा हुआ है। स्वामी और आडवाणी का जो हाल पार्टी में है, उसे देखकर लोगों को इनसे कतई सहानुभूति नहीं हो पाती। अब जीवीएल नरसिम्हा राव को चाहिए कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर एक टटका किताब लिखें, और बतायें कि ईवीएम सबसे ट्रस्टेड मशीन है, 2024 के वोटर आंख मूंदकर इसपर भरोसा करें।

बांग्लादेश ने ईवीएम को नकार कर नये सिरे से बहस का आगाज़ किया है। बांग्लादेश में इस साल के दिसंबर, या 2024 की शुरूआत में आम चुनाव है। तारीख़ की घोषणा में अभी समय है। लेकिन, उससे पहले वहां के निर्वाचन आयोग ने निर्णय किया कि मतदान में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल नहीं करेंगे। बांग्लादेश की 39 रजिस्टर्ड पार्टियों में से 19 के नेताओं ने ईवीएम के विरूद्ध प्रतिरोध व्यक्त किया था।

17 से 31 जुलाई 2022 तक बांग्लादेश चुनाव आयोग ने ईवीएम के हवाले से कई बैठकें की थीं। मुख्य विपक्षी बीएनपी, जातीय पार्टी (इरशाद), गणो फोरम, कम्युनिस्ट पार्टी बांग्लादेश समेत 19 दल इस पक्ष में बिल्कुल नहीं थे कि मतदान में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हो। सत्तारूढ़ अवामी लीग, साम्यबादी दल, बिकल्प घारा बांग्लादेश जैसी पार्टियां चुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल के पक्ष में थीं। 6 सितंबर, 2022 को बांग्लादेश के 39 प्रमुख नागरिकों ने चुनाव आयोग को सामूहिक पत्र भेजा था कि ईवीएम के इस्तेमाल के फैसले को रद्द किया जाए। यों, चुनाव आयोग ने ईवीएम बैन करने की वजह आर्थिक बताया, मगर सच यह है कि शेख हसीना सरकार देशव्यापी विरोध झेल पाने की स्थिति में नहीं थीं।

ईवीएम को लेकर बांग्लादेश ने जो फैसला लिया है, उसका असर दक्षिण एशिया के देशों पर पड़ना तय मानिये। नेपाल और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में ईवीएम का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। यों, पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनुल्लाह ने लंदन में 12 मई, 2022 को बयान दिया था कि 2023 के आम चुनाव में हम ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करेंगे। पाकिस्तान यदि ईवीएम चुनाव में इस्तेमाल करना है, तो उसे 330 अरब रुपये केवल नौ लाख इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों के वास्ते चाहिए। जिस देश में खाने के लाले पड़े हुए हैं, वो कहां से 330 अरब रुपये ईवीएम पर ख़र्च करेगा? भूटान अकेले दम ईवीएम का ख़र्चा उठा नहीं सकता था। भूटान का ख़र्चा-पानी चूंकि भारत देता रहा है, इसलिए उसके साढ़े चार लाख वोटरों के मतदान का इंतज़ाम नई दिल्ली के लिए कोई मुश्किल नहीं है। बदले में ईवीएम के इस्तेमाल वाला साथी देश भारत को मिल गया है, वरना पूरे दक्षिण एशिया में भारत अकेला देश होता।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यदि सबसे भरोसेमंद है, तो केवल ऊंगली पर गिने जाने वाले देशों तक यह सिमट कर क्यों रह गई? ईवीएम एक ऐसा आविष्कार है, जिससे चुटकी बजाते चुनावी चमत्कार हो जाता है। किंवदंतियों में किसी दैत्य के प्राण तोते में बसे रहने की कल्पना की जाती थी, ईवीएम में भी सत्तासुरों के प्राण बसते हैं। इस देश का प्रतिपक्ष चाहे जितना अखिल भारतीय आंदोलन कर ले, ईवीएम है, तो सत्तासुरों को परास्त करना असंभव ही मानिये।
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